Hijab row: 'सिख की पगड़ी की तुलना हिजाब से नहीं हो सकती', जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की ऐसी टिप्पणी
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Hijab row: 'सिख की पगड़ी की तुलना हिजाब से नहीं हो सकती', जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की ऐसी टिप्पणी

Turban vs Hijab: सुनवाई के दौरान देवदत कामत ने दलील दी मैं जनेऊ पहनता हूं, सीनियर वकील के परासरन भी ये पहनते हैं लेकिन क्या ये किसी भी तरह से कोर्ट के अनुशासन का उल्लंघन है? इस कोर्ट ने कहा कि आप कोर्ट में पहनी जाने वाली ड्रेस की तुलना स्कूल ड्रेस से नहीं कर सकते. 

Hijab row: 'सिख की पगड़ी की तुलना हिजाब से नहीं हो सकती', जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की ऐसी टिप्पणी

Ban on hijab in educational institutes: कर्नाटक हिजाब मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि हिजाब से सिख की पगड़ी की तुलना करना ठीक नहीं है. पांच जजों की संविधान बेंच ये तय कर चुकी है कि पगड़ी और कृपाण सिख की धार्मिक पहचान का अनिवार्य हिस्सा हैं. 500 सालों के सिखों के इतिहास और संविधान के मुताबिक भी ये सर्वविदित तथ्य है. सिखों  के लिए पांच ककार जरूरी हैं इसलिए सिखों से तुलना करना ठीक नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी याचिकाककर्ताओ की ओर से पेश वकील निज़ाम पाशा की दलील के दौरान दी. पाशा का कहना था कि सिख धर्म के पांच ककारों की तरह इस्लाम के भी पांच बुनियादी स्तंभ हैं.

निजाम पाशा ने हज, नमाज-रोज़ा, ज़कात, तौहीद और हिजाब को इस्लाम के पांच बुनियादी स्तंभ बताया था. बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि आप सिखों से तुलना मत कीजिए. 500 सालो से सिखों की ये धार्मिक पहचान भारतीय सभ्यता का हिस्सा रही है. इस पर निजाम पाशा ने कहा कि हमारा भी ये ही  कहना है कि 1400 सालों से हिजाब भी इस्लामिक परम्परा का हिस्सा रहा है, ऐसे में कर्नाटक हाईकोर्ट का निष्कर्ष गलत है.

'हिजाब पर पर रोक संविधान के मुताबिक नहीं'
वकील निज़ाम पाशा से पहले याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील देवदत्त कामत पेश हुए. कामत ने कहा कि मूल अधिकारों पर वाजिब प्रतिबंध हो सकते हैं लेकिन ये तभी मुमकिन हैं जब ये कानून-व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य के खिलाफ हो. यहां लड़कियों का हिजाब पहनना न तो कानून-व्यवस्था के खिलाफ है, न ही नैतिकता और स्वास्थ्य के. संविधान के मुताबिक सरकार का हिजाब पर प्रतिबंध का आदेश वाजिब नहीं है. कामत ने कहा कि हर धार्मिक परम्परा ज़रूरी नहीं कि किसी धर्म का अनिवार्य हिस्सा ही हो. लेकिन इसका ये मतलब ये नहीं कि सरकार उस पर प्रतिबंध लगा दे. सिर्फ उस परम्परा के क़ानून व्यवस्था या नैतिकता के खिलाफ होने पर ही सरकार को ये अधिकार हासिल है.

हिजाब की तुलना कोर्ट ड्रेस से नहीं-SC
सुनवाई के दौरान देवदत कामत ने दलील दी मैं जनेऊ पहनता हूं, सीनियर वकील के परासरन भी ये पहनते हैं लेकिन क्या ये किसी भी तरह से कोर्ट के अनुशासन का उल्लंघन है? इस कोर्ट ने कहा कि आप कोर्ट में पहनी जाने वाली ड्रेस की तुलना स्कूल ड्रेस से नहीं कर सकते. कल वकील राजीव धवन ने पगड़ी का हवाला दिया था. लेकिन पगड़ी भी ज़रूरी नहीं कि धार्मिक पोशाक ही हो. मौसम की वजह से राजस्थान में भी लोग अक्सर पगड़ी पहनते हैं.

'सवाल सिर्फ स्कूल में हिजाब का है, बाहर नहीं'
सुनवाई के दौरान जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि सड़क पर हिजाब पहनने से भले ही किसी को दिक्कत न हो, लेकिन सवाल स्कूल के अंदर हिजाब पहनने को लेकर है. सवाल ये है कि स्कूल प्रशासन किस तरह की व्यवस्था बनाये रखना चाहता है. कामत ने इस पर दलील दी कि स्कूल व्यवस्था बनाये रखने का हवाला इस आधार पर नहीं दे सकते कि कुछ लोगो को हिजाब से दिक्कत हो रही है और वो नारेबाजी कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार के आदेश में यही बात कही गई है. लेकिन ये हिजाब बैन करने का कोई उपयुक्त आधार नहीं है. ये तो स्कूल की जिम्मेदारी है कि वो ऐसा माहौल तैयार करें जहां मैं अपने मूल अधिकारों का स्वतंत्र होकर इस्तेमाल कर सकूं. हिजाब मामले पर सुनवाई 12 सितंबर को भी जारी रहेगी. अभी तक याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील देवदत्त कामत और निजाम पाशा ने दलीलें  रखी हैं. 12 सितंबर को याचिकाकर्ताओं की ओर से सलमान खुर्शीद दलीलें रखेंगे.

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