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नई दिल्ली: आज से लगभग एक हज़ार साल पहले, पूरी दुनिया की GDP में भारत की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत के आसपास थी. यानी तब भारत पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा इंजन था. पश्चिमी देश, इस इंज़न के पीछे लगी बोगियों की तरह थे. तब ग्लोबल GDP में पश्चिमी यूरोप के देशों की हिस्सेदारी सिर्फ़ 14 प्रतिशत थी. जबकि 25 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ दूसरे स्थान पर चीन था.
उस समय कपास और इससे बनने वाले कपड़ों का सबसे ज़्यादा उत्पादन भारत में होता था. भारत के मसालों की मांग पूरी दुनिया में थी. सोना, चांदी, तांबा और कीमती पत्थर, भारत कई देशों को निर्यात करता था. हमारे देश की चीनी, कई देशों में भेजी जाती थी. जबकि चावल, चंदन, केसर और भारत में बने कालीन और शॉल दुनियाभर में प्रसिद्ध थे. इनकी मांग इतनी होती थी कि कई देश, लाइन लगा कर खड़े होते थे. उस समय भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था.
जब 12वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई तो इस दौरान भारत के बड़े बड़े शहर और उद्योगों को नुकसान पहुंचाया गया और इनकी लूट शुरू हो गई. 14वीं शताब्दी तक दुनिया की GDP में भारत की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत से घट कर 25 प्रतिशत रह गई थी.
इसके बाद 15वीं शताब्दी में जब मुगल भारत आए, तब भी हमारे देश को जमकर लूटा गया. जब भारत पर मुगलों का शासन था, उसी दौर में पश्चिमी देशों में विज्ञान और अविष्कारों को महत्व दिया जा रहा था.
उदाहरण के लिए, इटली के महान Astronomer.. Galileo Galilei ने इस दौरान कई खोज की. दुनिया को Laws of Motion और Gravity का सिद्धांत देने वाले.. Isaac Newton का जन्म भी इस दौरान हुआ. जर्मनी के महान Astronomer.. Johannes Kepler (जोहनेस केपलर) और मशहूर गणितज्ञ Nicolaus Copernicus (निकोलस कोपरनिकस) का जन्म भी इसी दौर में हुआ. इन सबने मिल कर आधुनिक विज्ञान की नींव रखी, जो पश्चिमी देशों को आर्थिक रास्ते पर फुल स्पीड में काफ़ी आगे ले गई.
वहीं मुगलों की बेड़ियों में जकड़ा भारत वहीं खड़ा रहा. दुनिया की GDP में हमारी हिस्सेदारी लगातार घटती रही. वर्ष 1800 आते आते हम 32 प्रतिशत से सीधे 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी पर आ गए थे. जबकि पश्चिमी यूरोप की हिस्सेदारी इस दौरान, 14 प्रतिशत से बढ़ कर 25 प्रतिशत के पास पहुंच गई थी. 18वीं शताब्दी में जब मुगलों के बाद अंग्रेज़ों का शासन आया, तब अंग्रेज़ों ने भी भारत के लोगों का मनोबल तोड़ दिया.
अंग्रेज़ों ने इस देश में रह कर ये धारणा पैदा की, कि वो हर चीज़ में हमारे देश से बेहतर हैं. ये वही दौर था, जब भारत में वेदों की संस्कृति कमज़ोर पड़ने लगी. आधुनिक विज्ञान की तुलना में आयुर्वेद का महत्व सीमित रह गया. योग को हम भूल गए. भारत के लोगों ने ये मान लिया कि अब अंग्रेज़ ही इस देश का कुछ कर सकते हैं.
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— Zee News (@ZeeNews) January 25, 2022
1757 से 1947 तक दुनिया की GDP में भारत का पतन जारी रहा. 1950 आते आते, जब भारत का संविधान लागू हुआ, तब वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारे देश की हिस्सेदारी 5 प्रतिशत तक सिमट कर रह गई. जबकि पश्चिमी यूरोप और अमेरिका जैसे देश अमीर बन गए. 1980 तक ग्लोबल GDP में पश्चिमी यूरोप और अमेरिका की हिस्सेदारी 28-28 प्रतिशत हो गई थी.
हालांकि उस समय भी चीन की स्थिति भारत जैसी ही थी. वहां भी वर्ष 1949 में पहली बार Communist शासन आया था, जब भारत को आज़ाद हुए एक साल ही हुए थे. उस समय वैश्विक अर्थव्यवस्था में उसकी हिस्सेदारी भी भारत की तरह पांच प्रतिशत थी लेकिन चीन ने भारत की तरह Copy Paste के सिद्धांत को नहीं अपनाया. 1980 के दशक में, जब Mao Zedong वहां के राष्ट्रपति बने, उन्होंने अपनी नीतियों को अपने लोगों के हिसाब से तय किया. Made in China की शुरुआत की. इसके बाद चीन भारत से काफ़ी आगे निकल गया.
वर्ष 2020 में ग्लोबल GDP में चीन की हिस्सेदारी लगभग 18 प्रतिशत थी. अमेरिका की 17 प्रतिशत, पश्चिमी यूरोप की 16 प्रतिशत और भारत की हिस्सेदारी मात्र 7 प्रतिशत रह गई है. यानी 1950 से 2020 के बीच 70 वर्षों में भारत की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत ही बढ़ी. या आप कह सकते हैं कि हमारा देश केवल दो कदम ही चल पाया.
आर्थिक तरक्की के रास्ते पर भारत इतनी बड़ी दुर्घटना का इसलिए शिकार हुआ क्योंकि इस देश पर कई सदियों तक विदेशी आक्रमणकारियों का शासन रहा. 1820 में जब ब्रिटेन से औद्योगिक क्रान्ति की शुरुआत हुई, तब भारत ने इस क्रान्ति को पूरी तरह मिस किया. आज़ादी के बाद भी हमारा देश धर्म और जाति की सोशल इंजीनियरिंग में फंसा रहा. जबकि देश को Financial Engineering की ज़रूरत थी.
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जब इंदिरा गांधी इस देश की प्रधानमंत्री थी, तब कहा जाता था कि भारत की अर्थव्यवस्था एक हाथी की तरह है, जो शान से तो चल रहा है, लेकिन इसकी रफ्तार धीमी है और हमेशा धीमी ही रहेगी. हमारे देश के नेताओं ने अपने फायदे और सत्ता के लालच के लिए इस देश को कभी भी सफल बनाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया. बल्कि वो Copy Paste में विश्वास करते चलते गए.
अगर इस पूरी स्थिति को समझें तो आपको पता चलेगा कि पिछले कुछ वर्षों में केन्द्र सरकार द्वारा जो योजनाएं लाई गई है, उनकी भारत को कितनी ज़रूरत है. वर्ष 2014 में Make in India अभियान लॉन्च हुआ. फिर कौशल विकास के लिए Skill India Campaign लॉन्च हुआ. भारत की Work Force में ज्यादा से ज्यादा महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान शुरू हुआ.
वर्ष 2019 में भारत की Work Force में महिलाओं की भागीदारी लगभग 20 प्रतिशत थी. यानी हर 100 महिलाएं, जो कोई भी कार्य करने के लिए सक्षम हैं, उनमें से 20 ही काम कर पा रही थीं. जबकि बांग्लादेश में महिलाओं की यही भागीदारी लगभग 30 प्रतिशत, श्रीलंका में 34 प्रतिशत, चीन में 60 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया में 53 प्रतिशत, सिंगापुर में 61 प्रतिशत और इज़रायल में 45 प्रतिशत है. इससे आप समझ सकते हैं कि भारत को बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ भारत अभियान की कितनी ज़रूरत थी.