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नई दिल्ली. आपने फिल्मों में कई सीरियल किलर देखे होंगे. जो अपनी सनक के चलते बड़ी बेदर्दी से लोगों की जान ले लेते हैं. लेकिन रियल लाइफ में ऐसे सीरियल किलर के बारे में शायद ही सुना होगा. आज हम आपको ऐसे ही एक सीरियल किलर की स्टोरी बताने जा रहे हैं, जिसका नाम सुनकर ही लोगों में सिहरन पैदा हो जाती थी. लोगों को बेहरमी से मारने के लिए सीरियर किलर (Serial Killer) पत्थर और चाकू जैसे खतरनाक हथियारों का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन शायद आपने कभी नहीं सुना होगा कि किसी सीरियर किलर ने एक रुमाल से सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया हो. इस सीरियर किलर का नाम है ठग बहराम (Serial Killer Thug Behram), जिसने 900 से अधिक लोगों को अपने रुमाल के सहारे मौत के घाट उतार दिया था.
1765 में बहराम का जन्म मध्य भारत के जबलपुर में हुआ था. यदि आज के हिसाब से कहा जाए तो इस ठग का जन्म मध्य प्रदेश में हुआ था. 75 साल की उम्र में उसे उसकी बेरहमी के कारण फांसी की सजा दी गई थी. हालांकि तब उसे पकड़ना इतना आसान नहीं था. ठग बहराम को गिरफ्तार करने से पहले उसके गुरू अमीर अली को पकड़ा गया था. उस दौरान भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) यानी अंग्रेजी हुकूमत का अधिकार हुआ करता था. ठग बहराम का आतंक इतना था कि अंग्रेजी हुकूमत भी उससे घबराती थी.
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ठग बहराम व्यापारियों, पर्यटकों, सैनिकों और तीर्थयात्रियों के काफिले को अपना शिकार बनाता था. ठग गिरोह के लोग भेष बदलकर इनके साथ लग जाते थे. इसके बाद जब रात में ये लोग सो जाते तो यह खूनी गिरोह लोगों को अपना शिकार (Serial Killer Thug Behram) बनाता था. कहते हैं कि बहराम जिस रास्ते से गुजरता था, वहां लाशों के ढेर लग जाते थे. उस दौरान ठगों और डकैतों पर अध्ययन करने वाले जेम्स पैटोन ने भी ठग बहराम के बारे में लिखा कि उसने वाकई में 931 लोगों को मौत के घाट उतारा था और उसने उनके सामने इन हत्याओं को स्वीकार भी किया था.
लोगों के सो जाने के बाद गिरोह के लोग गीदड़ के रोने की आवाज में एक-दूसरे को संकेत भेजते थे. इसके बाद ठग बहराम गिरोह के बाकी के लोगों के साथ वहां पहुंचता था और पीले कपड़े के एक टुकड़े (जिसमें एक धारदार सिक्का होता था), से काफिले के लोगों का गला घोंट देता जाता.
लगातार लोगों के गायब होने के बाद इस मामले की जांच करवाई गई और इसका जिम्मा 1809 में एक अंग्रेज अफसर कैप्टन स्लीमैन को दिया गया था. कैप्टन स्लीमैन ने जांच करने के बाद खुलासा किया कि यह काम ठग बहराम का गिरोह कर रहा है और वही लोगों की हत्याएं करने के बाद उनकी लाशें तक गायब कर देता है. कैप्टन स्लीमैन ने बताया था कि ठग बहराम के गिरोह में करीब 200 लोग थे.
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कैप्टन स्लीमैन ने दिल्ली से लेकर जबलपुर तक गुप्तचरों का एक बड़ा जाल बिछाया था. इसके बाद गिरोह की भाषा को समझा गया. कैप्टन स्लीमैन ने खुलासा करते हुए बताया कि ठग रामोसी (Ramosi) भाषा का इस्तेमाल करते थे. बहराम का गिरोह लोगों को खत्म करने के दौरान इस भाषा का इस्तेमाल करता था. हालांकि, 10 सालों बाद बहराम को गिरफ्तार किया गया था. जब बहराम को गिरफ्तार किया गया, तब उसकी उम्र 75 साल थी. साल 1840 में बहराम को फांसी की सजा दी गई.
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