जैसलमेर में पढ़ने-लिखने की उम्र मे रस्सी पर चलकर करतब दिखाती मासूम, सरकार से नही मिल रही मदद
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जैसलमेर में पढ़ने-लिखने की उम्र मे रस्सी पर चलकर करतब दिखाती मासूम, सरकार से नही मिल रही मदद

जैसलमेर जिले के फलसूण्ड क्षेत्र मे इन दिनों -खेलने-कूदने और पढ़ाई-लिखाई की छोटी सी उम्र में बच्चियां 6 से 7 फीट की ऊंची रस्सी पर चलकर फलसूण्ड में मौत के खेल का करतब दिखा रही हैं. बच्चियां छत्तीसगढ़ से हैं. बच्चियों के करतब देखकर हर कोई दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर है.

जैसलमेर में पढ़ने-लिखने की उम्र मे रस्सी पर चलकर करतब दिखाती मासूम, सरकार से नही मिल रही मदद

पोकरण: पीढ़ियों से चली आ रही इस परम्परा का निर्वहन करने वाली इन बच्चियों के करतब से ही उनका और उनके परिवार का पेट भी पल रहा है. फलसूण्ड की सड़कों पर करतब दिखा रहीं छोटी बच्चियों की उम्र महज 6 से 9 साल की है. ये उम्र बच्चियों के खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने की है. वहीं शिक्षा की डगर से दूर पापी पेट के लिए ये बच्चियां रस्सी पर मौत का खेल दिखाने को मजबूर हैं. बच्चियां रस्सी से मौत का खेल इतना बेहतर करती हैं कि देखने वाला भी दंग रह जाता है.

दोनों छोर पर 2-2 लोहे के पोल और उस पर 6 से 7 फीट तक ऊंची बंधी 20 फीट की लंबी रस्सी पर यह नन्ही बच्चियां ऐसे चलती है जैसे कोई जमीन पर चल रहा हो. ये बच्चियां रस्सी को इधर-उधर घुमाते हुए, जोर-जोर से हिलाते हुए अलग-अलग करतब दिखाती हैं. रस्सी पर बच्चियों का संतुलन भी गजब का नजर आता है. 20 फीट लंबी रस्सी पर बच्ची नंगे पैर चलती है. बच्चियां रिंग, थाली, चप्पल, सिर पर लौटा लेकर चलकर करतब दिखाती है.

2 कई साल से दिखा रही हैं करतब

करतब दिखाने वाली बच्ची रीना ने बताया कि वह 2 साल से इस तरह के करतब कर रही हैं. उसके माता-पिता ने यह करतब उसे सिखाएं हैं. वह आज तक स्कूल नहीं गई है. लेकिन मां के साथ पढ़ना और लिखना सीख गई हैं. वह बताती हैं कि पिताजी जब उसे रस्सी पर चलने की कला सिखाते थे तब उन्हें डर लगता था, लेकिन अब उन्हें डर नहीं लगता है. वह रस्सी पर चलने के साथ ही सभी करतब आसानी से कर लेती हैं, लेकिन अगर कोई रस्सी को छू जाता है तो गिरने का डर रहता है.

बरसों से चली आ रही है छत्तीसगढ़ के नट परिवार की पुश्तैनी कला

बच्ची के चाचा लालू कुमार नट ने बताया कि छत्तीसगढ़ में गुजरातीनट परिवार में हर घर मे बच्चियां इस तरह के करतब दिखाती हैं. उनके रोजगार का भी यही एक माध्यम है. सरकार की ओर से भी उन्हें कभी कोई मदद नहीं मिलती है. इसी कारण यह काम छोड़ने की इच्छा होने के बाद भी वह काम नहीं छोड़ सकते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि उनके पुरखों की यह कला आज भी जीवित है.

Reporter: Shankardan

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