Tapovan Tunnel के बाहर तीन दिन से बैठा है यह 'वफादार', अपने मालिक का कर रहा इंतजार
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Tapovan Tunnel के बाहर तीन दिन से बैठा है यह 'वफादार', अपने मालिक का कर रहा इंतजार

कुत्ता टनल के पास यह उम्मीद लगाए बैठा है कि उसका दोस्त, उसका मालिक सुरंग से बाहर निकलेगा, लेकिन अभी तक उसे निराशा ही हाथ लगी है.

Tapovan Tunnel के बाहर तीन दिन से बैठा है यह 'वफादार', अपने मालिक का कर रहा इंतजार

चमोली: उत्तराखंड के तपोवन टनल में पांच दिन से लगातार राहत कार्य चल रहा है. चमोली आपदा की वजह से फंसे लोगों को निकालने की कोशिशें जारी हैं. इसी बीच लोगों ने ध्यान दिया कि एक डॉग तीन दिन से टनल के पास ही बैठा है, मानों किसी का बेसब्री से इंतजार कर रहा हो. उसको कई बार भगाया भी गया, लेकिन वह हर बार वापस आकर वहीं बैठ जाता है. इस कुत्ते की कहानी पढ़कर आपको भी समझ आ जाएगा कि इनसे वफादार कोई नहीं हो सकता...

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मालिक के इंतजार में कई दिन से बैठा है डॉगी
दरअसल, अंग्रेजी वेबसाइट टाइम्स नाओ की रिपोर्ट के अनुसार, यह कुत्ता Tapovan Hydel Project Site के पास बैठकर उस व्यक्ति का इंतजार कर रहा है, जो आपदा की वजह से टनल में फंस गया. अपने मालिक का पता लगाने की उसने बहुत कोशिश की, लेकिन अभी तक उसे ढूंढ नहीं पाया. हालांकि, अपने मालिक की महक उसको टनल के पास तक ले आई. अब कुत्ता टनल के पास यह उम्मीद लगाए बैठा है कि उसका दोस्त, उसका मालिक सुरंग से बाहर निकलेगा, लेकिन अभी तक उसे निराशा ही हाथ लगी है.

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क्या है रेस्क्यू ऑपरेशन की स्थिति?
आपदा आने के पांच दिन बाद भी तपोवन टनल में 30 से ज्यादा मजदूरों को निकालने की मशक्कत जारी है. रैणी गांव से श्रीनगर तक लापता लोगों की तलाश में सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है. इस ऑपरेशन में उत्तराखंड पुलिस के साथ एसडीआरएफ की 8 टीमें लगी हुई हैं. ड्रोन, मोटरबोट के साथ ही डॉग स्क्वॉयड की मदद से ऑपरेशन चलाया जा रहा है. गुरुवार तड़के तपोवन टनल में ड्रिलिंग ऑपरेशन शुरू किया गया. इस ड्रिलिंग के जरिए 12 से 13 मीटर लंबा छेद कर पताया लगाया जा रहा है कि अंदर कोई मौजूद है या नहीं. उत्तराखंड मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा है कि थोड़ा समय लगेगा लेकिन पूरा प्रयास किया जा रहा है, जल्द सफलता मिलेगी.

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कैसे आई चमोली आपदा?
सीएम रावत ने  ISRO के वैज्ञानिकों के हवाले से जानकारी दी थी कि 7 फरवरी को जो आपदा आई वह ग्लेशियर टूटने से नहीं, बल्कि एक ट्रिगर प्वॉइंट से लाखों मीट्रिक टन बर्फ एक साथ फिसलने से आई थी. ISRO ने बताया था कि तस्वीरों में यह बात सामने आई है कि वहां कोई ग्लेशियर नहीं था और पहाड़ साफ दिखाई दे रहा था.  वैसे भी वह इलाका आपदाओं के प्रति संवेदनशील (Disaster Prone) नहीं है.

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