भारतीय वायुसेना को मिला रूस का बड़ा तोहफा, जानिए कैसे बनाएगा भारत को शक्तिशाली
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भारतीय वायुसेना को मिला रूस का बड़ा तोहफा, जानिए कैसे बनाएगा भारत को शक्तिशाली

भारतीय वायुसेना के लिए रूस से आने वाली 72,000 AK 103 Rifles की खेप भारत पहुंच गई है. भारतीय वायुसेना ने अगस्त में इनके इमर्जेंसी खरीद के लिए रूस से सौदा किया था. वायुसेना इन राइफलों का इस्तेमाल अपने गरुड़ कमांडोज के लिए करेगी. 

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली: वायुसेना के स्टेशन कई बार आतंकवादी हमलों (Terrorist Attacks) का निशाना बने हैं जिनकी सुरक्षा के लिए वायुसेना अपनी स्पेशल फोर्स गरुड़ कमांडोज (Garud Commandos) पर निर्भर है. आपको बता दें कि भारतीय सुरक्षा बलों में अभी तक केवल नौसेना की स्पेशल फोर्स मरीन कमांडोज (Navy Special Forces Marine Commandos) ही AK 103 Rifles का इस्तेमाल करते हैं. 

  1. भारतीय वायुसेना को मिला रूस का तोहफा
  2. रूस की AK 103 Rifles पहुंची भारत
  3. गरुड़ कमांडोज करेंगे इस्तेमाल

आतंकवादियों की ताक पर वायुसेना बेस

वायुसेना के बेस लगातार आतंकवादियों के निशाने पर हैं. वायुसेना 2016 में अपने पठानकोट बेस पर हुए आतंकवादी हमले के बाद गरुड़ कमांडोज के लिए अच्छे हथियार की तलाश में थी. 27 जून को जम्मू में वायुसेना बेस (Air Force Base) पर हुए हमले के बाद वायुसेना ने अगस्त में रूस के साथ लगभग 300 करोड़ रुपए में AK 103 Rifles का सौदा (Deal) किया था. गरुड़ कमांडो को गलील और नेगेव लाइट मशीनगन के अलावा इजराइली टवोर असॉल्ट राइफलों (Tavor Assault Rifles) से लैस किया जाता है.

AK 103 Rifles कैसे करेंगी वायुसेना की मदद?

हाल ही में अमेरिका से आयातित (Imported) लगभग 1.5 लाख सिग सॉर असॉल्ट राइफलों (Sig Sauer Assault Rifles) में से 4,000 को गरुड़ कमांडोज को दिया गया था. लेकिन गरुड़ कमांडोज को ज्यादा तादाद में अत्याधुनिक हथियारों की जरूरत थी इसलिए AK 103 Rifles का इमर्जेंसी सौदा किया गया था. AK 103 Rifles इस सीरीज की सबसे अच्छी राइफलों में से गिनी जाती हैं. इनका वजन 3.6 kg होता है और इसमें 7.62 mm कैलिबर के 30 राउंड की मैगजीन लगाई जा सकती है. इस राइफल के फायर की रफ्तार 600 राउंड प्रति मिनट होती है और ये 500 मीटर तक अचूक निशाना लगा सकती है. इसमें नाइट विजन डिवाइस सहित दूसरी साइट्स लगाने की सुविधा होती है. 

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दुश्मनों के लिए कमांडोज का खास प्रशिक्षण

गरुड़ कमांडोज वायुसेना के बेसों की सुरक्षा के अलावा दुश्मन के इलाकों में कमांडो हमलों (Commando Attacks) के लिए भी प्रशिक्षित किए जाते हैं. इसके अलावा गरुड़ कमांडोज की जिम्मेदारी विदेशों में भारतीय वायुसेना के बेसों की सुरक्षा, दुश्मन के इलाके में टोह लेना, आतंकवाद विरोधी अभियान, दुश्मन के इलाके से अपने वायुसैनिकों को निकालकर लाना, दुश्मन की हवाई सुरक्षा की टोह लेना जैसे बेहद संवेदनशील काम भी हैं. 

गरुड़ कमांडोज की बढ़ी जिम्मेदारी

गरुड़ कमांडो फोर्स (Garud Commando Force) वायुसेना के सभी बेसों के अलावा वायुसेना के दूसरे महत्वपूर्ण ऑफिसों की भी सुरक्षा करती है. वायुसेना के उच्चाधिकारियों की सुरक्षा का दायित्व भी गरुड़ कमांडो फोर्स पर ही है. इसके अलावा गरुड़ कमांडोज को कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में भी तैनात किया गया है. 2019 से गरुड़ कमांडो को जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र बल विशेष अभियान प्रभाग (Armed Forces Special Operations Division) में भी तैनात करना शुरू किया गया है.

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चीनी हमलों से भी करते हैं सुरक्षा

2020 में भारत और चीन के बीच लद्दाख में शुरू हुए तनाव के बाद गरुड़ कमांडोज को लद्दाख में रणनैतिक महत्व (Strategic Importance) की चोटियों पर तैनात किया गया था. उनकी जिम्मेदारी चीनी हवाई हमलों (Chinese Air Strikes) से सुरक्षा प्रदान करना है. गरुड़ कमांडो कॉर्पोरल गुरसेवक सिंह को 2016 में पठानकोट हमले के दौरान वीरगति प्राप्त हुई थी और उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र (Shaurya Chakra) से सम्मानित किया गया था. 

कमांडो कॉर्पोरल जेपी निराला को मिला सर्वोच्च पुरस्कार

18 नवंबर 2017 को कश्मीर के बांदीपोरा में कुख्यात आतंकवादियों को मुठभेड़ में मारने वाले गरुड़ कमांडो कॉर्पोरल जेपी निराला को मरणोपरांत शांति काल में वीरता का सर्वोच्च पुरस्कार अशोक चक्र (Ashoka Chakra) प्रदान किया गया है.  

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