बिहार विधान सभा चुनाव के शुरुआती रुझान में बढ़त के बाद बाजी पलटती हुई दिख रही है.
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नई दिल्ली: बिहार विधान सभा चुनाव के शुरुआती रुझान में बढ़त के बाद बाजी पलटती हुई दिख रही है. इस वक्त के रुझानों के मुताबिक एनडीए को स्पष्ट बहुमत के साथ 122 सीटों पर और महागठबंधन 106 सीटों पर आगे है. इस वक्त 238 सीटों पर रुझान आ चुके हैं. यदि एनडीए की बात की जाए तो बीजेपी अकेले 69 सीटों पर आगे दिख रही है. जेडीयू 47 सीटों पर आगे है और वीआईपी 4 सीटों पर आगे है. यदि महागठबंधन की बात की जाए तो तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी सबसे अधिक 79 सीटों पर आगे चल रही है और कांग्रेस 19 सीटों पर आगे चल रही है.
इस लिहाज से यदि सभी प्रमुख दलों पर नजर डाली जाए तो सबसे बड़ा नुकसान जेडीयू को देखने को मिल रहा है और सबसे बड़ा फायदा बीजेपी को मिल रहा है. जेडीयू को पिछले विधान सभा चुनाव में 71 सीटें मिली थीं. लेकिन फिलहाल वह महज 47 सीटों पर आगे है. वहीं बीजेपी को पिछली बार 53 सीटें मिली थीं. लेकिन इस बार वह फिलहाल 69 सीटों पर आगे चल रही है. आरजेडी को 80 सीटें मिली थीं और इस बार वह 79 सीटों पर आगे है. इस पृष्ठभूमि में देखें तो सबसे बड़ा सियासी लाभ बीजेपी को मिलता दिख रहा है.
चिराग फैक्टर
जेडीयू पर यदि नजर डाली जाए तो इस वक्त के रुझानों के मुताबिक जेडीयू की राह में सबसे बड़ा रोड़ा चिराग पासवान की पार्टी लोजपा बनती दिख रही है. लोजपा ने अपने सभी प्रत्याशी जेडीयू के खिलाफ उतारे थे. इस वक्त लोजपा 6 सीटों पर आगे चल रही है. इस लिहाज से जेडीयू के लिए लोजपा सबसे बड़ा वोटकटवा साबित हो रही है.
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राघोपुर सीट से तेजस्वी यादव आगे
इस बीच महागठबंधन के प्रमुख चेहरे तेजस्वी यादव राघोपुर सीट से आगे चल रहे हैं. तेजस्वी यादव ने 10 लाख युवाओं को नौकरी देने का वादा किया था. इसके अलावा, मधुबनी से RJD के समीर महासेठ, राजनगर से BJP के रामप्रीत पासवन, फुलपरास से कांग्रेस के कृपानाथ पाठक, लौकहा से JDU लक्षमेश्वर राय, बाबूबरही से LJP के अमर नाथ प्रसाद , बेनीपट्टी से BJP के बिनोद नारायण झा और झांझरपुर से BJP के नीतीश मिश्रा आगे चल रहे हैं. मधेपुरा के आलमनगर से जेडीयू और मधेपुरा सदर से भी जेडीयू आगे चल रही है. कसबा से कांग्रेस के अफाक आलम, रुपौली से जेडीयू की बीमा भारती, धमदाहा से जेडीयू की लेसी सिंह, बलरामपुर विधानसभा से माले के महबूब आलम आगे चल रहे हैं.
नीतीश का भविष्य दांव पर
बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान हर दौर में नीतीश ने अपने सुशासन की दुहाई दी और जनता से समर्थन मांगा लेकिन जमीनी हकीकत का शायद उन्हें अहसास चरण दर चरण और रैली दर रैली होने लगा था, तभी तो आखिरी चरण में नीतीश ने आखिरी दांव खेला. नीतीश कुमार के इस बयान के आते ही राजनीतिक पंडितों ने इसके मायने तलाशना शुरू किया. किसी ने इसे आखिरी चरण से जोड़ा, किसी को ये संन्यास का ऐलान लगा तो किसी को इसमें सहानुभूति वाली सियासत नजर आई थी. कई बार तो ऐसा लगा कि जैसे नीतीश थक चुके हैं.