Holi Story 2023: उदयपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूर जवार की पहाड़ियों पर हिरण्यकश्यप का महल मौजूद है.आज भी होलिका को भस्म करने वाला कुंड मौजूद है. कहा जाता है कि मरूधरा में होलिका दहन की परंपरा शुरूआत इसी स्थान से हुई.
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Holi Story 2023: राजस्थान के उदयपुर (Rajasthan Udaipur) जिले से ही होलिका दहन की शुरुआत हुई थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार कभी उदयपुर के जवार में राजा हिरण्यकश्यप का शाही महल था. जहां आज भी होलिका को भस्म करने वाला कुंड मौजूद है. इस स्थान पर प्रह्लाद को गोद में लेकर होलिका जली थी. हिरण्यकश्यप राक्षस प्रवृति का था इसलिए उसकी देवताओं से नहीं बनती थी. उसके राज्य में हरिनाम जपने वाला हर कोई उसका दुश्मन था.
हिरण्यकश्यप (hiranyakashyap) का वध भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर किया था. हिरण्यकश्यप का एक पुत्र हुआ जिसका नाम उसने प्रह्लाद (prahlad kund) रखा. प्रहलाद जन्म से ही भगवान विष्णु का भक्त था और विष्णु जी की पूजा अर्चना में लगा रहता था. लेकिन हिरण्यकश्यप को यह अच्छा नहीं लगा कि राक्षस कुल का उसका बेटा भगवान का पूजा करें. इसलिए उसने कई बार प्रहलाद को भगवान विष्णु की पूजा नहीं करने के लिए कहा लेकिन प्रहलाद नहीं माना और वह विष्णु जी की पूजा में लगा रहा. प्रहलाद को मारने के लिए होलिका (Holika) की गोद में बैठाया जब समझाने के बाद भी प्रहलाद ने विष्णु जी की भक्ती नहीं छोड़ी तो हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को तमाम यातनाएं दीं. लेकिन प्रहलाद को हर बार भगवान विष्णु ने बचाया.
जब प्रहलाद को कोई हानि नहीं हुई तो हिरण्यकश्यप ने उसे खत्म करने के लिए आग में भस्म न होने का वरदान प्राप्त अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर हवन कुंड पर बैठा दिया. लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका आग में जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रहलाद बच गया. तब से होली का का पर्व मनाया जाने लगा. बाद में भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया.
जिस स्थान पर होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि कुंड में बैठी थी, वह उदयपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूर जवार की पहाड़ियों पर हिरण्यकश्यप का महल मौजूद है. हालांकि यह महल अब जीर्णशीर्ण अवस्था में है. इस महल को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह विशालकामय महल कितना भव्य और बड़ा होगा. इस महल के बारे में लोग कहते है कि कई सदियों से स्थित है. हमारे पूर्वजों हमेशा इस महल के बारे में हमें बताते चले आ रहे है. होलिका के मौके पर गुजरात और आसपास के इलाके के लोग यहां पूजा करने आते हैं. यहां पास में होलिका कुंड भी मौजूद है. कहा जाता है कि इसी स्थान पर होलिका भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठी थी.
मंदिर के बाहर एक विशाल द्वार हैं. यहां के पुजारी ने बताया कि इस द्वार को भक्त प्रह्लाद द्वार कहते है. पुजारी ने बताया कि पहले हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था लेकिन जब उसका भाई हिरण्याक्ष भगवान विष्णु के हाथों मारा गया तब वह भगवान विष्णु के नाम से द्वेश रखने लगा. कहा जाता है कि भगवान विष्णु की माया के अनुसार ही हिरण्यकश्यप के घर भक्त प्रहलाद का जन्म हुआ. हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष ऋषि कश्यप के पुत्र थे और उसकी माता का नाम अदिती था. जब यह दोनों पैदा हुए तो इनकी माता अदिती ने भगवान से पूछा था कि उनके पुत्र कैसे होंगे, तब उन्होंने कहा था कि पहले तो यह भगवान को पूजेंगे लेकिन बाद में दोनों बैर रखेंगे और वैसा ही हुआ.
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद हुआ जो भगवान विष्णु की भक्ती में लीन रहने लगा. यह देखकर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए कई बार प्रयास किया. प्रहलाद को इसी कुंड में फेंका और फिर अपनी बहन होलिका जिसे वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी की गोद में बैठा कर किसी कुंड में आग में बैठाया था लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका भस्म हो गई और भक्त प्रहलाद बच गया. तबसे मरूधरा में होलिका दहन की परंपरा शुरूआत हुई.