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Bamanwas: भारत विविधताओं का देश है तो राजस्थान संस्कृतियों का पर्याय! राजस्थान की कला और संस्कृति अपने अनूठे अंदाज के लिए विश्व भर में ख्याति प्राप्त है. राजस्थानी कला- संस्कृति का एक अभिन्न अंग है बहरूपिया कला!वर्तमान में पाश्चात्य संस्कृति के अत्यधिक समावेश एवं मोबाइल युग के चलते बहरूपिया कला अपना अस्तित्व खोने लगी है. एक समय मनोरंजन का महत्वपूर्ण माध्यम माने जाने वाली बहरूपिया कला समय के साथ-साथ लुप्त होने लगी है.
जिले भर में 1-2 बहरूपिया परिवार ही अपनी परंपरागत संस्कृति को जिंदा रखे हुए हैं. उन्हीं में एक परिवार है बौंली का बहरूपिया परिवार. अपनी कला के लिए सूबे में नाम कमा चुके बबलू बहरूपिया विभिन्न किरदार निभाकर राजस्थान के कई जिलों में लोगों का मनोरंजन कर चुके हैं. कोरोना काल में लॉक डाउन के चलते उनके परिवार को आर्थिक संकट से जूझना पड़ा. हालांकि सरकार व विभिन्न सामाजिक संस्थाओं की मदद के चलते उन्हें राहत भी मिली. बबलू बहरूपिया भगवान शिव,नारद,अर्जुन,रावण व कामदेव जैसे आध्यात्मिक किरदार तो निभाते ही हैं साथ ही विभिन्न फिल्मों के किरदार जैसे ठाकुर,सलीम,पागल, मोगेंबो आदि का भी जीवन्त अभिनय कर लोगों का भरपूर मनोरंजन करते हैं. बबलू बहरूपिया न केवल अपनी वेशभूषा व मेकअप से किरदार को बेहतर बनाते हैं वरन अपने डायलॉग डिलीवरी की कला एवं मिमिक्री के माध्यम से किरदारों को अत्यधिक जीवंत बना देते हैं.
हालांकि वर्तमान में बहरूपिया परिवार की परंपरागत कला को इतना सम्मान नहीं मिल पाता जितना कभी मिला करता था. ऐसे में बहरूपिया परिवार को आर्थिक संकट से भी गुजरना पड़ रहा है. एक और हम 5-जी इंटरनेट के दौर में प्रवेश कर चुके हैं और अत्याधुनिक कृत्रिम संसाधनों को ही मनोरंजन का स्रोत मानने लगे हैं. वर्तमान की पीढ़ी आउट डोर मनोरंजन छोड़कर इनडोर गेम वह अन्य तकनीकी संसाधनों पर फोकस कर रही है लेकिन देश की प्राचीन संस्कृति-कला एवं साहित्य का आज भी कोई सानी नहीं है. ऐसे में भारत की विभिन्न संस्कृतियों को जीवंत बनाए रखना आगामी पीढ़ी को सुसंस्कृत बनाने के लिए नितांत आवश्यक है.सोचने वाली बात यह होगी क्या आज के दौर के नौनिहाल कभी मोबाइल एवं टीवी स्क्रीन छोड़कर यथार्थ के धरातल पर चलना सीख पाएंगे.
Reporter-Arvind Singh
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