'मुझे तुमसे बिछड़ना ही पड़ेगा..' नहीं रहे मशहूर शायर फहमी बदायूंनी, पढ़ें उनके दिल छू लेने वाले शेर
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'मुझे तुमसे बिछड़ना ही पड़ेगा..' नहीं रहे मशहूर शायर फहमी बदायूंनी, पढ़ें उनके दिल छू लेने वाले शेर

Fahmi Badayuni: फहमी बदायूंनी की शायरी ने सिर्फ उर्दू अदब के विद्यार्थियों के बीच ही नहीं नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर भी धूम मचाई. उनके कई शेर हाल के दिनों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जमकर वायरल हुए.

'मुझे तुमसे बिछड़ना ही पड़ेगा..' नहीं रहे मशहूर शायर फहमी बदायूंनी, पढ़ें उनके दिल छू लेने वाले शेर

Fahmi Badayuni Passes Away: उर्दू अदब के जाने-माने शायर फहमी बदायूंनी का 72 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. 4 जनवरी 1952 को उत्तर प्रदेश के बदायूं के बिसौली जिले में जन्मे फहमी साहब ने अपने शब्दों के जादू से शायरी की दुनिया में एक अनोखी पहचान बनाई. उनकी शायरी की खासियत यह थी कि आम बोलचाल की भाषा में गहरी बातें कहने का उनका अंदाज हर किसी को आकर्षित करता था. उनके निधन पर कांग्रेस नेता इमरान प्रतापगढ़ी ने एक्स पर दुख जताते हुए लिखा, अलविदा फहमी बदायूंनी साहब, आपका जाना उर्दू अदब का बड़ा नुकसान है.

छोटी बहर में बड़े शेर कहने की कला..

फहमी बदायूंनी का जीवन संघर्षों से भरा रहा. कम उम्र में ही परिवार की जिम्मेदारी के चलते उन्हें लेखपाल की नौकरी करनी पड़ी, लेकिन उनकी आत्मा ने हमेशा शेर-ओ-शायरी में सुकून पाया. विज्ञान और गणित में भी अच्छी जानकारी रखने वाले फहमी साहब ने अंततः नौकरी छोड़कर पूरी तरह से शायरी को अपना जीवन समर्पित कर दिया. उनकी शायरी खासकर छोटी बहर में बड़े शेर कहने की कला के लिए पहचानी जाती थी, जो नई नस्ल के शायरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई.

सोशल मीडिया पर भी धूम मचाई

फहमी बदायूंनी की शायरी ने सिर्फ उर्दू अदब के विद्यार्थियों को ही नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर भी धूम मचाई. उनके कई शेर हाल के दिनों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जमकर वायरल हुए, जिन्हें युवाओं ने बेहद पसंद किया. खासकर उनकी आसान और सादगी से भरी शायरी ने नई पीढ़ी को साहित्य से जोड़ा. उनकी लेखनी ने उर्दू साहित्य की नई नस्ल के शायरों के लिए एक मजबूत नींव तैयार की, जिस पर आने वाली पीढ़ियां अपनी गज़लें लिखेंगी.

सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते

मंचों पर भी फहमी बदायूंनी का जादू सिर चढ़कर बोलता था. जब वह अपने शेरों को अपनी खास अदा में पढ़ते थे, तो सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे. उनके जाने के बाद आज उर्दू अदब ने एक महान शायर को खो दिया है, लेकिन उनके चाहने वाले उन्हें हमेशा उनके शेरों के जरिए याद करते रहेंगे. फहमी बदायूंनी का योगदान उर्दू साहित्य में हमेशा अमर रहेगा, और उनकी शायरी आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनी रहेगी.

आइए उनके कुछ चुनिंदा शेरों पर नजर डालते हैं.

- पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा, कितना आसान था इलाज मिरा 

- मैं ने उस की तरफ़ से ख़त लिक्खा, और अपने पते पे भेज दिया 

- परेशाँ है वो झूटा इश्क़ कर के, वफ़ा करने की नौबत आ गई है 

- ख़ुशी से काँप रही थीं ये उँगलियाँ इतनी, डिलीट हो गया इक शख़्स सेव करने में 

- काश वो रास्ते में मिल जाए, मुझ को मुँह फेर कर गुज़रना है

- तेरे जैसा कोई मिला ही नहीं
कैसे मिलता कहीं पे था ही नहीं

- घर के मलबे से घर बना ही नहीं
ज़लज़ले का असर गया ही नहीं

- मुझ पे हो कर गुज़र गई दुनिया
मैं तिरी राह से हटा ही नहीं

- कल से मसरूफ़-ए-ख़ैरियत मैं हूँ
शेर ताज़ा कोई हुआ ही नहीं

- रात भी हम ने ही सदारत की
बज़्म में और कोई था ही नहीं

- यार तुम को कहाँ कहाँ ढूँडा
जाओ तुम से मैं बोलता ही नहीं

- याद है जो उसी को याद करो
हिज्र की दूसरी दवा ही नहीं

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