काशी नहीं राजस्थान के इस कुंड में मिला था पांडवों को मोक्ष, रहस्य जिससे उठ गया पर्दा
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काशी नहीं राजस्थान के इस कुंड में मिला था पांडवों को मोक्ष, रहस्य जिससे उठ गया पर्दा

क्या आपके कभी सोचा आखिर हिमालयन रेंज में जाने से पहले पांचों पांडव राजस्थान की उस खास जगह पर क्यों गए थे. जिसे धर्म की जड़ कहा जाता है. जहां आज भी हिमायलन संतों को देखने का दावा किया जाता है. जो कुछ ही पलों बाद गायब हो जाते हैं. 

काशी नहीं राजस्थान के इस कुंड में मिला था पांडवों को मोक्ष, रहस्य जिससे उठ गया पर्दा

Lohargal dhaam Mystries: हिंदू धर्म ग्रंथ महाभारत में कई ऐसी घटनाएं हैं जिनमें कई पारलौकिक घटनाक्रम और ज्ञान-विज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं. महाभारत की कथाएं सिर्फ योद्धाओं की गाथाओं तक सीमित नहीं है. महाभारत से जुड़े श्राप, वचन और आशीर्वाद में भी रहस्य छिपे हुए हैं. महाभारत की कहानी कौरव पांडवों के बीच 18 दिन तक चले महायुद्ध के बाद समाप्त नहीं होती है. बल्कि महाभारत की कहानी तो युद्ध के बाद से शुरू होती है जो आज भी जारी है. जानकार जानते हैं कि वर्तमान युग भी महाभारत की ही देन है. जो सतयुग,  त्रेता और द्वापर से होती हुई कलयुग तक पहुंचता है. 

क्या आपके कभी सोचा आखिर हिमालयन रेंज में जाने से पहले पांचों पांडव राजस्थान की उस खास जगह पर क्यों गए थे. जिसे धर्म की जड़ कहा जाता है. जहां आज भी हिमायलन संतों को देखने का दावा किया जाता है. जो कुछ ही पलों बाद गायब हो जाते हैं. क्या कभी आपने सोचा है कि राजस्थान की बरखंडी का रहस्य क्या है. श्रीमद्भगवदगीता में लिखा गया है कि महाभारत का युद्ध जब शुरू भी नहीं हुआ था. जब कौरवों और पांडवों की सेनाएं कुरुक्षेत्र में आमने-सामने थीं. उस वक्त ही श्रीकृष्ण के मित्र अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया था और अपने हथियार डाल दिये थे. वो नहीं चाहते थे कि राजपाठ पाने के लिए उन्हें अपने परिवार के लोगों का ही खून बहाना पड़े. 

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बाद में श्री कृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया और अपना विराट रूप दिखाया और उनका कर्तव्य बोध कराते हुए कर्म करते रहने और फल की इच्छा न करने का गीतोपदेश दिया. अर्जुन को ज्ञान प्राप्त हुआ और महाभारत का युद्ध हुआ जिसमें कौरवों की पराजय हुई. पांडवों के कई सगे संबंधी युद्ध में मारे गए. कहा जाता है कि पांडवों में युद्ध का अपराधबोध इतना ज्यादा था कि वो इससे छुटकारा पाए बिना मरना भी नहीं चाहते थे. इसलिए पांडवों ने अपनी पीड़ा भगवान श्रीकृष्ण से कह सुनाई. श्रीकृष्ण ने पांडवों के दर्द को भांपते हुए उन्हें इस अपराध बोध और पाप से मुक्ति मिलने का साधन बताया. 

भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डवों से कहा कि आप सब स्वर्गारोहणी यात्रा शुरू करने से पहले पवित्र सरोवरों और कुंडों के स्नान करें, इससे आप सब पाप मुक्त हो जाएंगे. ये स्नान यात्रा तब तक चलनी चाहिए, जबतक कि ऐसा कुंड या सरोवर ना मिल जाए, जहां स्नान करने से पांडवों के अस्त्र-शस्त्र गल जाएं. श्री कृष्ण की सलाह मानकर पांडव ऐसे कुंड की खोज में भारत भर में निकल पड़े, जहां पर स्नान करने पर उनके अस्त्र शस्त्र गल जाते. अपनी यात्रा के दौरान उन्हें ऐसा कुंड मिला. राजस्थान के झुंझुनूं ज़िले में ये वही कुंड है. जिसे आज हम सूर्य कुंड के नाम से जानते हैं. कहते हैं कि इस कुंड में पांडवों के अस्त्र शस्त्र गल गए. महाबली भीम की गदा और नकुल की तलवार सब गल गये. अर्जुन का धनुष और तुणीर युद्ध के बाद अर्जुन ने वरूण देव को लौटा दिया था.

पुष्कर के बाद लोहार्गल धाम दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है. इस जगह का संबंध भगवान परशुराम, शिव, सूर्य और विष्णु से भी है और इसका नाम है लोहार्गल. यानि जहां पर लोहा भी गल जाए वही है लोहार्गल. हिमाद्री संकल्प में भी चतुर्थ गुप्त तीर्थो में लोहार्गल तीर्थ का नाम उल्लेखनीय हैं. यही नहीं इस तीर्थ स्थल का गर्ग संहिता और पद्मपुराण में भी उल्लेख मिलता हैं, कुंड को सतयुग में ब्रहमऋद्, त्रेतायुग में कान्तिकुई, द्वापर युग में शंखपुरी और कलयुग में लोहागर्ल के नाम से जाना जाता है. पानी की कमी वाले राजस्थान में शानदार कुंड का होना भी अपने आपमें बड़े आश्चर्य और रहस्य से भरा है. लोहागर्ल के कुंड में पानी, गोमुख से आता है. यहां भीम कुण्ड की खुदाई करने पर महाभारत कालीन सिक्के और कलश भी मिले थे. 

लोहार्गल के पानी में क्या है ?
लोहार्गल कुंड से जुड़े गई रहस्य हैं जैसे सूखे और पानी की कमी वाले इलाके में कुंड का होना, कुंड के पानी में ऐसा क्या था कि पांडवों के अस्त्रशस्त्र भी गल गए. अगर पानी में एसिड था, तो फिर पांडवों के शरीह को कोई नुकसान क्यों नहीं हुआ. दावा यहां तक किया जाता है कि उस कुंड में स्नान से कई प्रकार के चर्मरोग भी ठीक हो जाते है. आज भी यहां के पवित्र कुंड के जल में डाले गए सिक्के या लोहे से बना सामान कुछ ही दिनों में गलने लग जाता है. अरावली पर्वतमालाओं के बीच बसे लोहार्गल धाम की परिक्रमा का भी विधान है. हर साल रक्षाबंधन के अगले दिन गोगानवमी से शुरू होकर अमावस्या तक सात दिनों की 24 कोसी यानि 72 किलोमीटर की परिक्रमा यहां की जाती है. 

(Disclaimer: दी गयी सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ज़ी मीडिया किसी भी तरह की मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.)

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