शिवसेना ने 'सामना' के जरिए Arnab Goswami और भाजपा पर साधा निशाना
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शिवसेना ने 'सामना' के जरिए Arnab Goswami और भाजपा पर साधा निशाना

सामना में लिखा है अर्नब गोस्वामी ने महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government), मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Chief Minister Uddhav Thackeray) और दूसरे प्रमुख नेताओं के बारे में ‘जहर’ उगला इसलिए कतई गिरफ्तारी नहीं की गई है, गिरफ्तारी का कारण सबके सामने है.

फाइल फोटो.

मुंबई: शिवसेना (Shiv Sena) ने अपने मुखपत्र सामना (Saamana) के माध्यम से रिपब्लिक टीवी चैनल के एडिटर-इन चीफ अर्नब गोस्वामी (Arnab Goswami) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर निशाना साधा है. सामना में लिखा है, भाजपा अर्नब की गिरफ्तारी के बाद महाराष्ट्र (Maharashtra) में आपातकाल जैसे हालात बनने की अफवाह फैला रही है. साथ ही अर्नब की गिरफ्तारी के पीछे राजनीतिक कारण होने के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया गया है.

  1. अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी के बाद सामना में लेख

    राजनीतिक कारणों से गिरफ्तारी के आरोप खारिज

    भाजपा पर राजीनिति करने का लगाया आरोप

यह भी पढ़ें: Arnab Goswami की गिरफ्तारी पर आया महाराष्ट्र के गृह मंत्री का ये बयान

सामना में लिखा है अर्नब गोस्वामी ने महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government), मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Chief Minister Uddhav Thackeray) और दूसरे प्रमुख नेताओं के बारे में ‘जहर’ उगला इसलिए गिरफ्तारी नहीं की गई है. इस गिरफ्तारी का सीधा संबंध एक व्यक्ति की मौत से जुड़ा है. मृतक की पत्नी की शिकायत पर यह कार्रवाई की गई है. गिरफ्तारी का राजनीतिज्ञों और पत्रकारों से संबंध नहीं है. शिवसेना ने अर्नब को नौटंकीबाज और सुपारी पत्रकारिता करने वाला बताया है. साथ ही भाजपा पर बेवजह इस मामले को तूल देने का आरोप लगाया है.

जस का तस सामना का लेख-

‘भाजपा के सयानों का खेल’
सामना में लिखा है, महाराष्ट्र में आपातकाल जैसे हालात की अफवाह भाजपा के महाराष्ट्र में रहने वाले नेता फैला रहे हैं. इसमें दिल्ली सरकार के अनुभवी ‘सयाने’ भी शामिल हैं,  यह हैरानी की बात है. किसी दौर में ‘कांग्रेसी घास’ को अनुपयोगी उत्पाद कहा जाता था. उसी घास का काढ़ा बनाकर फिलहाल भाजपा वाले दिन में दो बार पीते होंगे, ऐसा उनका बर्ताव बता रहा है.

‘कोई राजनीतिक कारण नहीं’
मुंबई के एक समाचार चैनल के मालिक अर्नब गोस्वामी को एक बेहद निजी मामले में गिरफ्तार किया गया है. उनकी गिरफ्तारी का राजनीतिज्ञों और पत्रकारों से संबंध नहीं है. गोस्वामी ने तिलक आगरकर की तरह सरकार के खिलाफ जमकर लिखा इसलिए सरकार ने उनका गिरेबान पकड़ा है, यह कहना बिल्कुल गलत है.

‘पहले की सरकार ने गोस्वामी को बचाया’
दो साल पहले अलीबाग निवासी अन्वय नाईक और उनकी माता ने खुदकुशी की थी, उसी मामले में गिरफ्तारी हुई है. नाईक ने मृत्यु से पहले जो पत्र लिखा था उसमें गोस्वामी द्वारा किये गये आर्थिक व्यवहार, धोखाधड़ी का संदर्भ है. उसी तनाव के कारण नाईक व उनकी मां ने आत्महत्या की. परंतु पहले की सरकार ने गोस्वामी को बचाने के लिए इस मामले को दबा दिया. इसके लिए पुलिस व न्यायालय पर दबाव डाला.

‘नये सिरे से चांज की मांग’
नाईक की पत्नी ने इस मामले की नये सिरे से चांज की मांग की थी. पीड़ित परिवार की तरफ से न्यायालय में अर्जी दी गई है. इसके बाद, कानून के अनुसार जो होना चाहिए वही हुआ है. गोस्वामी को पुलिस ने हिरासत में लिया है आगे की सच्चाई जांच में सामने आ जाएगी. इसमें आपातकाल, काला दिन और पत्रकारिता पर हमला जैसा क्या है?

इस आग के पीछे किसका ईंधन?
सामना में लिखा है, अर्नब गोस्वामी और उनका समाचार चैनल किस तरह की पत्रकारिता करता है? उसकी आग के पीछे किसका ईंधन है? यह जगजाहिर है. आसान भाषा में इसे सुपारी पत्रकारिता कहा जा सकता है.

अमित शाह पर पलटवार
गृह मंत्री अमित शाह द्वारा अर्नब की गिरफ्तारी को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला बताये जाने पर शिवसेना ने कहा है, यह गिरफ्तारी लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला बिल्कुल नहीं है. गुजरात में भी सरकार के विरोध में लिखने वाले संपादकों की गिरफ्तारी हुई है. उत्तर प्रदेश में पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया गया, तब किसी को आपातकाल की याद नहीं आई.

एक बार फिर क्षेत्रवाद का दांव
सामना में लिखा है, महाराष्ट्र के भाजपा नेताओं को अन्वय नाईक को न्याय दिलाने के लिये आवाज उठानी चाहिए. वह हमारे भूमिपुत्र हैं. लेकिन हाल के दिनों में भाजपा वालों को सौत के बच्चों को गोद में खिलाने में मजा आने लगा है. भूमिपुत्र मर जाये तो भी चलेगा लेकिन सौत के बच्चे को सोने की चम्मच से दूध पिलाना है, उनकी यह नीति स्पष्ट हो गई है.

आडवाणी से पूछो आपातकाल?
सामना में लिखा है, आपातकाल जिन्होंने देखा था उनमें से एक लालकृष्ण आडवाणी मौजूद हैं. आपातकाल क्या था? यह आज के नौसिखियों को उनसे समझना चाहिए. कानून के लिए सब एक समान हैं. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द करने का साहस दिखाया था. उसी निर्णय से आपातकाल का बीज बोया गया. कानून ने प्रधानमंत्री इंदिरा, नरसिंह राव को भी नहीं छोड़ा. कई मंत्रियों को सलाखों के पीछे जाना पड़ा.

झूठे राम भक्तों का आपातकाल!
सामना में लिखा है, कानूनी कार्रवाई का सामना करके अमित शाह भी तप कर, निखर कर सलाखों से बाहर निकले हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में कल ही श्रीराम की जय-जयकार की घोषणा की. अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन किया. सीता पर सवाल उठे ही थे, श्रीराम ने भी सीता को अग्नि परीक्षा के लिए मजबूर किया. वह तो राम राज्य था. सीता की अग्नि परीक्षा मतलब आज के झूठे राम भक्तों को आपातकाल अथवा श्रीराम की तानाशाही लगी क्या?

छाती पीटना बंद करो!
एक निरपराध व्यक्ति और उसकी बूढ़ी मां आत्महत्या को मजबूर हुए. उनकी पत्नी न्याय के लिए गिड़गिड़ा रही है. अब पुलिस ने कानून का पालन किया है. इसमें चौथा स्तंभ ढह गया? ऐसा कहने वाले लोकतंत्र के पहले स्तंभ को उखाड़ने का प्रयास कर रहे हैं. एक नौटंकीबाज के लिए रोना, छाती पीटना बंद करो! तभी महाराष्ट्र में कानून का राज रहेगा.

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