कहते हैं राजनीति की पहली सीढ़ी छात्र संघ चुनाव से होकर ही गुजरती है, लेकिन पिछले दो सालों से कोरोना ने इस सीढ़ी के दरवाजे बंद कर रखे थे.
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JAIPUR: कहते हैं राजनीति की पहली सीढ़ी छात्र संघ चुनाव से होकर ही गुजरती है, लेकिन पिछले दो सालों से कोरोना ने इस सीढ़ी के दरवाजे बंद कर रखे थे. 2020 में जहां कोरोना पीक पर होने के चलते छात्र संघ चुनाव नहीं हो पाए.
वहीं, साल 2021 में भी सरकार की ओर से कोरोना के असर को देखते हुए छात्र संघ चुनाव की अनुमति नहीं मिली, लेकिन दो साल बाद परिस्थितियां सामान्य होने के बाद आखिरकार सरकार ने इस साल छात्र संघ चुनाव करवाने का फैसला ले लिया है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 22 जुलाई को इस साल छात्र संघ चुनाव करवाने के निर्देश दिए और उसके बाद से ही अब छात्र नेता अपना दमखम दिखाते हुए नजर आने लगे हैं.
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राजस्थान यूनिवर्सिटी प्रदेश की सबसे बड़ा विश्वविद्यालय हैऔर यहां की छात्र राजनीति से निकलकर छात्र नेताओं ने राजनीति की मुख्यधारा में जगह बनाकर राजस्थान के गौरव भी बढ़ाया है.राजस्थान विश्व विद्यालय में एबीवीपी और एनएसयूआई के बीच सीधी टक्कर मानी जाती रही है, लेकिन पिछले चार चुनावों में दोनों ही छात्र संगठनों को मुंह की खानी पड़ी है.साल 2016 से लेकर साल 2019 तक राजस्थान यूनिवर्सिटी में छात्र संघ अध्यक्ष के ताज ने निर्दलीयों के माथे की ही शोभा बढ़ाई है. ऐसे में दो साल बाद इस साल होने जा रहे छात्र संघ चुनावों में एनएसयूआई और एबीवीपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी की वो हार से सिलसिले को खत्म करते हुए जीत का परचम फहराए.
मुख्यमंत्री की हरी झंडी के बाद सजने लगी छात्र संघ चुनाव की बिसात
-प्रदेश के सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी राविवि में दिखने लगा छात्र संघ चुनाव का रंग
-एबीवीपी,एनएसयूआई के साथ ही निर्दलीय ताल ठोकते हुए आ रहे नजर
-पिछले चार साल में एबीवीपी और एनएसयूआई पर भारी रहा निर्दलीय
-2016 में एबीवीपी बागी अंकित धायल ने निर्दलीय के रूप में जीत की हासिल
-2017 में एबीवीपी बागी पवन यादव ने निर्दलीय के रूप में जीत की हासिल
-2018 एनएसयूआई बागी विनोद जाखड़ ने निर्दलीय के रूप में जीत की हासिल
-2019 में एनएसयूआई बागी पूजा वर्मा ने निर्दलीय के रूप में जीत की हासिल
-पिछले 5 चुनावों में एबीवीपी को लगातार हार करना पड़ रहा सामना
-वहीं पिछले 4 चुनावों से एनएसयूआई को जीत का इंतजार
ABVP के लिए बड़ी चुनौती
पिछले चार चुनावों की हार का सिलसिला तोड़ने के लिए इस बार एनएसयूआई पूरी तरह से कमर कसे हुए नजर आ रहा है. संगठन के सामने टिकट की दावेदारी कर रहे छात्र नेता राविवि में अपना दमखम दिखाते हुए नजर आ रहे हैं. एनएसयूआई छात्र नेताओं ने इस बार एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष अभिषेक चौधरी के नेतृत्व में जीत का दावा किया है.हालांकि, साल 2018 और 2019 में जिन छात्र नेताओं ने जीत हासिल की थी वो एनएसयूआई से ही बागी होकर चुनाव लड़े थे.
राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनाव में 2019 में एबीवीपी ने पिछले पांच छात्र संघ चुनाव में हार की पंचवर्षीय योजना पूरी कर ली थी.ऐसे में इस साल एबीवीपी के सामने बड़ी चुनौती होगी की वो छात्र संघ चुनाव में छठी हार से कैसे बचे.
वहीं दूसरी ओर दोनों ही छात्र संगठनों को कड़ी टक्कर देने के लिए निर्दलीय प्रत्याशी भी ताल ठोकते हुए नजर आ रहे हैं,,और इन निर्दलीय प्रत्याशियों में सबसे आगे नाम आ रहा है निर्मल चौधरी का.किसी भी संगठन से चुनाव नहीं लड़ने की पहले ही घोषणा कर चुके निर्मल चौधरी इस समय पूरे दमखम के साथ छात्र संघ चुनाव अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं.
टिकट बंटवारों को लेकर मंथन
बहरहाल, चाहे कांग्रेस हो या फिर भाजपा दोनों ही पार्टियों की नजर हमेशा से ही राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनावों पर रही है. पिछले 5 सालों से जहां एबीवीपी ने भाजपा को निराश किया है तो वहीं पिछले 4 सालों से ये निराशा कांग्रेस पार्टी में भी बनी हुई है, लेकिन दो साल बाद इस साल होने जा रहा छात्र संघ चुनाव किसी भी रूप में कम रोमांचक नहीं होंगे. इसके संकेत अभी से मिलने लगे हैं.क्योंकि जहां इस साल छात्र नेता टिकट की दावेदारी में कोई कसर छोड़ते हुए नजर नहीं आते नजर आ रहे हैं तो वहीं संगठन भी टिकट बंटवारे को लेकर इस बार फूंक-फूंककर कदम रखती हुई नजर आ सकती है.
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