Chamunda Mata Ahore​: आहोर में है चामुंडा माता का पूर्ण स्वरूप, नवरात्रों में दर्शन करने से पूरी होती है हर कामना
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Chamunda Mata Ahore​: आहोर में है चामुंडा माता का पूर्ण स्वरूप, नवरात्रों में दर्शन करने से पूरी होती है हर कामना

Chamunda Mata Ahore​: आहोर में चामुंडा माता के पूर्ण स्वरूप के दर्शन होते हैं. कहा जाता है कि नवरात्रों में दर्शन करने से  हर कामना पूरी होती है. 

Chamunda Mata Ahore​: आहोर में है चामुंडा माता का पूर्ण स्वरूप, नवरात्रों में दर्शन करने से पूरी होती है हर कामना

Chamunda Mata Ahore​: आहोर कस्बे के दक्षिण में विराजित चामुंडा माता पूरे कस्बे की रक्षा करती हुई प्रतीत होती है. कस्बे की अधिष्ठात्रि देवी मां चामुंडा के बारे में पूरे मारवाड़ में सर सुंधा, धड़ कोटड़ा, पगला पिछोला री पाल. आपो आप विराजौ आहोर में, गले फूलों री माल॥ दोहा जन-जन की जुबान पर है. चामुंडा माता का पूरा शरीर कस्बे में स्थित ऐतिहासिक मंदिर में विराजित है. इस दोहे के अनुसार माताजी का सिर का भाग सुंधा पर्वत पर, धड़ का भाग कोटड़ा में, मां के चरण पिछौला में स्थित है. आहोर में विराजित पूरे शरीर के बारे में तो कोई मतभेद नहीं है. हालांकि कोटड़ा व पिछौला के बारे में मतान्तर है.

हर नवरात्रि में माता के दर्शनों के लिए दर्शनार्थियों की भारी भीड़ उमड़ती है. आहोर माताजी के परचे भी खूब प्रसिद्ध है. इस मंदिर की स्थापना करीब 700 वर्ष पूर्व मानी गई है. लोग बताते है कि कस्बे के संस्थापक ठाकुर वैरिदास थे. उन्होंने ही उस समय इस विशाल आहोर नगर की स्थापना छोटे से गांव आवरी के रूप में की थी. कस्बे की स्थापना के बाद एक समय अनारसिंह को एक रात्रि में देवी ने स्वपन में आकर कहा कि मैं तुम पर प्रसन्न हूं और शीघ्र ही मेरी उत्पत्ति होगी. जहां मेरी मूर्ति मिले वहां से एक बैलगाड़ी में मेरी मूर्ति विराजमान कर गाजे-बाजे के साथ रवाना करना और जहां जाकर बैलगाड़ी अपने आप रुक जाए.

वहीं मुझे स्थापित कर मंदिर बनाना व पूजा-अर्चना करना. इस स्वप्न आने के दृष्टांत के दूसरे दिन सुबह ही कस्बे के डाकीनाड़ा तालाब में एक कुम्हार मिट्टी की खुदाई कर रहा था. अचानक खुदाई के दौरान उसका फावड़ा किसी पत्थर से टकराने की आवाज आई साथ ही मां के चिल्लाने की आवाज भी आई. इस कुम्हार ने पाया कि एक मूर्ति से उसका फावड़ा टकराया है. जिससे उस मूर्ति के गर्दन पर घाव होने से गर्दन झुक गई थी.

खेलते हैं पत्थर-मार होली

इस कुम्हार ने इसी वक्त इसकी सूचना गांव के अनारसिंह को दी. अनारसिंह देवी के परम भक्त थे. सूचना मिलते ही वे ग्रामीणों के साथ खुदाई स्थल पर पहुंचे और बैलगाड़ी पर देवी की मूर्ति विराजित कर बैलगाड़ी को गाजे-बाजे के साथ रवाना किया. जहां बैलगाड़ी रूकी व बैल टस से मस नहीं होने लगे उस स्थान पर देवी की मूर्ति विराजित कर मंदिर का निर्माण करवाया और मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करवाई. मां चामुंडा के आशीर्वाद से यह कस्बा खूब रोशन हुआ. ग्रामीण माताजी के परचे से ही सैंकडों वर्षों तक होली के दूसरे दिन पत्थर मार होली भाटागेर खेलते रहे. इन्हीं परचों के कारण इस मंदिर में आने वाले प्रत्येक भक्त अपना शीश नवाकर खुशहाली की कामनाएं करता है. नवरात्रि महोत्सव के दौरान नौ दिनों तक मंदिर प्रांगण में विशेष महोत्सव का आयोजन किया जाता है.

आहोर में मां चामुंडा मंदिर की स्थापना आज से 400 वर्ष पूर्व हुई थी, उस जमाने में आहोर छोटा से कस्बा था. आज से 13 पीढ़ी पहले पूर्व ठाकुर घराने के ठाकुर अनारसिंह के समय मां चामुंडा की स्थापना आहोर में हुई थी. अनारसिंह मां के अनन्य भक्त थे, जिसका नित्य कर्म था कि सूर्य उदय से पूर्व मां सुंधा माता के दर्शन करना और वापस आहोर आना. इसके लिए अनारसिंह रोजाना घोड़े से कच्चे रास्ते से आहोर से सुंधाजी जाते और वापस आहोर आते थे. जैसा कि परिवार के प्रफुल्ल कवर पूर्व सरपंच आहोर बता रहे हैं कि एक दिन अनारसिंह जब सुंधा माता के दर्शन को निकले तो आहोर कि भाटा गैर खेली जाने वाली जगह के पास ही एक पानी का झालरा था.

खुदाई में निकली मूर्ति 

जहां वर्तमान में राउमाबा विद्यालय बना हैं के पास घोड़ा फिसल गया और अनारसिंह नीचे गिर गए. उस समय अनारसिंह की अवस्था भी हो गई थी तब उन्होंने देवी से इस अवस्था में रोजाना सुंधा जाने के बारे में सोचा तो देवी ने रात को ही स्वप्न में आभास करवाया कि अब आपको सुंधा पर्वत आने की जरूरत नहीं होगी मैं अपने आप आहोर जाऊंगी. उस दौरान जैन पाश्चर्वनाथ के पास स्थित डाकीनाडा तालाब में खुदाई चल रही थी तो किसी के फावड़े से मूर्ति टकराने की आवाज आई जिसपर चारो ओर खुदाई करने के बाद तालाब से मां चामुंडा की मूर्ति मिली. यह बात ठाकुर अनारसिंह को पता चली तो पूरा गांव वहां पहुंच गया.

इसके बाद मूर्ति की कहां स्थापित की जाए इसको लेकर अनारसिंह के कहने पर पूजा पाठ के बाद माता की मूर्ति को बैलगाड़ी पर रख ढोल नगाड़ों के साथ रवाना किया तो कुछ दूर चलकर बैलगाड़ी अपने आप रुक गई. जिसपर अनारसिंह ने उसी स्थान पर मूर्ति स्थापित करवा कर एक मंदिर का निर्माण करवा दिया. तब से लेकर आज दिन तक मां चामुंडा का मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ हैं. मां चामुंडा के प्रांगण में हर साल शारदीय नवरात्रा में गरबा महोत्सव का बड़ा आयोजन किया जाता हैं जिसमें दूर दूर से लोग आते हैं.

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महिषासुर मर्दनी की है मूर्ति

आहोर में स्थापित मूर्ति मां चामुंडा के नाम से ही जानी जाती हैं. आहोर के पूर्व सरपंच प्रफुल्ल कवर का कहना है कि तालाब से जो मूर्ति मिली वो चामुंडा माता की नहीं होकर महिषासुर मर्दनी की हैं. जिसे हमारे कुल की ईष्ट देवी चामुंडा के नाम से ही जाना जाता हैं. दर्शन करने पर नजर आएगा की मूर्ति बाई ओर से झुकी हुई हैं और मूर्ति के पास ही भैसा पड़ा हुआ हैं जो महिषासुर के त्रिशूल के नीचे हैं.

सुंधामाता के दर्शन करने के बाद चामुंडा मां के दर्शन जरूरी

^पौराणिकमान्यता के अनुसार जो व्यक्ति सुंधा माता के दर्शन करता हैं उसे आहोर की चामुंडा के दर्शन करने होते हैं. तभी उसकी तमन्ना पूरी होती हैं. माता के दर्शनार्थ मध्यप्रदेश, गुजरात सहित प्रदेश के विभिन्न जिलों से लोग दर्शनार्थ आते हैं.

यहा है महिषासुर मर्दनी की प्राचीन मूर्ति

आहोर में मां चामुंडा के प्रांगण में गरबा महोत्सव का आयोजन लगभग 45 साल से चल रहा हैं. सुरेश्वर नवयुवक मंडल के संरक्षक केशवलाल रावल ने बताया कि सबसे पहले सुरेश्वर मित्र मंडल बना जो मां चामुंडा के दरबार में गरबों का आयोजन करता था. इसके बाद 1979 में सुरेश्वर नवयुवक मंडल का गठन किया गया जिसके बैनर तले मंडल सदस्यों की ओर से चंदा एकत्रित कर गरबों का आयोजन किया जाता था. मां चामुंडा के दरबार में गरबा महोत्सव में आहोर के श्रीभवानी नवयुवक मंडल, सरियादेवी नवयुवक मंडल, सरस्वती नवयुवक मंडल, अंबिका नवयुवक मंडल, शिव शक्ति नवयुवक मंडल, नव दुर्गा बालिका मंडल, सुंधा माता नवयुवक मंडल आहोर के गरबा महोत्सव में हर साल गरबों की प्रस्तुतियां देने के साथ गुजरात के गरबा मंडल भी प्रस्तुतियां देते हैं.

Reporter- Dungar Singh

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