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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के नतीजों के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने एक बयान में कहा कि असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) देश के बड़े नेता हैं और बीजेपी के कार्यकर्ता उनकी चुनौती स्वीकार करते हैं. दरअसल AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का एक वीडियो सामने आया था जिसमें वो कह रहे थे कि इस बार यूपी में योगी को सीएम नहीं बनने देंगे. ओवैसी की इसी चुनौती को स्वीकार करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा कि बीजेपी 300 से ज्यादा सीटें यूपी में जीतेगी.
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का यह बयान ऐसे मौके पर आया है जब असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी ने यूपी में 100 विधान सभा सीटों पर लड़ने का ऐलान किया है और यूपी में सपा-कांग्रेस पर ओवैसी लगातार सवाल खड़े करे रहे हैं. इस बयान के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं.
ओवैसी यूपी में मुस्लिमों की भागीदारी का मुद्दा उठा रहे हैं. इस वक्त यूपी में मुस्लिम वोट बैंक समाजवादी पार्टी के साथ माना जा रहा है. सपा यह दावा कर रही है कि 2022 में बीजेपी का मुकाबला सिर्फ समाजवादी पार्टी ही कर रही है. लेकिन ओवैसी यूपी में अपनी सियासी जमीन तलाश रहे हैं. अगर ओवैसी 100 सीटों पर चुनाव लड़ते हैं तो सपा के वोट बैंक को नुकसान हो सकता है और इसका सीधे तौर पर फायदा बीजेपी को ही मिलेगा.
यूपी के कई सियासी जानकार योगी के बयान को बीजेपी की चुनावी रणनीति से भी जोड़ कर देख रहे हैं. योगी ने कहा कि ओवैसी देश के बड़े नेता हैं. योगी के इस बयान से ओवैसी की स्वीकार्यता मुस्लिमों में बढ़ सकती है और शायद इसीलिए योगी ने ओवैसी के चैलेंज को भी स्वीकार किया. अगर यूपी में ओवैसी पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ते हैं तो सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लग सकती है. इसी का फायदा उठाने की तैयारी में बीजेपी भी दिख रही है. इसीलिए बीजेपी के तमाम छोटे-बड़े नेता इन दिनों ओवैसी पर हमला बोलते नजर आ रहे हैं, ताकि ओवैसी यूपी में चर्चा का विषय बने रहें.
विपक्ष बार बार यह कहता है कि बिहार विधान सभा चुनाव में AIMIM के चुनाव लड़ने से तेजस्वी यादव को कई सीटों पर नुकसान हुआ. जिसकी वजह से बिहार में बीजेपी-जेडीयू की सरकार बन गई. हालांकि बिहार के बाद ओवैसी की दाल बंगाल में नहीं गल पाई. पश्चिम बंगाल के मुसलमान वोटर एकतरफा ममता बनर्जी के साथ गए. मुस्लिम मतों के एकतरफा ध्रुवीकरण की वजह से ही ममता बनर्जी की बंगाल में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी.
पश्चिम बंगाल के बाद अगर यूपी का मुस्लिम एक साथ समाजवादी पार्टी के साथ जाता है तो कई सीटों पर सपा की जीत आसान हो जाएगी, खासतौर पर पूर्वांचल के इलाके में. क्योंकि बंगाल के बाद यह माना जा रहा है कि मुस्लिम मतदाता उसी पार्टी को वोट करेगा जो बीजेपी को हराता हुआ दिखेगा. फिलहाल यूपी में समाजवादी पार्टी ही हर सीट पर बीजेपी से लड़ती हुई नजर आ रही है. बीएसपी और कांग्रेस इस बार लड़ाई से बाहर नजर आ रहे हैं. ऐसे में अगर ओवैसी 100 सीटों पर चुनाव लड़ते हैं तो वो यूपी की मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर ही चुनाव लड़ेंगे और ओवैसी के अधिकतर प्रत्याशी भी मुस्लिम हो सकते हैं. ऐसी स्थिति में सपा के मुस्लिम वोट बैंक को क्या ओवैसी नुकसान पहुंचाने में सफल हो पाएंगे? यह बड़ा सवाल है. वहीं सपा को यह लगता है कि बीजेपी विरोध का सारा वोट उसे ही मिलेगा, क्योंकि वो बंगाल की तर्ज पर मुख्य तौर पर बीजेपी के विपक्ष में है.
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यूपी में अचानक से ओवैसी की चर्चा बढ़ी और लोग यह पूछने लगे कि क्या यूपी में ओवैसी की दाल गल पाएगी? इसका जवाब तलाशने के लिए हमें यूपी के पिछले कुछ चुनावी नतीजों का अध्ययन करना होगा. 2022 का चुनाव पहला मौका नहीं होगा जब औवेसी यूपी में अपनी पार्टी को लड़ाने आ रहे हैं. इससे पहले कई चुनावों में ओवैसी यूपी में अपनी पार्टी को लड़ा चुके हैं. 2017 के विधान सभा चुनाव में भी AIMIM कई सीटों पर चुनाव लड़ी थी. लेकिन किसी भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी, ये जरूर है कि एक-दो सीटों पर सपा के वोट जरूर काटते हुए नजर आई.
AIMIM पश्चिमी यूपी के मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बिजनौर, कैराना, सहारनपुर जैसे मुस्लिमों बाहुल्य इलाकों से विधान सभा चुनाव लड़ी थी. मुरादाबाद की कांठ विधान सभा सीट पर सपा हार गई और बीजेपी जीत गई. इसके पीछे AIMIM को मिले वोट सबसे बड़ा कारण हैं. 2017 के विधान सभा चुनाव में मुरादाबाद की कांठ विधान सभा से AIMIM को 22908 वोट मिले थे और यह सीट सपा सिर्फ 3000 वोटों से ही हारी थी, यानि अगर AIMIM के प्रत्याशी को इतने वोट नहीं मिलते तो यहां बीजेपी का जीतना मुश्किल था. वहीं संभल में AIMIM को सबसे ज्यादा 59,336 वोट मिले थे लेकिन इस सीट पर सपा के इकबाल महमूद ही जीत गए थे.
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इन दो सीटों के अलावा पश्चिमी यूपी की ज्यादातर विधान सभा सीटों पर 2017 में AIMIM का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा और कुछ इस प्रकार वोट मिले थे.
सहारनपुर- 693 वोट
कैराना- 1365 वोट
नज़ीबाबाद- बिजनौर- 2094 वोट
मुरादाबाद शहर- 947 वोट
बदायूं- 883 वोट
बाराबंकी- 708 वोट
आगरा दक्षिण- 232 वोट
कोल, अलीगढ़- 463 वोट
नगीना- 4385 वोट
अमरोहा- 2861 वोट
2017 से अब 2021 तक 4 साल हो चुके हैं. कई सियासी समीकरण बदल चुके हैं. अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो बीजेपी, सपा, बसपा और कांग्रेस अब चारों ही पार्टियां अलग अलग चुनाव लड़ रही हैं. बीजेपी सिर्फ निषाद पार्टी और अपना दल (एस) के साथ गठबंधन में है तो सपा पश्चिमी यूपी की आरएलडी, महान दल और पूर्वी यूपी की जनवादी पार्टी के साथ गठबंधन में है. सपा ने इस चुनाव में बसपा और कांग्रेस से दूरी बना रखी है. बीएसपी अध्यक्ष मायावती भी ऐलान कर चुकी हैं कि उनकी पार्टी अकेले ही चुनाव लड़ेगी. कांग्रेस भी प्रियंका के नेतृत्व में अकेले ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है. बीजेपी को छोड़कर बाकी ये सभी राजनीतिक दल मुस्लिम वोट बैंक पर अपना अधिकार बताते हैं. ऐसे में यूपी की सियासत में ओवैसी की एंट्री कितना कमाल दिखा पाएगी, यह तो वक्त ही बताएगा. लेकिन सियासी दलों की अपनी अपनी चुनावी तैयारियां उत्तर प्रदेश में शुरू हो चुकी है.
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