समझौता ब्लास्ट केस: NIA कोर्ट ने असीमानंद समेत सभी आरोपियों को बरी किया
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समझौता ब्लास्ट केस: NIA कोर्ट ने असीमानंद समेत सभी आरोपियों को बरी किया

पहले 11 मार्च को फैसला आना था लेकिन पाकिस्तान की एक महिला राहिला वकील द्वारा भारतीय वकील के माध्यम से लगाई गई याचिका के कारण फैसला टला था.

पानीपत के बहुचर्चित समझौता ब्लास्ट मामले में NIA कोर्ट ने असीमानंद समेत सभी चारों आरोपियों को बरी कर दिया है.

पानीपत: पानीपत के बहुचर्चित समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट मामले में हरियाणा की पंचकूला स्थित स्पेशल एनआईए कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए चारों आरोपियों स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को बरी कर दिया है. आरोपीयों के वकील मुकेश गर्ग ने बताया एनआईए पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर पाई, सबूतों के आभाव के कारण चारों आरोपी बरी हो गए. मुकेश गर्ग ने बताया कि किसी भी चार्ज में आरोपीयों को दोषी नहीं ठहराया गया और चारों आरोपीयों को सभी चार्जस में बरी किया गया है.

वहीं एनआईए के वकील आरके हांडा ने कहा कि मामला 2007 का था और एनआईए को जांच 2010 में सौंपी गई और 3 सालों में डायरेक्ट एवीडेंसिंस पर कहीं न कहीं प्रभाव पड़ता है. हांडा के मुताबिक मामले में कुल 299 गवाह थे लेकिन सुनवाईयों के दौरान काफी गवाह होस्टाइल हो गए थे जिसके कारण लिंक टूटा और मजबूत केस कमज़ोर पड़ा और नतीज़न सभी आरोपीयों को एनआईए कोर्ट ने बरी कर दिया है.

सबूतों के आभाव में बरी हुए चारों आरोपी
समझौता ब्लास्ट मामलें में 11 मार्च को फैसला आना था, लेकिन फैसला सुनाए जाने से ठीक पहले वकील मोमिन मालिक के जरिये पाकिस्तान की महिला राहिला वकील ने सेक्शन 311 के तहत एनआईए अदालत में एक अर्जी दायर की थी. और गवाही देने की अनुमति मांगी थी.राहिला के वकील मोमिन मलिक ने अदालत में तर्क दिया था कि पाकिस्तानी पीड़ितों और गवाहों को गवाही का मौका नहीं मिला है. उन्हें समन तामील नहीं हो पाए हैं. इसलिए उन्हें मौका दिया जाना चाहिए.बुधवार को पाकिस्तानी महिला की याचिका को खारिज करने के बाद एनआईए कोर्ट ने 12 साल पुराने इस मामलें में अचानक फैसला सुना दिया. जिसके बाद चारों आरोपीयों और उनके समर्थकों के चेहरे खिल गये. स्वामी असीमानंद ने इसे सच्चाई की जीत बताया है. 

पाकिस्तान की महिला राहिला वकील को नहीं मिला गवाही देने का मौका
राहिला वकील दृारा डाली याचिका को एन आई ए कोर्ट ने इसलिए खारिज कर दिया क्योकिं सबसे पहले राहिला वकील का नाम पाकिस्तान के 13 गवाहों में से नहीं था इसके साथ ही उसके दृारा भेजी गई पहली अर्जी में उसके साईन नहीं थे. एनआईए के वकील आर के हांडा ने बताया कि कोर्ट ने ये भी माना कि भारत हाई कमिशन की तरफ से पाकिस्तान गवाहों को समन भेजने के लिए पर्याप्त कोशिशें की गई लेकिन पाकिस्तान हाई कमिशन से कोई जबाब नहीं आया. एनआईए के वकीलों ने पाकिस्तानी गवाहों का पूरा विवरण और पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग के हवाले से भेजे गए समन का पूरा हवाला कोर्ट में दिया भी था जिसके कारण राहिला वकील की याचिका को कोर्ट ने खारिज़ कर दिया हालांकि राहिला के वकील मोमिन मलिक ने कहा कि वो एनआईए कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं है और अगर राहिला वकील और पाकिस्तान के गवाहों ने कहा तो वो उच्च न्यायलय का रूख करेंगे.

 

पाकिस्तान के लिए भी अहम था फैसला
भारत-पाकिस्तान के बीच सप्ताह में दो दिन चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में 18 फरवरी 2007 में बम धमाका हुआ था. ट्रेन दिल्ली से लाहौर जा रही थी. विस्फोट हरियाणा के पानीपत जिले में चांदनी बाग थाने के अंतर्गत सिवाह गांव के दीवाना स्टेशन के नजदीक हुआ था. हादसे में 68 लोगों की मौत हो गई थी. ब्लास्ट में 12 लोग घायल हो गए थे. धमाके में जान गंवाने वालों में अधिकतर पाकिस्तानी नागरिक थे इसलिए पाकिस्तान की नज़रे भी इस मामले पर टिकी हुई थी. मारे जाने वाले 68 लोगों में 16 बच्चों समेत चार रेलवे कर्मी भी शामिल थे.

चार्जशीट के मुताबिक 12 साल पहले क्या हुआ था
19 फरवरी 2007 को दर्ज एफआइआर के मुताबिक समझौता एक्सप्रेस में 18 फरवरी 2007 को रात 11.53 बजे दिल्ली से करीब 80 किलोमीटर दूर पानीपत के दिवाना रेलवे स्टेशन के पास धमाका हुआ. इसकी वजह से ट्रेन के दो जनरल कोच में आग लग गई थी. यात्रियों को दो धमाकों की आवाज़ सुनाई दी, जिसके बाद ट्रेन के डिब्बों में आग लग गई. बाद में पुलिस को घटनास्थल से दो ऐसे सूटकेस बम मिले, जो फट नहीं पाए थे. 20 फरवरी, 2007 को प्रत्यक्षदर्शियों के ब्यानों के आधार पर पुलिस ने दो संदिग्धों के स्केच जारी किए. ऐसा कहा गया कि ये दोनों लोग ट्रेन में दिल्ली से सवार हुए थे और रास्ते में कहीं उतर गए. इसके बाद धमाका हुआ. पुलिस ने संदिग्धों के बारे में जानकारी देने वालों को एक लाख रुपये का नक़द इनाम देने की भी घोषणा की थी. हरियाणा सरकार ने इस केस के लिए एक विशेष जांच दल का गठन कर दिया था. 15 मार्च 2007 को हरियाणा पुलिस ने इंदौर से दो संदिग्धों को गिरफ्तार किया. यह इन धमाकों के सिलसिले में की गई पहली गिरफ्तारी थी. पुलिस इन तक सूटकेस के कवर के सहारे पहुंच पाई थी. ये कवर इंदौर के एक बाजार से घटना के चंद दिनों पहले ही खऱीदी गई थीं. बाद में इसी तर्ज पर हैदराबाद की मक्का मस्जिद, अजमेर दरगाह और मालेगांव में भी धमाके हुए और इन सभी मामलों के तार आपस में जुड़े हुए बताए गए थे.समझौता मामले की जांच में हरियाणा पुलिस और महाराष्ट्र के एटीएस को एक अभिनव भारत के शामिल होने के संकेत मिले थे. इसमें स्वामी असीमानंद को मामले में आरोपी बनाया गया था.

एनआईए को 2010 में सौंपी गई जांच
26 जुलाई 2010 को मामला एनआइए को सौंपा गया था. 26 जून 2011 को आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी.इसके बाद 2012 और 2013 में भी एक एक सप्लीमेंटरी चार्जशीट दाखिल की गई. मामले में कुल 8 आरोपी बनाए गए थे लेकिन आठ में से सुनील जोशी की हत्या हो गई है 3 आरोपी रामचंद्र कालसंग्रा, संदीप डांगे, अमित हकला प्रोक्लेमड आफेंडर यानि की भगौडे घोषित कर दिए गए थे जिसके कारण चार आरोपीयों पर सुनवाई का सिलसिला जारी थी जिनमें नाबा कुमार उर्फ स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी का नाम शामिल था. जांच एजेंसी का कहना था कि ये सभी अक्षरधाम (गुजरात), रघुनाथ मंदिर (जम्मू), संकट मोचन (वाराणसी) मंदिरों में हुए आतंकवादी हमलों से दुखी थे और बम का बदला बम से लेना चाहते थे.

वकील आरके हांडा ने बताया आरोपियों पर आईपीसी की धारा (120 रीड विद 302) 120बी साजिश रचने के साथ 302 यानि की हत्या, 307 हत्या की कोशिश करना, विस्फोटक पदार्थ और रेलवे को हुए नुकसान को लेकर कई धाराएं लगाई गई थी. अगर इन धाराओं के तहत आरोपी दोषी करार दिए जाते, तो कम से कम उम्रकैद की सजा होती लेकिन फैसला स्वामी असीमानंद और अन्य आरोपीयों के पक्ष में आया, एनआईए ने मामले में कुल 224 गवाहों को एग्ज़ामिन किया था, जबकि बचाव पक्ष ने कोई गवाह नहीं पेश किया. केवल अपने दस्तावेज और कई जजमेंट्स की कॉपी ही कोर्ट में पेश की थी.  मामले में सिर्फ आरोपी असीमानंद को ही ज़मानत मिली थी, जबकि बाकि तीनों आरोपी जेल में थे. 

स्वामी असीमानंद को एक और केस में राहत
जुलाई 2018 में स्वामी असीमानंद समेत पांच लोगों को हैदराबाद स्थित मक्का मस्जिद में धमाके करने की साज़िश रचने के आरोप से बरी कर दिया था. इससे पूर्व मार्च 2017 में एनआईए की अदालत ने 2007 के अजमेर विस्फोट में सबूतों के अभाव में असीमानंद को बरी कर दिया था और अब समझौता ब्लास्ट मामले में भी बरी हुए स्वामी असीमानंद. फैसले के बाद असीमानंद ने कोर्ट ने हाथ जोडकर अभिनंदन किया और उनके समर्थकों ने लड्डू बांटे. 

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