बंजर जमीन पर बरसे बदरा, मेहनत और हौसले से लहराई फसलें
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बंजर जमीन पर बरसे बदरा, मेहनत और हौसले से लहराई फसलें

आखिरकार शंकर की मेहनत रंग लाई और खेत बुवाई के लिए तैयार हो गया.

शंकरलाल और उसका परिवार

Udaipur: "नया आलम बनाने को नए अवसर नहीं आते, यहीं मिट्टी उभरती है यहीं जर्रे संवरते हैं" कहते है मेहनत का कोई शॉर्टकट नहीं होता है, मेहनत सफलता की तरफ ले जाने वाली पहली सीढ़ी है. एक किसान जब पूरे साल मेहनत करता है, अपना खून पसीना एक करता है तब कहीं जाकर लहलहाती है उसके खेतों में फसलें. 

कुछ ऐसी ही मेहनत, हिम्मत और हौसले कि कहानी है राजस्थान के उदयपुर से 30 किमी दूर पई गाँव के निचला फलां के रहने वाले शंकरलाल भील की जो सालभर पहले अपना बंजर और पथरीला खेत देखकर निराशा के बादलों से घिरे थे, लेकिन फिर उन्होंने कुछ करने की ठानी और अकेले ही अपनी मेहनत से अपने बंजर खेत को फलों, सब्जियों और अनाज की फसलों से गुलजार कर दिया. जो खेत कभी बंजर हुआ करता था, शंकरलाल ने अकेले ही उन्हें उपजाऊ बना दिया और उससे भी बड़े आश्चर्य की बात है कि यह सब उन्होंने सिर्फ एक साल के समय में कर दिखाया. 

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ऐसे बनाया बंजर जमीन को उपजाऊ 

शंकर लाल के पास गांव की पहाड़ी में स्थित खेत में 6 बीघा जमीन थी, इसमें से भी 2 बीघा जमीन किसी काम की नहीं थी. लेकिन शंकर के पास जो था वह बस यही जमीन थी, जो उनकी रोजी रोटी का जरिया थी. जो उसे उसके पुरखों से विरासत में मिली थी. इस खेत को ऐसे ही बंजर छो़ड़कर जाने की बजाय, शंकरलाल ने खुद गेंती-फावड़ा चलाकर बंजर जमीन को समतल करना शुरू किया. इस काम में उसकी पत्नी और बच्चों ने भी उनकी मदद की. कहते है शिद्दत से की गई  मेहनत कभी विफल नहीं जाती, कुछ ही समय में शंकर के खेत समतल हो गए और फसल बोन के लिए तैयार हो गये. इस दौरान खेत से निकले पत्थरों को भी शंकर ने फेंका नहीं बल्कि उनसे खेत के चारों ओर बाड़बंदी कर ली, जिससे खेत जानवरों से भी सुरक्षित हो गया.

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लोग बनाते थे मजाक
शंकरलाल को बंजर जमीन पर मेहनत करते देखकर कुछ लोगों ने उनका मजाक बनाया. कुछ लोगों ने कहा कि यहां बंजर जमीन में मेहनत करने से अच्छा है कि शहर जाकर मजदूरी करो यहाँ कुछ नहीं मिलने वाला. इस बंजर जमीन पर मेहनत करके तुम फालतू में ही अपना समय खराब कर रहें हो, यहाँ से कुछ हासिल नहीं होने वाला लेकिन शंकर ने उनकी बात नहीं सुनी और अपनी धुन में काम करते रहा.कई तरह की तकलीफें आई लेकिन शंकर के इरादें को डगमगा नहीं पाई और कुछ महीनों बाद शंकर का खेत फसल की बुवाई को तैयार हो गया. अब इन्तजार था तो सिर्फ मानसून के मेहरबान होने का और  

रंग लाई शंकर की मेहनत
आखिरकार शंकर की मेहनत रंग लाई और खेत बुवाई के लिए तैयार हो गया,जिसमें शंकर ने अपनी उम्मीदों के बीज बो दिए. समय बदला मौसम ने करवट ली और आज शंकरलाल के खेतों में कई तरह के फल-सब्जियां और अनाज उगाते हैं. इतना ही नहीं अपने बंजर कहें जाने वाले खेत में शंकरलाल आज जैविक खेती करते है. साथ ही अपने  जैविक फल सब्जियों को बाजार में बेच कर ख़ुशी से अपना गुजरा करते है. जो लोग कभी शंकर पर हँसते थे, उनका मजाक बनाते थे, आज वही लोग शंकर से खेती कैसे की जाय, जमीन को उपजाऊ कैसे बनाया जाए इन सब सवालों का हल लेने आते हैं. सबकी बातों के जवाब में शंकरलाल कहते हैं कि वे मेहनत से कभी पीछे नहीं हटे, इसी का नतीजा है कि आज उनकी बंजर जमीन उपजाऊ है.

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