Rajasthan News: नए जिलों और संभाग की पहली वर्षगांठ, आमजन को आज भी पुराने जिलों के काटने पड़ रहे चक्कर
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Rajasthan News: नए जिलों और संभाग की पहली वर्षगांठ, आमजन को आज भी पुराने जिलों के काटने पड़ रहे चक्कर

Rajasthan News: राजस्थान में 33 जिलों से 50 जिलों को बने हुए पूरा एक का समय हो चुका है. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार ने प्रशासनिक व्यवस्थाओं को चुस्त दुरुस्त करने के लिए सात अगस्त 2023 को हवन में आहूतियां देकर नए जिलों की पटि्टकाओं का अनावरण किया था.

 

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Rajasthan News: राजस्थान में 33 जिलों से 50 जिलों को बने हुए पूरा एक का समय हो चुका है. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार ने प्रशासनिक व्यवस्थाओं को चुस्त दुरुस्त करने के लिए सात अगस्त 2023 को हवन में आहूतियां देकर नए जिलों की पटि्टकाओं का अनावरण किया था. 

लेकिन एक साल बाद ना तो प्रशासनिक व्यवस्था तो चुस्त-दुरस्त तो दूर की बात अफसरों को बैठने के लिए ऑफिस तक नहीं मिले. जयपुर ग्रामीण और जोधपुर ग्रामीण में तो नए जिले बनने के एक साल बाद तक स्थाई कलेक्टर ही नियुक्त नहीं किया है. आज नए जिलों और संभाग की पहली वर्षगांठ है. 

 

गहलोत सरकार के समय में बने प्रदेश में 19 नए जिलों और तीन संभागों को बने एक साल बीत गया है. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 17 मार्च 2023 को 19 नए जिलों और 3 संभाग की घोषणा की थी और 7 अगस्त 2023 को हवन में आहूतियां देकर जिलों की स्थापना भी हो गई. लेकिन एक साल बाद भी इन जिलों में जिला स्तरीय सुविधाएं नजर नहीं आ रही है. ना पूरे विभागों के कार्यालय खुले न अफसर लगे. 

 

भले ही जिला बन गया हो लेकिन आज भी काम के लिए पुराने जिला मुख्यालय पर चक्कर काटने को लोग मजबूर हैं. या यूं कहा जाए की भले ही नए जिलों और नए संभागों से भूगोल बदल गया हो लेकिन जनता को कोई फायदा नहीं मिला. कोई एडीएम ऑफिस से कलेक्ट्री कर रहा है, तो कोई नगर परिषद के ऑफिस से कलेक्ट्री कर रहा है. 

 

ऑफिस के लिए कलेक्टर्स को जगह तक नहीं मिली है. तत्कालीन गहलोत सरकार के समय बनाए गए सभी नए जिलों और संभाग के रिव्यू के लिए भाजपा की नई सरकार ने कमेटी बना दी है. वृहद जयपुर की बात करें तो इससे विभाजित होकर चार जिले बनाए गए. चार जिलों में बंटने के बाद जयपुर का भूगोल बदल गया. 

 

पूर्व में 19 विधानसभा क्षेत्रों को समेटे इस जिले से टूटकर जयपुर शहर, जयपुर ग्रामीण, दूदू और कोटपूतली-बहरोड़ अस्तित्व में आए हैं. उम्मीद थी इन चार जिलों में चार कलेक्टर बैठेंगे और तीन नई जिला परिषद बनेंगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कोटपूतली-बहरोड़ जिले को छोड़कर दूदू, जयपुर शहर और जयपुर ग्रामीण का जिम्मा एक ही कलेक्टर के पास है. यानि की तीन जिलों की कलेक्ट्री जयपुर राजधानी से चल रही है. 

 

जनता को अपने काम करवाने के लिए राजधानी जयपुर ही आना होता है. दरअसल गहलोत सरकार ने जाते-जाते वृहद जयपुर से कोटपूतली-बहरोड़ और दूदू को नया जिला बनाया. फिर नगर निगम की अरबन सीमा का जयपुर शहर और इससे बाहरी इलाके को शामिल करते हुए जयपुर ग्रामीण जिला बना दिया. जयपुर शहर और जयपुर ग्रामीण जिला की राजस्व सीमा तो तय कर दी. 

 

लेकिन ये क्लीयर हो पाया है कि कौनसा पटवार मंडल किस जिले में आएगा. इसको लेकर कंफ्यूजन की स्थिति है. क्योंकि जयपुर की कुछ तहसील जयपुर ग्रामीण और जयपुर दोनों जिलों में शामिल है. आचार संहिता लगने से जयपुर ग्रामीण जिले में कलेक्टर नियुक्त नहीं करके सिर्फ एक आईएएस को बतौर ओएसडी नियुक्त कर दिया. 

 

लेकिन सत्ता परिवर्तन के साथ ही एक फरवरी 2024 को जयपुर ग्रामीण जिले में बतौर ओएसडी लगाए आईएएस को हटा दिया गया. अब फिर से नए जिलों की समीक्षा में जयपुर ग्रामीण का अस्तित्व समाप्त होगा और वृहद जयपुर जिला एक ही रहेगा. इसके संकेत मौजूदा बीजेपी सरकार ने दिए हैं. क्योंकि ना तो सरकार ने दोबारा से जयपुर ग्रामीण में ओएसडी की नियुक्ति की और ना ही कलेक्टर की नियुक्ति की. 

 

अब एक माह पहले रिटायर्ड आईएएस ललित के पंवार की अध्यक्षता में रिव्यू कमेटी गठित कर दी है. ये समीक्षा कर मंत्री समूह की केबिनेट कमेटी को रिपोर्ट देगी. वर्तमान में स्थिति कोई बदलाव नहीं है. पहले के ही तरह कलेक्टर काम कर रहे हैं, जयपुर ग्रामीण और जयपुर का काम बनीपार्क स्थित जिला कलेक्ट्रेट से ही हो रहा है. ना पद कम हुए ना ही बढे़, जो पहले काम कर रहे थे उसी तरह आज भी काम किया जा रहा है.

 

जयपुर ग्रामीण, जयपुर, कालवाड़, सांगानेर और आमेर तहसील के निगम क्षेत्र को छोड़कर शेष समस्त भाग. जालसू, बस्सी, तूंगा, चाकसू, कोटखावदा, जमवारामगढ़, आंधी, चौमूं, सांभरलेक, माधोराजपुरा, रामपुरा डाबड़ी, किशनगढ़-रेनवाल, जोबनेर, शाहपुरा वर्तमान स्थिति एक साल बाद भी जयपुर ग्रामीण में कलेक्टर नियुक्त नहीं किया है. 

 

पिछले एक साल से जयपुर शहर कलेक्टर के पास ही जयपुर का चार्ज है. ना ही ये क्लीयर हो पाया है कि कौनसा पटवार मंडल किस जिले में आएगा. इसको लेकर कंफ्यूजन की स्थिति है. क्योंकि जयपुर की कुछ तहसील जयपुर ग्रामीण और जयपुर दोनों जिलों में शामिल हैं. 

 

पुराने जिले जयपुर के हिसाब से ही सबकुछ काम हो रहा है. नए जिले के हिसाब से ना तो कोई इंफ्रास्टक्चर तैयार हुआ ना ही नए दफ्तर की तलाश की गई. ना ही नए जिले के हिसाब से अफसरों की तैनातगी. दूदू पंचायत से सीधा जिला बनने और राजस्थान में सबसे छोटे जिले में शुमार है. प्रदेश के सबसे छोटे जिले के हाल उपखंड जैसे ही हैं. 

 

एडीएम ऑफिस का नाम बदलकर कलेक्ट्रेट ऑफिस कर दिया गया है. इसी तरह एडिशनल एसपी के ऑफिस को एसपी ऑफिस बना दिया गया है. जयपुर कलेक्टर के पास ही दूदू जिले का चार्ज है. वहीं जयपुर ग्रामीण एसपी के पास दूदू एसपी का चार्ज है. यानि की दूदू सिर्फ नाम का जिला है, सब कुछ जयपुर से ही चल रहा है.

 

कोटपूतली-बहरोड़ जिले का कलेक्ट्रेट कोटपूतली नगर परिषद की बिल्डिंग में चलता है. जिले की कलेक्टर अभी कल्पना अग्रवाल है. यहां अभी तक ये तय नहीं हो पाया है कि कलेक्ट्रेट का खुद का भवन कहां बनेगा. कलेक्ट्रेट के पास अभी संसाधनों तक की कमी है. एसपी ऑफिस भी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ऑफिस बिल्डिंग से संचालित है.

 

इसी तरह पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में रिटायर्ड आईएएस रामलुभाया कमेटी की सिफारिश के आधार पर बने 17 जिले और तीन संभाग के रिव्यू किया जा रहा है. नए जिलों को लेकर डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा की अध्यक्षता में बनी मंत्री समूह की कैबिनेट सब-कमेटी लगातार रिव्यू कर रही हैं. इस कैबिनेट सब-कमेटी में उद्योग मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़, पीएचईडी मंत्री कन्हैयालाल चौधरी, राजस्व मंत्री हेमंत मीणा और जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत को सदस्य बनाया गया था. 

 

मंत्रियों की कमेटी गहलोत राज के जिलों को बरकरार रखने और कई जिलों को खत्म करने पर अपनी ​रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी. वहीं इस मंत्रिमंडल उपसमिति को सहयोग करने के लिए रिटायर्ड आईएएस ललित के पंवार की अध्यक्षता में हाई लेवल एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया गया है. हाई लेवल एक्सपर्ट कमेटी सभी जिलों में जाकर कमेटी इन जिलों और संभाग में प्रशासनिक क्षेत्राधिकार, सुचारू संचालन, प्रशासनिक आवश्यकता, वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता के लिए अपनी रिपोर्ट और सुझाव देगी. 

 

हाई लेवल एक्सपर्ट कमेटी के अध्यक्ष रिटायर्ड आईएएस ललित के पंवार ने बताया होमवर्क पूरा कर लिया है. 11 जिलों का फील्ड विजिट किया जा चुका है. जयपुर, अलवर, सवाईमाधोपुर, खैरथल-तिजारा, कोटपूतली-बहरोड़, गंगापुरसिटी, दूदू, अजमेर, केकड़ी और शाहपुरा जिले के कलेक्टर और एसपी से चर्चा की जा चुकी है. हाईलेवल कमेटी 31 अगस्त तक मंत्री समूह की कैबिनेट सब-कमेटी को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. 

 

पंवार ने कहा कि नए जिले बनने के मापदंड क्या होने चाहिए. राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर मानकों को देखा गया है. जिलों में इंफ्रास्ट्रक्चर, संसाधन, सरकारी दफ्तरों के लिए जमीन की उपलब्धता, कलेक्टर ऑफिस, एसपी ऑफिस, पुलिस लाइन, सिविल लाइन, कोर्ट ऑफिस के लिए जगह, जिला स्तरीय ऑफिस के लिए जगह की कितनी उपलब्धता है, ये सबकुछ देखा जा रहा है. उन्होंने कहा कि एवरेज जिला मुख्यालय की दूरी 80 से 90 किलोमीटर ही होनी चाहिए. 

 

सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. आम व्यक्ति को अपने काम के लिए जिला मुख्यालय पर ज्यादा दूरी नहीं नापनी पडे़. उन्होंने जयपुर ये टूटकर बने चार जिलों को लेकर कहा कि ये जरूरी था. जयपुर 22 तहसील वाला जिला था. अक्सर कलेक्टर की मीटिंग, प्रॉटोकॉल, मॉनिटरिंग में व्यस्तता रहती है. इसलिए इसे विभाजित करने का निर्णय सही है. उन्होंने कहा कि हमें 31 अगस्त से पहले हमारी रिपोर्ट तैयार करने सरकार को देनी है.

 

बहरहाल एक साल पहले नए जिलो के गठन के साथ उम्मीद थी कि नए जिलों का गठन धरातल पर आने के साथ ही जयपुर कलेक्ट्रेट का स्वरूप बदल जाएगा. कलेक्ट्रेट की सीमा शहर तक ही सीमित हो जाएगा. यहां अधिकारियों की संख्या कम होगी. छोटा इलाका होने से शहर के विकास में तेजी आने की संभावना है. जिला बनने से उस क्षेत्र में सुविधाएं बढ़ेंगी. सरकारी कार्यालय व अन्य सुविधाओं तक पहुंचने के लिए दूरी कम होगी. लेकिन एक साल में ऐसा कुछ नहीं हुआ ना दिखा.

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