DNA Analysis: कश्मीर घाटी में फिर हिंदुओं की टारगेट किलिंग, आखिर किस बात से बौखलाए हुए हैं आतंकी?
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DNA Analysis: कश्मीर घाटी में फिर हिंदुओं की टारगेट किलिंग, आखिर किस बात से बौखलाए हुए हैं आतंकी?

Target killing: कश्मीर (Kashmir) में एक और राष्ट्रवादियों की हिम्मत बढ़ी है. वहीं टारगेट किलिंग की घटनाओं में भी तेजी आई है. आखिर ऐसी क्या बात है, जिससे आतंकी इतना बौखलाहट में नजर आ रहे हैं. 

DNA Analysis: कश्मीर घाटी में फिर हिंदुओं की टारगेट किलिंग, आखिर किस बात से बौखलाए हुए हैं आतंकी?

Target killing again in Jammu Kashmir: डल झील से लेकर गलियों तक कश्मीर (Kashmir) देशभक्ति के रंगों से सरोबार है. कश्मीर में हर घर तिरंगा लहरा रहा है. यहां तक कि जो नौजवान रास्ता भटककर आतंकवाद की राह पर निकल पड़े, उनके परिवार भी तिरंगा लहराकर अपनी देशभक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं. ये वो कश्मीर है,जिसकी कल्पना कुछ साल पहले तक नहीं की जा सकती थी. लेकिन तीन साल पहले धारा-370 हटने के बाद कश्मीर में बदलाव की जो सुहावनी हवाएं चली हैं, ये लहराते हुए तिरंगे उसकी गवाही दे रहे हैं.

कश्मीर में हिंदुओं की चुन-चुनकर हो रही हत्याएं

लेकिन कश्मीर (Kashmir) की एक, दूसरी तस्वीर भी है . जो आए-दिन डराती है. ये वो तस्वीर है, जिसमें कश्मीर, खून के लाल रंग से रंगा है. ये वो कश्मीर है, जहां की जमीन पर आतंकवादी आए दिन कश्मीरी पंडितों की टारगेट किलिंग करते हैं. ये वो कश्मीर है, जहां रह-रहकर कश्मीरी पंडितों के परिवारों में मौत का मातम मनता है. ये वो कश्मीर है, जहां कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit) के लिए कोई जगह नहीं है. जहां सरकार ने कश्मीरी पंडितों को दोबारा बसाने के जो सपने दिखाए थे, वो अब बुरे ख्वाब बन चुके हैं. ये वो कश्मीर है, जो 1990 के खौफनाक दौर की याद दिलाता है.

कश्मीर में मंगलवार को एक बार फिर कश्मीरी पंडित की टारगेट किलिंग हुई. जहां शोपियां जिले में आतंकवादियों ने मंगलवार को दो कश्मीरी पंडित भाइयों पर हमला किया. इस हमले में एक भाई की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि दूसरा घायल हो गया. मरने वाले कश्मीरी पंडित का नाम सुनील कुमार भट्ट था. आतंकवादी हमले में बाल-बाल बचे परतिंबर नाथ अस्पताल में भर्ती हैं, उनको आतंकियों ने तीन गोलियां मारी हैं.

शोपियां में जिन दो हिंदू भाइयों को आतंकवादियों ने टारगेट बनाया, उनके परिवार को सरकार की तरफ से सुरक्षा मुहैया करवाई गई थी. लेकिन ये सुरक्षा सिर्फ घर तक सीमित थी. आतंकवादियों को ये पता था. इसलिए उन्होंने दोनों कश्मीरी पंडित भाईयों पर हमला उस समय किया, जब वो अपने सेब के बाग में काम कर रहे थे.

आतंकियों ने शोपियां में 2 हिंदू भाइयों को गोली मारी

हर बार की तरह इस बार भी आतंकवादियों ने पहले दोनों भाइयों से उनका नाम पूछा और जब उन्हें यकीन हो गया कि वो दोनों हिंदू हैं तो आतंकियों ने उनपर अंधाधुंध फायरिंग कर दी. इस घटना को एके-47 राइफल से लैस दो आतंकवादियों ने अंजाम दिया और फिर हर बार की तरह इस बार भी आतंकवादी आराम से फरार हो गए.

Zee News की टीम ने इस घटना की On The Spot इंवेस्टिगेशन रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें कश्मीरी पंडित की हत्या के सबूत भी हैं और इस हत्या से उठे ढेर सारे सवाल भी हैं. जिनके जवाब आज हम सरकार और सिस्टम से भी पूछेंगे. लेकिन पहले आप ये रिपोर्ट पढिए. 

कश्मीर (Kashmir) से जब धारा-370 हटी थी तो इसे अभूतपूर्व फैसला बताकर प्रचारित किया गया. इसके अनगिनत फायदे गिनाए गए. कहा गया था कि अब देश का कोई भी नागरिक कश्मीर में रह सकता है, जमीन खरीद सकता है, नौकरी कर सकता है. ये सही भी है कि धारा-370 हटने के बाद कश्मीर में कई पॉजिटिव बदलाव हुए हैं, जो ग्राउंड पर दिखते भी हैं. लेकिन धारा-370 से मुक्त कश्मीर अभी भी कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit) के लिए भयमुक्त कश्मीर नहीं बन पाया है. आतंकवादियों के हाथों चुन-चुनकर मारे जाते हिंदुओं की हत्याएं इसकी गवाही देती हैं.

कश्मीर (Kashmir) में धारा 370 को खत्म किये जाने के बाद 118 आम नागरिक मारे गए हैं, जिनमें पांच कश्मीरी पंडित और 16 अन्य हिन्दू व सिख समुदाय के थे. अकेले इस वर्ष यानी 2022 में अबतक 26 लोगों की टारगेट किलिंग हो चुकी है, जिनमें प्रवासी मजदूर भी शामिल हैं. मार्च में 8, अप्रैल में 5, मई में 7, जून में 3 और अगस्त यानी इस महीने 2 आम नागरिक आतंकवादियों की गोलियों का शिकार बने हैं.

आखिर सरकार क्यों नहीं बचा पा रही हिंदुओं की जान?

ये सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वो कश्मीर में हिंदुओं को जान की सुरक्षा की गारंटी दे. सरकार का दावा है कि जम्मू-कश्मीर पुलिस और सुरक्षाबलों ने कम से कम 14 आतंकवादियों को एनकाउंटर में या तो मार गिराया है या गिरफ्तार किया है, जो टारगेट किलिंग में शामिल थे.

मई में सरकारी कर्मचारी राहुल भट्ट की टारगेट किलिंग के बाद कश्मीर में हिंदुओं (Kashmiri Pandit) का सब्र जब जवाब दे गया तो उन्होंने सड़क पर उतरकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरु कर दिए. कश्मीरी पंडितों ने कह दिया कि अपनी जान को हथेली पर रखकर वो कश्मीर में नौकरी नहीं कर सकते. सरकारी विभागों में काम करने वाले कश्मीरी पंडित और हिंदुओं ने नौकरी से इस्तीफे देने शुरु कर दिए. कई हिंदू परिवार कश्मीर से भागकर जम्मू चले गए.

तब जाकर सरकार की नींद खुली. दिल्ली में गृह मंत्रालय के दफ्तर में मीटिंगों के दौर चले, जिसमें खुद गृहमंत्री अमित शाह ने सेना और सुरक्षाबलों के प्रमुखों को तलब कर लिया और कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा देने का आदेश भी दिया.

सरकारी दावों की 'टारगेट किलिंग'! 

कहा गया कि कश्मीर घाटी (Kashmir) के अंदरूनी हिस्सों और गांवों में रह रहे कश्मीरी हिंदुओं को आसपास की सुरक्षित जगहों पर शिफ्ट किया जाएगा. देश के अन्य राज्यों से कश्मीर में आए प्रवासी मजदूरों और प्राइवेट नौकरियां करने वाले लोगों की लोकेशन की चौबीस घंटे ट्रैकिंग की रणनीति भी बनी. पाकिस्तानी सीमा से सटे इलाकों में रहने वाले हिंदुओं की सुरक्षा के लिए ड्रोन सर्विलांस का इस्तेमाल करने जैसे बड़े फैसले लिए गए . 

लेकिन लगता है कि कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit) की सुरक्षा के सारे दावे सिर्फ सरकारी फाइलों में अटके रह गए. सरकार और सिस्टम मीटिंग पर मीटिंग करते रहे और राहुल भट्ट की हत्या से शुरु हुआ टारगेट किलिंग का सिलसिला चलता रहा. मंगलवार को शोपियां में एक बार फिर कश्मीरी पंडित आतंकवादियों की गोलियों के शिकार बने. धारा-370 से आजाद हो चुके कश्मीर में किसी हिंदू की ये टारगेट किलिंग कोई पहली घटना नहीं है. जिस तरह से आए-दिन कश्मीर में हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है. उससे लगता है कि ये कोई आखिरी घटना भी नहीं होगी. कहीं ऐसा तो नहीं है कि कश्मीर में 22 साल बाद एक बार फिर 1990 वाला दौर दस्तक दे रहा है और डर के साए में ये सवाल बार बार दर्द दे रहा है. 

सरकारी कर्मचारी राहुल भट्ट की हत्या से शुरू हुआ था सिलसिला

टारगेट किलिंग का ये दौर सरकारी कर्मचारी राहुल भट्ट की हत्या से शुरू हुआ था. उसके बाद स्कूल टीचर से लेकर सरपंच तक, मजदूर से लेकर ठेले वालों तक और केमिस्ट से लेकर पुलिसवालों तक को आतंकियों ने अपना निशाना बनाया.

हर घटना के बाद सरकार सुरक्षा की गारंटी के दावे करती रही, हाईलेवल मीटिंगें करती रही. आतंकवादियों को अंजाम भुगतने की चेतावनी देती रही, आतंकियों को मारकर कश्मीर पंडितों के कत्ल का बदला लेने का दावा करती रही.

लेकिन इन सब चीजों से कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit) को मिला क्या? कश्मीरी पंडितों का भरोसा टूटा तो वो सड़कों पर भी उतरे और उनका गुस्सा भी फूटा.लेकिन इससे हुआ क्या? कश्मीरी पंडितों की टारगेट किलिंग तो बंद नहीं हुई?  

एक बार फिर कश्मीर (Kashmir) में हिंदू मारा गया है. एक बार फिर कश्मीर में हिंदुओं को बसाने के सरकारी वादे ने दम तोड़ा है. शोपियां में सिर्फ एक हिंदू की टारगेट किलिंग नहीं हुई है, बल्कि फिर एक बार, कश्मीर में बचे चंद हजार हिंदुओं के उस भरोसे का कत्ल हुआ है, जो उन्होने सरकार पर किया था.  बदले में देने के लिए सरकार के पास जुबानी संवेदनाओं के अलावा कुछ भी तो नहीं है.

क्या सरकार से भी ज्यादा ताकतवर हो गए हैं आतंकी

क्या ये सरकार की विफलता नहीं है कि बार-बार लगातार आतंकवादी कश्मीर में हिंदुओं का खून बहा रहे हैं. क्या ये सिस्टम पर सवाल नहीं है जो कश्मीरी पंडितों की जान बचाने में बार-बार नाकाम साबित हो रहा है. या फिर आतंकवादी इतने ताकतवर हो गए हैं कि वो जब चाहे, जहां चाहें कश्मीरी पंडितों को मार डालें?

कश्मीर में एक दौर वो था, जब हिंदुओं का कत्लेआम हुआ था. एक दौर ये है जब कश्मीर में हिंदुओं (Kashmiri Pandit) को चुन-चुनकर मारा जा रहा है. हालात अलग हैं. वक्त अलग है. लेकिन कश्मीरी पंडितों में एक बार फिर डर वही है.मौत का खौफ वही है. 

सच्चाई ये है कि आतंकवादियों को चिढ़ कश्मीरी पंडितों से नहीं है, बल्कि कश्मीर में आते बदलाव से है. यही वजह है कि आतंकवादियों के निशाने पर हर वो इंसान है, जो बदलते कश्मीर का आईना है, उसका समर्थक है. फिर चाहे वो कश्मीरी पंडित हो या कश्मीरी मुसलमान. मार्च में इशफाक अहमद, तजमुल मोहिउद्दीन और सिपाही समीर अहमद माला की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. 

कश्मीरी राष्ट्रवादी मुस्लिमों की भी हो रही हत्याएं

पिछले हफ्ते भी एक मुस्लिम युवक को आतंकियों ने मार डाला था. यानी ऐसा तो बिलकुल नहीं है कि कश्मीर (Kashmir) में सिर्फ हिंदुओं की हत्या हो रही है, बल्कि जम्मू-कश्मीर पुलिस के कई जवान और सेना के कई सिपाहियों की भी आतंकवादियों ने टारगेट किलिंग की है, जो बदलते कश्मीर की पहचान बने हैं.

दरअसल, आतंकवादियों को धारा-370 से आजाद कश्मीर से दुश्मनी है. कश्मीर में लहराते भारत के तिरंगे के रंग आतंकवादियों की आंखों में चुभ रहे हैं. 
उन्हें कश्मीर में हिंदू-मुस्लिम भाईचारा हजम नहीं हो रहा है. जिस तरह से भारतीय सेना ने कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑलआउट चलाया है, उससे आतंकवादी संगठन बौखला गये हैं और आम लोगों को निशाना बना रहे हैं.

लेकिन आखिर कौन हैं ये आतंकी, जो इतनी आसानी से इन वारदातों को अंजाम देकर गायब हो जाते हैं? क्यों इनकी पहचान करना मुश्किल हो गया है? दरअसल आतंकियों ने अपना चेहरा बदल लिया है. अब ये Hybrid Terrorists का मुखौटा लगाकर टारगेट किलिंग को अंजाम दे रहे हैं.

हाइब्रिड आतंकी कर रहे हिंदुओं की हत्याएं

ये Hybrid Terrorists अकसर ऐसे कश्मीरी युवा होते हैं, जो वारदात को अंजाम देते हैं और बड़ी आसानी से दोबारा भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं. आतंकवादी संगठन, ऐसे भटके हुए कश्मीरी युवाओं को उकसाते हैं और उनके हाथों में पिस्टल थमा दी जाती है. ऐसे Hybrid Terrorists को थोड़े से पैसे या ड्रग्स का लालच देकर टारगेट किलिंग जैसी घटनाओं को अंजाम दिलाया जाता है. 

कश्मीर (Kashmir) में टारगेट किलिंग की घटनाओं को बेहद Preplanned तरीके से अंजाम दिया जाता है. जिसकी साजिश पाकिस्तान में बैठे आतंकवादियों के सरगना रचते हैं और इसके लिए Logistics की सुविधा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI और पाकिस्तानी फौज देती है. कश्मीर में टारगेट किलिंग का मेड इन पाकिस्तान प्लान आतंकवादियों और पाकिस्तान के लिए Win-Win सिचुयेशन है. क्योंकि वो आसानी से इन टारगेट किलिंग्स की जिम्मेदारी लेने से मुकर सकते हैं. पाकिस्तान भी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आसानी से पल्ला झाड़ सकता है.

सेना के लिए ऐसे आतंकियों की पहचान करना हुआ मुश्किल

भारतीय सुरक्षाबलों के लिए इन Hybrid Terrorists की पहचान कर पाना बेहद मुश्किल होता है. जिसका फायदा आतंकवादी उठा रहे हैं, और सबसे ज्यादा खामियाजा कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandit) अपनी जान देकर उठा रहे हैं.

आतंकवादियों की इस हाईब्रिड साजिश को सिर्फ सरकार और सिस्टम की कोशिशों से नाकाम कर पाना बेहद मुश्किल है, इसके लिए कश्मीर (Kashmir) के समाज को अपनी भूमिका निभानी होगी, खासकर मुस्लिम समाज को, जिन्हें कश्मीरी पंडितों का साथ देना होगा और आतंकवादियों के खिलाफ खड़ा होना. जब ऐसा होगा तो कश्मीरी पंडित खुद को सुरक्षित महसूस करेंगे, सुरक्षा की जो भावना उन्हें कश्मीरी पंडितों के साथ से मिलेगी, वो कोई और नहीं दे सकता . इसलिए कश्मीरी पंडितों को सुरक्षित महसूस करवाने की जितनी जिम्मेदारी सरकार की है, उतनी ही कश्मीरी मुसलमान समाज की भी है .

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