Dusshera 2021: कोरोना के चलते सरकार ने आतिशबाजी पर लगाई रोक, अनोखे ढंग से किया जाएगा आयोजन
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Dusshera 2021: कोरोना के चलते सरकार ने आतिशबाजी पर लगाई रोक, अनोखे ढंग से किया जाएगा आयोजन

 दशहरे (Dusshera) के अवसर पर हर वर्ष धूमधाम से रावण का दहन किया जाता है.

चित्तौड़गढ़ में गोनंदी संरक्षण समिति ने रावण दहन को लेकर की तैयारी

Chittorgarh: दशहरे (Dusshera) के अवसर पर हर वर्ष धूमधाम से रावण का दहन किया जाता है. बड़े मेले लगते हैं खूब आतिशबाजी होती है. बड़े बड़े आयोजन होते हैं, लेकिन इस बार कोरोना के चलते सरकार ने आतिशबाजी और बड़े आयोजनों पर रोक लगा दी है. ऐसे समय में चित्तौड़गढ़ (Chittorgrah) में गोनंदी संरक्षण समिति ने रावण दहन की गलत मान्यताओं को दूर करने का बीड़ा उठाया है. कल दशहरे के अवसर पर चित्तौड़गढ़ में नए और अनोखे ढंग से दशहरे का आयोजन होगा. 

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दशहरे के अवसर पर देश में पहली बार लंबे समय से चली आ रही परंपरा के विपरीत सनातन और शास्त्रों के अनुसार रावण दहन करने की तैयारी की जा रही है. राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में कल दशहरे के अवसर पर नए और अनूठे तरीके से रावण दहन होगा. इसके लिए रावण का करीब 8 फीट का पुतला गाय के गोबर और अन्य सामग्री से तैयार किया गया है. देश में पहली बार ऐसा होगा जब रावण का दहन पुतले को खड़ा करके नहीं बल्कि लिटाकर किया जाएगा. दहन के दौरान सनातन परंपराओं में अंतिम संस्कार की समस्त क्रियाओं को पूरा किया जाएगा.

आयोजन समिति के संयोजक पंडित विष्णु शर्मा बताते हैं कि देश में लंबे समय से रावण दहन की गलत परंपरा चली आ रही है. इस परिपाटी को बदलने की जरूरत है. रावण ब्राह्मण था योद्धा था वीर था तो उसके दहन के अवसर पर शोक बनाने की आवश्यकता नहीं बल्कि शास्त्रों के मुताबिक उसका दहन होना चाहिये. वाल्मीकि रामायण में या शास्त्रों में कहीं भी रावण के दहन पर उत्सव या आतिशबाजी का उल्लेख नहीं है. बाजारवाद के इस दौर में रावण का दहन एक तमाशा बन गया है. हमारी कोशिश है कि इस तमाशे को खत्म करके दशहरे की सही और सार्थक परंपरा को आगे बढ़ाया जाए.

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चित्तौड़गढ़ में दशहरे के अवसर पर रावण दहन के पश्चात दीपावली की तैयारियों के लिए भगवान राम के आगमन पर स्वागत के लिए 1008 गांव में गाय से बने दीपक भिजवाए जाएंगे. जिनका उपयोग दीपावली के अवसर पर मंदिरों पर रोशनी के लिए किया जाएगा. निश्चित तौर पर यह बदलाव सराहनीय है चित्तौड़गढ़ से शुरू होने वाली इस परंपरा का असर आने वाले समय में देश के अन्य शहरों और राज्यों में भी दिखाई देगा.

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