शहर के बाजारों और रिहायशी इलाको में सड़कों गलियों आदि में घूमते आवारा पशु जहां आवाजाही में परेशानी के कारण के अलावा बुजुर्गों और बच्चों के लिए समस्या खड़ी कर रहे हैं.
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श्रीगंगानगर: श्रीगंगानगर(Sriganganagar) के श्रीविजयनगर(Srivijaynagar) में आवारा पशू(Stray Animals) लोगों की परेशानी का सबब बन चुके हैं. शहर में हर जगह आवारा पशुओं का जमावड़ा लगा रहता है. जो कि आए दिन लोगों पर हमला करते है. आवारा पशुओं के वाहन चालकों को टकराने से कई बार लोगों की जान जा चुकी है. जिससे लोगों में डर का माहौल है.
शहर के बाजारों और रिहायशी इलाको में सड़कों गलियों आदि में घूमते आवारा पशु जहां आवाजाही में परेशानी बन रहे हैं. वहीं इन पशुओं के कारण बुजुर्गों, बच्चों, महिलाओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. बाजारों में घूमते ये पशु कई बार इस कदर हिंसक हो जाते हैं कि आने-जाने वाले लोगों पर भी हमला कर देते हैं. इन आवारा सांडों को काबू करने के तमाम प्रयास नाकाम साबित हुए हैं.
आवारा जानवरों का सड़क पर कब्जा
इस समय शहर की सड़कों पर 1500 से ज्यादा आवारा सांड हर समय घूमते, बीच सड़क आपस में लड़ते या फिर रात में आराम फरमाते देखे जाते हैं. सब्जी मंडी चौक और सूरतगढ अनूपगढ मार्ग पुराने बस स्टैंड रोड पर भी आवारा जानवरों का कब्जा रहता है. शहर की सड़कों पर अब आवारा पशुओं खासकर आवारा सांडों के रूप में साक्षात मौत मंडरा रही है. .
जानिए गौशालाओं का हाल
स्थानीय लोगों का कहना है कि भाजपा सरकार ने हर विधानसभा में नंदी शाला खोलने की कोशिश की थी लेकिन उस पर अभी तक कोई काम नहीं हो सका है. वहीं गौशाला को आज तक कोई बड़ी राशि सरकार की तरफ से नहीं मिली. सरकारी अनुदान बड़े पशु को 40 रुपये और छोटे को 20 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मिलता है. लगभग 30 सालों से चल रही श्री गौशाला समिति पहले ही फंड की कमी से जूझ रही है. 6 महीने के सरकारी अनुदान और जनसहयोग से बड़ी मुश्किल से गौशाला को चलाया जा रहा है और यदि बड़े सांडो को गौशाला में रखा जायेगा तो खर्च काफी बढ़ेगा.
गौ माता की नहीं है किसी को सुध
आपको बता दें कि भारतीय संस्कृति में गाय को मां का दर्जा दिया गया है और इसे देवी देवताओं की तरह पूजा जाता है. आज भी घरों में पूजा के समय गौ मूत्र का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन शहर में इन दिनों इसी गौ माता की दुर्दशा हो चुकी है. एक तरफ तो जहां राजस्थान-पंजाब सीमा से गोवंश तस्करी के बहुत से मामले पकड़ में आ रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ शहर में इन्हें ठिकाना नहीं मिलने के कारण दर दर की ठोकरे खाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
(Written By-पुजा शर्मा)