पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष ऊंटों की संख्या घट रही है. आशंका है कि अगर इस दिशा में कुछ कदम नहीं उठाये गये तो ऊंट किताबों और इंटरनेट तक ही सिमट जाएंगे.
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Jaisalmer: रेगिस्तान के जहाज के रूप में विशिष्ट पहचान रखने वाला ऊंट अब विलुप्त होने के कगार पर है. रेगिस्तान के जहाज यानी ऊंट पर इन दिनों संकट के गहरे बादल मंडरा रहे हैं और आने वाले समय में शायद भावी पीढ़ी तो ऊंट को तस्वीरों में ही देख पाए. राज्य सरकार की ओर से ऊंटों की लगातार घटती संख्या को रोकने के लिए और ऊंटों के संरक्षण संवर्धन के लिए उष्ट्र विकास योजना शुरू की गई थी लेकिन जागरुकता के अभाव में यह योजना भी कारगर साबित नहीं हो रही.
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इस योजना के तहत जिले के सभी मूल निवासी ऊंट पालक चाहे वे किसी भी वर्ग से संबंधित हो जिले में पाई जाने वाली सभी उष्ट्र वंशीय नस्लों के लिए सहायता दी जाएगी. इस योजना के तहत सभी ऊंट पालकों को अपना पंजीकरण नजदीकी पशु चिकित्सालय में करवा सकते हैं. पंजीकृत सभी उष्ट्र वंशीय पशुओं को औषधियां, खनिज लवण, कृमिनाशक दवा विभागीय पशुधन की ओर से निशुल्क उपलब्ध करवाई जाएंगी और पंजीकृत ऊंटनी के ब्याने पर उत्पन्न नर या मादा बच्चे को एक महीने की उम्र पर तीन हजार रुपए, 9 माह की उम्र पर तीन हजार रुपए और 18 माह की उम्र पूर्ण करने पर चार हजार रुपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी. पंजीकृत सभी उष्ट्र वंशीय पशुओं का भामाशाह पशु बीमा योजना अंतर्गत बीमा कराया जाना आवश्यक किया गया था.
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पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष ऊंटों की संख्या घट रही है. आशंका है कि अगर इस दिशा में कुछ कदम नहीं उठाये गये तो ऊंट किताबों और इंटरनेट तक ही सिमट जाएंगे. ये हालत तब है जब ऊंट के संरक्षण को लेकर राजस्थान सरकार ने 30 जून, 2014 को इसे राज्य पशु घोषित किया था. जबसे ये अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है परंतु इस रेगिस्तान की जहाज की दुर्दशा कोई भी सरकार नहीं देख रही है. ऊंटों की दुर्दशा को लेकर पर्यटन व्यवसायी भी परेशान है.
राजस्थान की आमदनी का बड़ा जरिया खनन और पर्यटन है. जैसलमेर मुख्य रुप से पर्यटन जिला है. यहां आए दिन देशी-विदेशी सैलानियों की धूम मची रहती है. बाजार पर्यटन से ही गुलजार होते हैं. जैसलमेर आने वाला हर सैलानी अपने मन में ये ख्वाब लेकर आता है कि वो ऊंट की सवारी जरूर करेगा. कैमल सफारी जैसलमेर का विशेष आकर्षण भी है. ये ऊंट स्थानीय लोगों की आमदनी का बड़ा जरिया भी हैं. लेकिन ऊंट की कीमत, खानपान और रखरखाव की बढ़ती दिक्कतों से पालन कम होता जा रहा है. कुछ समय पहले तक यहां के लोगों के लिए ऊंटों का बड़ा महत्व था. ऊंट वाला घर बड़ा समृद्ध समझा जाता था. गांव में ऐसी मान्यता थी कि ऊंटों के बग्ग वाला अमीर घराने का होता है. समय का फेर पलटा और अब सब कुछ बदलता जा रहा है. पर्यटक ऊंट की सवारी जरूर करना चाहता है. पर्यटकों को सजे-धजे ऊंट खासे आकर्षित करते है और इसके लिए वे फोटोशूट में भी काफी दिलचस्पी रखते है. यहां कैमल सफारी के माध्यम से कई पशुपालक अपनी आजीविका चला रहे हैं. ऊँटों द्वारा किया जाने वाला ''ऊंट-नृत्य'' भी खासा लोक-लुभावना पहलू है.
पशुगणना
20वीं पशुगणना के अनुसार साल 2012 से 2019 के बीच एक तिहाई से ज्यादा ऊंट कम हो गए हैं. साल 2012 में देश में ऊंटों की संख्या 0.40 मिलियन थी, जो 2019 में आई 20वीं पशुगणना के मुताबिक 0.25 मिलियन बची है. इस अवधि में 37.1 फीसदी की गिरावट हुई है। वहीं अगर नर और मादा के आंकड़े देखें तो 2012 में 0.19 मिलियन नर ऊंट थे जो 2019 में 56.40 फीसदी गिरकर 0.08 मिलियन बचे. वहीं मादा की बात करें तो 2012 में 0.21 मिलियन से घटकर 0.17 बची है, जो 19.46 फीसदी की गिरावट दिखाता है. वहीं बात अगर सिर्फ राजस्थान की करें तो राजस्थान में साल 2012 में 3,25,713 ऊंट थे, जो साल 2019 में घटकर 2,12,739 ही रह गए हैं. वहीं अगर पिछले तीस सालों के आंकड़े देखें तो राजस्थान में ऊंटों की संख्या में लगभग 85 प्रतिशत की कमी हुई है.
दुर्घटनाओं में मौत, अकाल कर रहा बेसहारा
आए दिन होने वाली रेल और सड़क दुर्घटना में ऊंटों की मौत हो रही है. गत एक वर्ष में रामदेवरा और पोकरण क्षेत्रों में रेल और सड़क दुर्घटनाओं दो दर्जन ऊंटों से अधिक ऊंटों की मौत हो चुकी है. हाल ही में बारिश के अभाव में अकाल का दंश झेल रहे जैसलमेर जिले में ऊंट बेसहारा हो रहे हैं और संरक्षण के अभाव में काल का ग्रास भी बन रहे हैं. जैसलमेर जिले के धोलिया, खेतोलाई, ओढाणिया, मोडरडी, चांदनी, महेशों की ढाणी, चौक आदि आसपास क्षेत्र में ऊंट अभ्यारण्य क्षेत्र विकसित करने की दरकार है. यहां तारबंदी और उसमें पेयजल और चारे की व्यवस्था भी हो. रेलवे ट्रैक और सड़कों के किनारे दोनों तरफ तारबंदी की व्यवस्था हो, ताकि ऊंट रेलवे ट्रैक और सडक़ पर पहुंच नहीं सके और हादसे में काल का ग्रास ना बने. ऊंठो के विचरण के लिए जिले की सबसे बड़ी देगराय ओरण थी जिस पर भी अब निजी कम्पनियों ने अपना कब्ज़ा कर लिया है. ओरण के अंदर बिजली के बड़े बड़े पॉवर हॉउस बनाने शुरू हो गए है. जो आने वाले समय में वहां पशुओं को विचरन पर पाबंदी भी लग जायेगी.
ये है हकीकत
आपको बता दें कि ऊंटों के संवर्धन और संरक्षण के लिए शुरू की गई महत्वाकांक्षी सरकारी योजना का अभी तक जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार प्रसार नहीं के बराबर ही है. अधिकांश ग्रामीणों को योजना का नाम तक मालूम नहीं है. ऐसे में टोडिया के जन्म लेने से पहले से प्रारंभ होने वाली योजना की क्रियान्विति में वे कैसे हिस्सेदारी निभा पाएंगे. विभाग की मानें तो पहले सभी जगहों से प्रस्ताव प्राप्त होंगे. उसके बाद जिला स्तर से अधिकारी जाकर वस्तुस्थिति का जायजा लेंगे और संतुष्ट होने के बाद संबंधित पशुपालक को लाभान्वित किया जाएगा.
ये है खासियत
एक बार में 100 से 150 लीटर पानी पीने वाला ऊंट एक सप्ताह बिना पानी पिए भीषण गर्मी में रह सकता है. इस खासीयत के चलते पश्चिमी राजस्थान के गांवों में ऊंट लंबे अरसे से काफी उपयोगी रहा है. सरकार ने हाल ही में ऊंट की बिक्री और परिवहन पर रोक लगा दी थी. इसका भी विपरीत प्रभाव पड़ा और ग्रामीण इसका कुनबा बढ़ाने में कम रुचि लेने लगे, क्योंकि ऊंट को पालना भी कम खर्चीला नहीं है.
रेगिस्तान का जहाज
रेगिस्तान में 65 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने वाला ऊंट रेगिस्तान का जहाज कहां जाता है. सवारी की दृष्टि से सबसे उत्तम गोमठ नस्ल मानी जाती है. वहीं बोझा ढोने के लिए बीकानेरी ऊंट को श्रेष्ठ माना जाता है. ऊंटों के संरक्षण के लिए बीकानेर में राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की गई है.
ऊंटनी का दूध महंगा : दो से तीन सौ रुपए लीटर बिकता है, कई बीमारियों में बहुपयोगी
ऊंट को राज्य पशु घोषित करने के साथ ही बिक्री और परिवहन पर प्रतिबंध लगाने से पशुपालकों में ऊंट के प्रति रुचि कम हुई है. लोकहित पशुपालक संस्थान की तरफ से सादड़ी में देश में पहली ऊंटनी के दूध की डेयरी स्थापित की गई है. जिससे राज्य में 200 रुपए और दूसरे राज्यों में 300 रुपए प्रति लीटर की कीमत से दूध बेचा जा रहा है. ऊंटनी का दूध मंदबुद्धि, कैंसर, लीवर, शुगर के साथ कई जटिल बीमारियों में औषधि के रूप में उपयोग लिया जाता है.
बच्चे पैदा होने पर 10 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि
राज्य सरकार ऊंटों की संख्या को बढ़ावा देने के लिए राज्य पशु ऊंट के बच्चे पैदा होने पर पशुपालक को 10 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाती है. उसके बाद भी प्रशासन द्वारा इनका प्रचार प्रसार नहीं होने के कारण पशुपालकों को इस संबंध में जानकारी नहीं होने के कारण क्षेत्र में ऊंटों की संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है. यदि सरकार द्वारा ऊंट पालकों को समय पर इनका प्रचार प्रसार करते है तो निश्चित तौर पर ऊंट पालकों को सरकार द्वारा दी जा रही प्रोत्साहन राशि का लाभ मिल सकता है.