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Success Story: हाथ कट गए तो पैरों से लिखी किस्मत, सफलता की कहानी पढ़कर जज्बे को करेंगे सलाम

Success Story: कहते हैं कि अगर ऊपरवाला हमसे कुछ छीनता है तो वह अपने दोनों हाथों से हमें वापस भी करता है. जी हां, अगर आप जीने की इच्छा रखते हैं या फिर कुछ कर गुजरने की चाह रखते हैं तो किसी भी तरह की कोई भी बेबसी आपको कभी रोक नहीं सकती है. ऐसा हम नहीं, भरत सिंह की कहानी कह रही है, जिन्होंने केवल 6 साल की उम्र में अपने दोनों हाथ गंवा दिए थे लेकिन हौंसला तो देखिए भरत सिंह ने जरा भी हिम्मत नहीं हारी.

 

ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रच दिया

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ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रच दिया

बिना हाथ होते हुए पैरों से लिखते-पढ़ते हुए उन्होंने न केवल अपनी पढ़ाई पूरी की बल्कि 10 किलोमीटर की स्टेट पैरा ओलंपिक में भी ब्रॉन्ज मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. जी हां. भरत सिंह के हाथ दोनों हाथ नहीं है लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी कृषि पर्यवेक्षक में पढ़ाई पूरी की. उनकी इस उपलब्धि पर हर किसी को गर्व है. अक्सर आपने देखा होगा कि जिनके हाथ-पैर होते हैं, वह भी आलस की वजह से कुछ करना नहीं चाहते हैं लेकिन भरत सिंह शेखावत ने एक अलग ही मिसाल कायम की है. इनका जन्म बेहद गरीब परिवार में 19 जून 1993 को हुआ था. उनके नाना नानी का कोई सहारा नहीं था इसलिए उनके माता-पिता ने उन्हें उनके ननिहाल भेज दिया. उन्होंने अपनी वही पढ़ाई पूरी की और वहीं रहते थे. 

 

भरत सिंह को करंट लगा

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भरत सिंह को करंट लगा

एक दिन स्कूल जाते समय बिजली के खंभे को छू जाने के चलते भरत सिंह को ऐसा करंट लगा कि उनके दोनों हाथ झुलस गए. हालत गंभीर हो जाने के चलते भरत सिंह को जयपुर के एसएमएस अस्पताल में भर्ती करवाया गया. डॉक्टर ने काफी कोशिश की लेकिन उनके दोनों हाथ नहीं बचाया जा सके. उस समय भरत सिंह केवल 6 साल के थे. करीब 2 महीने तक हॉस्पिटल में भर्ती रहने के बाद उन्हें घर भेज दिया गया. भरत 2 साल तक अपने कमरे में ही रहता था, वह बाहर नहीं निकलता था लेकिन जब उसने अपने दोस्तों को स्कूल जाते देखा तो भरत ने एक बार फिर से पढ़ाई करने का मन बना लिया. 

 

हमेशा क्लास क्लास में टॉप करते थे

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हमेशा क्लास क्लास में टॉप करते थे

इसके बाद भरत सिंह का किशनगढ़ रेनवाल के एक प्राइवेट स्कूल में एडमिशन करवाया गया पर उन्हें निराशा तब हुई जब स्कूल के निदेशक ने उसे कहा तुम्हारे तो हाथ ही नहीं है, तुम पढ़ाई कैसे करोगे. इस सब भरत ने जवाब दिया तो क्या हुआ मेरे पैर तो है मैं पैर से लिखूंगा. सालों की कड़ी मेहनत और प्रैक्टिस के बाद भरत पैर से लिखने लगे. कक्षा 6 से लेकर 12 तक घर से करीब 10 किलोमीटर दूर वह पैदल जाते और हमेशा क्लास क्लास में टॉप करते थे.

 

मां का हो गया निधन

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मां का हो गया निधन

कहते हैं कि कभी-कभी जिंदगी बहुत बड़ा इंतिहान लेती है. नियति को भी कुछ ऐसा ही मंजूर था. साल 2021 में भरत सिंह की मां का निधन हो गया. इसके बाद दादी ने उनके सारे काम पूरे किए. पढ़ाई खत्म करने के बाद जब भरत ने कॉलेज में एडमिशन लिया तो 2016 में देवेंद्र झाझरिया ने पैरा ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता. बस वहीं से भरत ने भी सोच लिया कि मुझे देश के लिए मेडल जीतना है. इसके बाद ओलंपिक की तैयारी करने के लिए अपनी बहन के पास जयपुर चले गए.

 

तरक्की की सीढ़ियां तो चढ़ेंगे ही

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तरक्की की सीढ़ियां तो चढ़ेंगे ही

जयपुर की प्राइवेट कोचिंग में साल 2018 में उन्होंने कृषि पर्यवेक्षक की तैयारी की. करीब 2 साल की कड़ी मेहनत के बाद पहली बार में ही 300 नंबर लाकर कृषि पर्यवेक्षक भी बन गए. फिलहाल भरत सिंह जयपुर के झोटवाड़ा के कृषि विभाग में कार्यरत है. भरत का तो यह भी कहना है कि उनकी हौसलों की उड़ान रुकेगी नहीं. आगे भी इसी तरह से बढ़ते रहेंगे. भले ही उनके हाथ नहीं है लेकिन फिर भी वह तरक्की की सीढ़ियां तो चढ़ेंगे ही.