नहीं आए अखिलेश, लेकिन नतीजों से मिला ये संदेश! अपने दम पर 100 सीटें पार हुई सपा
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नहीं आए अखिलेश, लेकिन नतीजों से मिला ये संदेश! अपने दम पर 100 सीटें पार हुई सपा

सीएम योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर के मठ में वापस भेजने की अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की आस भले पूरी न हो पाई हो. लेकिन उन्होंने पार्टी को एक सम्मानजनक स्कोर तक जरूर पहुंचा दिया. 

फाइल फोटो

UP Assembly Election Result 2022: यूपी असेंबली चुनाव में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) पूरे इलेक्शन के दौरान उम्‍मीदों से भरे रहे. वे दावा करते रहे कि मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ को जनता वापस गोरखपुर भेज देगी लेकिन उनका दावा सच साबित नहीं हो सका. हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उन्होंने अकेले दम पर बीजेपी की भारी भरकम सेना से कड़ा मुकाबला किया और पिछले चुनाव की तुलना में इस बार अपनी पार्टी को मजबूत स्थिति में ला दिया.

  1. समाजवादी पार्टी ने जीती 100 से ज्यादा सीटें
  2. पूरा नहीं हो पाया योगी को गोरखपुर भेजने का सपना
  3. वर्ष 2017 में सपा को मिली थी 47 सीटें

समाजवादी पार्टी ने जीती 100 से ज्यादा सीटें

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक गुरुवार की रात करीब पौने दस बजे तक समाजवादी पार्टी ने यूपी में 81 सीटों पर जीत दर्ज कर ली. वहीं 30 सीटों पर आगे चल रही थी. इस हिसाब से यादव की अगुवाई वाली सपा को अकेले 111 सीटों पर जीत मिल गई. इसके अलावा अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय लोकदल को 8 सीटों पर जीत मिली है. जबकि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी 3 सीटों पर आगे चल रही है और 3 सीटों पर वह जीत गई.

जहां बीजेपी ने इन चुनाव स्टार प्रचारकों का तांता लगा दिया. वहीं उत्तर प्रदेश के चुनावों में अखिलेश यादव टिकट बांटने से लेकर सहयोगी चुनने तक समाजवादी पार्टी के अकेला चेहरे थे. इस तरीके से कहें तो यह चुनाव सपा अध्यक्ष का वन-मैन शो था.

पूरा नहीं हो पाया योगी को गोरखपुर भेजने का सपना

सीएम योगी आदित्‍यनाथ से करीब एक वर्ष छोटे 48 वर्षीय अखिलेश यादव ने चुनावी जनसभाओं में दावा किया कि प्रदेश की जनता योगी को गोरखपुर भेज देगी. चूंकि पहले उनके अयोध्या से विधानसभा चुनाव लड़ने की अटकलें थीं लेकिन बाद में बीजेपी ने उन्हें गोरखपुर से उम्मीदवार घोषित कर दिया. तभी से अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) कहते थे कि पार्टी ने उन्हें उनके घर भेज दिया और अब जनता नियमित रूप से उन्हें उनके घर भेज देगी. योगी गोरखपुर की प्रसिद्ध गोरक्षपीठ के महंत भी हैं. हालांकि बीजेपी भारी बहुमत से सत्ता में वापस आ गई और अखिलेश यादव का दावा पूरा नहीं हो पाया. 

अखिलेश यादव ने बहुत कम उम्र में राजनीति में प्रवेश किया था और वर्ष 2000 में कन्नौज संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का उप चुनाव जीतकर वे संसद सदस्य बने थे. वे इस समय आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं. इसके साथ ही मैनपुरी की करहल सीट से करीब 67 हजार वोटों से असेंबली चुनाव भी जीत गए हैं. अखिलेश यादव ने पहली बार यह विधानसभा चुनाव लड़ा.

वर्ष 2017 में सपा को मिली थी 47 सीटें

अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने वर्ष 2017 में कांग्रेस पार्टी से गठबंधन कर चुनाव लड़ा छा. उस दौरान उन्हें केवल 47 सीटें ही मिल सकी थी और कांग्रेस भी 7 सीटों पर सिमट गई थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया था. उस दौरान बसपा ने 10 सीटों पर और सपा को 5 सीटों पर जीत मिली थी. 

बड़े दलों से गठबंधन में असफलता का स्वाद चखने के बाद अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने पहली बार छोटे छोटे दलों से गठबंधन किया. उन्होंने इस बार सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल (कमेरावादी), महान दल, जनवादी सोशलिस्ट और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के साथ गठबंधन किया. ये सभी दल जातीय जनाधार रखने वाले नेताओं क्रमश: ओमप्रकाश राजभर, कृष्णा पटेल, डॉक्टर संजय चौहान और शिवपाल सिंह यादव की अगुवाई में उत्‍तर प्रदेश में सक्रिय हैं.

अति पिछड़े वर्ग के इन नेताओं को साथ जोड़ने के अलावा यादव ने बीजेपी से इस्तीफा देने वाले स्‍वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी को भी सपा में शामिल किया. यादव ने नारा दिया कि 2022 में सामाजिक न्‍याय का इंकलाब होगा और समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी.

पार्टी पर पकड़ बनाने के लिए करनी पड़ी थी जद्दोजहद

सपा इकाई के प्रमुख और मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के शुरुआती वर्षों में उन्होंने डीपी यादव, अमर सिंह और आजम खान जैसे राजनेताओं से निपटने के लिए संघर्ष किया. उनके चाचा शिवपाल यादव, माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल को उनकी मर्जी के खिलाफ सपा में ले आए. इसके बाद अखिलेश यादव ने अंसारी की पार्टी के विलय से इनकार कर दिया. जिससे उनके चाचा शिवपाल यादव से उनकी दूरी भी बढ़ गई.

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जनवरी 2017 में पार्टी के एक आपातकालीन सम्मेलन में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटाकर उन्‍हें पार्टी का संरक्षक घोषित किया गया. इसके बाद बीजेपी ने मुगल काल में अपने पिता शाहजहां का तख्ता पलट कर बादशाह बनने वाले औरंगजेब से अखिलेश यादव की तुलना की थी.

इस बार चाचा शिवपाल यादव के साथ किया तालमेल

अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल से सपा पर काबिज होने की अदालती लड़ाई भी लड़ी और फैसला उनके के पक्ष में हुआ. इस बार विधानसभा चुनाव में पुरानी कड़वाहटों को दरकिनार कर अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने अपने चाचा शिवपाल के साथ तालमेल किया और सपा की छवि बदलने की मुहिम शुरू कर दी. उन्‍होंने भाजपा सरकार में एनसीआरबी के आंकड़ों के हवाले से अपराध बढ़ने समेत कई गंभीर आरोप लगाए और बदलाव की लड़ाई शुरू की.

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