श्रमिक ट्रेनों के लिए मीलों का सफर, और फिर धूप में घंटों इंतजार
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श्रमिक ट्रेनों के लिए मीलों का सफर, और फिर धूप में घंटों इंतजार

पहले यहां प्रशासन ने नहीं देखा.अब इन्हें उम्मीद है कि बिहार सरकार हमें देख लेगी. वहां जाकर भी ये प्रशासन के ही भरोसे हैं. 

श्रमिक ट्रेनों के लिए मीलों का सफर, और फिर धूप में घंटों इंतजार

नई दिल्ली: दिल्ली-एनसीआर जैसे बड़े शहरों में छोटे-छोटे काम करने वाले मजदूर, यह लेबर ग्रुप, अब अपने घर जा रहा है. बिहार लौट रहा है. पहले यहां प्रशासन ने नहीं देखा.अब इन्हें उम्मीद है कि बिहार सरकार हमें देख लेगी. वहां जाकर भी ये प्रशासन के ही भरोसे हैं. 

मुजफ्फरपुर की ट्रेन के लिए कतार लगी है. ट्रेन तक पहुंचना भी आसान काम नहीं था. पहले टिकट की जद्दोजहद के लिए ऑनलाइन आवेदन किया, पुलिस से गुहार लगाई, उसके बाद जब नंबर आया तो मीलों पैदल चलकर रेलवे स्टेशन पहुंचे हैं. घंटों से धूप में खड़े हैं कि कहीं इस बार गाड़ी छूट न जाए.

यह भीड़ हमें यह बता रही है कि सिस्टम ही नहीं, आम आदमी की भी जिम्मेदारी वाली गाड़ी किस कदर पटरी से उतर गई. कैसे बड़े शहरों में रहने वाले समर्थ लोगों ने सिर्फ एक एक परिवार की मदद कर दी होती तो यह आज अपने घरों को लौटने को मजबूर न होते.

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इनमें से ज्यादातर को यह भी नहीं पता कि बिहार में अपने गांव पहुंचने पर वहां खाने-पीने की कोई व्यवस्था होगी या नहीं सरकार या प्रशासन उनके साथ वही करेगा जो दिल्ली, नोएडा, गुड़गांव या किसी भी दूसरे शहर में रहने वाले इन लोगों के साथ हुआ, लेकिन बस इतनी उम्मीद है कि वहां अपना घर है तो किराया नहीं देना पड़ेगा.

खाएंगे कैसे, रोजगार का क्या होगा, इन सवालों के जवाब उनके पास नहीं है.

और हां, सोशल डिस्टेंसिंग की बातें इनसे मत कीजिए क्योंकि इनका हम सोशल बॉयकॉट कर चुके हैं. इसलिए इन तस्वीरों को देखकर यह मत कहिएगा कि यह लोग सोशल डिस्टेंस की धज्जियां उड़ा रहे हैं हमने सोशल सिस्टम यानी सामाजिक समानता के नियमों की धज्जियां उड़ाई हैं. इसीलिए आज यह कतारों में खड़े हैं.

दादरी और दनकौर से रोजाना बिहार जाने के लिए ट्रेनें चल रही है. यह श्रमिक ट्रेन है. एक ट्रेन छपरा और सिवान जाएगी. वहीं बाहर खड़े हुए लोग मुजफ्फरपुर जाने वाली ट्रेन के इंतजार में हैं.

मजदूरों का छोड़कर जाना आपको सोचने पर मजबूर नहीं करता?
नोएडा में पॉश सेक्टर के बीच में से मजदूरों का छोड़कर जाना आपको सोचने पर मजबूर नहीं करता? अगर हर परिवार ने एक मजदूर परिवार की जिम्मेदारी ले ली होती तो आज यह घरों को छोड़कर नहीं जा रहे होते और कल आपको लेबर और मजदूरों की दिक्कत भी नहीं आती. 

आज यह तो चले जाएंगे कल आपका काम कैसे चलेगा अब आप सोचिए. किसी के पास ट्रेन का टिकट है वह बस में बैठना चाहता है किसी के पास टिकट नहीं है तो वह पुलिस से गुहार लगा रहा है कि उसको भी बस में बैठाकर उसके गांव उसके शहर तक छुड़वा दिया जाए. इनको देखकर कुछ युवा इकट्ठे हो गए हैं और इनको खाना बांटने आए हैं. उनका भी यही कहना है कि सरकारों को कोसना आसान है लेकिन अगर हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी उठा लेता तो इन लोगों की सही मदद हो पाती. 

जब एक मरीज के बैग को सोसायटी ने बना दिया अछूत
नोएडा एक्सटेंशन में गौर सिटी में बनी साया सोसायटी में रहने वाला एक व्यक्ति पॉजिटिव पाए जाने पर एंबुलेंस उसे उसके ऑफिस से ही ले गई. पत्नी को बैग अस्पताल भिजवाना भारी पड़ गया. सोसायटी स्टाफ समेत लोगों ने बैग को हाथ लगाने से मना कर दिया. पत्नी को बाहर जाने से मना कर दिया गया. पुलिस ने भी हाथ खड़े कर दिए. आखिरकार सरकारी अस्पताल को बैग के लिए एंबुलेंस भेजनी पडी.

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