राजस्थान की स्वर्ण नगर जैसलमेर में आज से मरू उत्सव (Desert Festival)की शुरूआत हो रही है. आज यानि 13 फरवरी से 16 फरवरी 2022 तक ये मरू उत्सव आयोजित किया जाएगा.
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Desert Festival: राजस्थान की स्वर्ण नगर जैसलमेर में आज से मरू उत्सव (Desert Festival)की शुरूआत हो रही है. आज यानि 13 फरवरी से 16 फरवरी 2022 तक ये मरू उत्सव आयोजित किया जाएगा. जिससे कोरोना काल में नुकसान झेल रहे पर्यटन व्यवसाय को उम्मीद बंधी हैं.
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मरू उत्सव के दौरान कई कल्चरल इवेंट के साथ सेलिब्रिटीज नाइट का भी आयोजन होगा. पोकरण, खूहड़ी और सम के रेतीले टीलों पर कार्यक्रमों के साथ- साथ मरूश्री, मिस मूमल, मूछ प्रतियोगिता, साफा बांध, मूमल महिन्द्रा, ऊंट श्रृंगार और शान-ए-मरूधरा, पणिहारी मटका रेस प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाएंगी और पर्यटक एडवेंचर स्पोर्ट्स का भी मजा ले सकेंगे. पर्यटन विभाग ने इस बार उत्सव को "उम्मीदों की नई उड़ान" नाम दिया है. जिसमें लोक वाद्ययंत्रों की ताल पर लोक गीतों के सुरीले स्वर और लोक कलाकारों के नृत्य से विदेशी मेहमान भी झूमने को मजबूर हो जाएंगे.
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मरू उत्सव के दौरन जैसलमेर में वो टूरिस्ट प्लेस जहां सैलानियों की रौनक देखने को मिलेगी
सोनार किला- जमीन से 250 फीट की ऊंचाई पर स्थित ये किया सूर्योदय और सूर्यास्त के वक्त सोने सा दमकता है. किला 1500 फीट लम्बा और 700 फीट चौड़ा है, किले में 30-30 फीट ऊंचे 99 बुर्ज बने हैं. दोहरी सुरक्षा व्यवस्था के चलते ये किला हमेशा अभेद्य रहा. महल में भित्ती चित्र और लकड़ी पर की गई बारिक नक्काशी का काम बरबस ही अपनी तरफ आकर्षित करता है.
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गड़सीसर झील- इस झील को राजा रावल जैसल ने बनवाया था और बाद में इसका पुननिर्माण महाराजा गरीसिसार सिंह की तरफ से किया गया. झील का प्रवेश द्वार तिलोन की पोल के जरिए है, इसके महराबो को शानदार और कलात्मक ढंग से पीले बलुआ पत्थर से बनाया गया है. तिलोंन की पोल को हिंदू देवता विष्णु की मूर्ति से सजाया गया है जो 1908 में स्थापित की गई थी.
इमारत बादल विलास- जैसलमेर के अमरसागर पोल के पास मंदिर पैलेस में गगनचुम्बी जहाजनुमा 19वीं शताब्दी की इमारत बादल विलास कलात्मक सुन्दरता के कारण अनूठी कृति है. 5 मंजिलों वाली ये इमारत बारीक नक्काशी कार्य और कलात्मक सुंदरता के लिए जानी जाती है.
पटवों की हवेलियां- 18वीं शताब्दी में सेठ पटवों ने इसका निर्माण कराया था. यहां सुंदर झरोखे बने हैं. पाचों हवेलियों को बाहर की ओर बारीक नक्काशी से सजाया गया है.
दीवान नाथमल की हवेली- पांच मंजिला पीले पत्थर से निर्मित दीवान मेहता नाथमल की हवेली साल 1884-85 में बनी जहां पत्थर पर की गई नक्काशी देखने लायक है.
सालिम सिंह की हवेली-ये एक 6 मंजिला इमारत है जिसके चारों तरफ इसके चारों ओर झरोखे और खिड़कियां हैं. इन झरोखों और खिड़कियों पर अलग-अलग कलाकृति उकेरी गई हैं.
राष्ट्रीय मरू उद्यान अभयारण्य - यहां करीब 700 प्रजातियों की वनस्पति पाई जाती है. जिसमें से केवल घास की ही 107 प्रजातियां हैं. रेतीले क्षेत्रे में सबसे अधिक जो पौधा पाया जाता है वो है सेवन घास. अन्य प्रमुख प्रजातियां हैं- सीनिया, खींप, फोग, बोंवली, भुई, मूरठ, और लाना. केर, लांप, मूरठ, बेर जैसी प्रजातियां पशुओं के चारे के लिए काम में ली जाती हैं. खेजड़ी मरूस्थल का सबसे महत्वपूर्ण पौधा है. यहां के भू-दृश्य को रंग रूप प्रदान करने वाला पौधा रोहिड़ा भी है. अन्य वृक्षों में बेर, बोरडी, कुमठ जाल, आक, थोर, गगूल, टांटियां और गांठिया आदि हैं. इसके अलावा आकल वुड फॉसिल पार्क,सम के धोरे, लौद्रवा और तनोटराय माता मंदिर भी सैलानियों के बीच खासे लोकप्रिय हैं. सैलानियों के लिए जैसलमेर में ठहरने के लिए बजट होटल से लेकर पांच सितारा होटल तक मौजूद हैं जहां राजस्थानी थाली के अलावा हर तरह का खाना मिल जाता है. जयपुर से महज 575 किमी दूर जैसलमेर तक पहुंचने के लिए सड़क या हवाई सफर आसानी से उपलब्ध है.