अहमद पटेल राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते बेहद मजबूत हो चुके थे. उनपर राजीव गांधी को सबसे ज्यादा भरोसा था. वो राजीव गांधी के न सिर्फ संसदीय सचिव रहे, बल्कि उनकी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर रही.
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नई दिल्ली: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल इस दुनिया में नहीं रहे. 71 वर्षीय अहमद पटेल का कोरोना से निधन हो गया. करीब 2 महीने पहले वह कोविड पॉजिटिव पाए गए थे, जिसके बाद से उनका इलाज चल रहा था. अहमद पटेल को कांग्रेस पार्टी का चाणक्य माना जाता था. पार्टी के 'संकट मोचक' कहे जाने वाले अहमद पटेल पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तक, सबको भरोसा था.
पर्दे के पीछे से संभाली पार्टी की बागडोर
अहमद भाई के नाम से मशहूर अहमद पटेल पार्टी के मुख्य रणनीतिकार थे. जब कभी पार्टी पर बड़ा संकट आया, उसे सुलझाने में अहमद पटेल की बड़ी भूमिका रही. वह हमेशा पर्दे के पीछे से ही राजनीति करते थे और पार्टी के सबसे विश्वस्त नेताओं में गिने जाते थे. अहमद पटेल लंबे समय तक सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव रहे.
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पहली बार अपनी जन्मभूमि से चुनाव लड़ पहुंचे थे लोकसभा
अपने सुनहरे राजनीतिक करियर में वो 3 बार लोकसभा और 5 बार राज्यसभा भी पहुंचे. पांचवीं बार राज्यसभा सांसद बनने के समय उन्हें बहुत मुश्किल आई, फिर भी वह इसमें कामयाब रहे. पहली बार 26 साल की उम्र में उन्होंने इंदिरा गांधी के कहने पर अपनी जन्मभूमि भरुच से लोकसभा चुनाव लड़ा था और जीते भी थे. अपनी मेहनत के बल पर उन्होंने अपनी सियासी जमीन मजबूत की. इसके बाद उन्होंने कभी मुड़ कर नहीं देखा. 1980, 1984 में भी वह लोकसभा चुनाव जीते.
BJP ने गुजरात में बनाई पकड़ तो लोकसभा चुनाव हारे अहमद
1980 के दशक में गुजरात में भाजपा ने अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी थी. ऐसे में अहमद पटेल 1990 का लोकसभा चुनाव हार गए. 1993 में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया और वह संसद के अपर हाउस पहुंचे. इसके बाद पटेल 1999, 2005, 2011 और 2017 में अपर हाउस के ही मेंबर रहे.
इंदिरा चुनाव हार गईं, लेकिन अहमद पटेल नहीं
अहमद पटेल के बारे में सार्वजनिक तौर पर कम जानकारियां मिलती हैं. वो चुनाव के समय में ही मीडिया में दिखते, लेकिन बहुत थोड़े समय के लिए. अहमद पटेल ने नगरपालिका परिषद से राजनीति की शुरुआत की. और देखते ही देखते वो कांग्रेस पार्टी की सर्वेसर्वा इंदिरा गांधी की नजर में आ गए. इंदिरा गांधी की नजर में उनका आना एक इत्तेफाक ही था, क्योंकि 1977 के जिस आम चुनाव में कांग्रेस की करारी पराजय हुई थी, उस चुनाव में अहमद पटेल भरूच सीट से जीते थे. जबकि खुद इंदिरा गांधी अपनी सीट गवां बैठी थी.
राजीव गांधी के संसदीय सचिव
अहमद पटेल राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते बेहद मजबूत हो चुके थे. उनपर राजीव गांधी को सबसे ज्यादा भरोसा था. वो राजीव गांधी के न सिर्फ संसदीय सचिव रहे, बल्कि उनकी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर रही. वो मंत्रालय में बने रहने पर यकीन नहीं करते थे, इसीलिए अहमद पटेल को किंगमेकर कहा जाता था.
सोनिया गांधी और अहमद पटेल
सोनिया गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस से पहले भी अहमद पटेल बेहद ताकतवर शख्सियत बने रहे. सीताराम येचुरी के पार्टी अध्यक्ष पद पर बने रहने के दौरान वो पार्टी के कोषाध्यक्ष थे, लेकिन सोनिया गांधी के पीए वी जॉर्ज से तकरार के बाद साल 2000 में उन्होंने ये पद छोड़ दिया. हालांकि 2001 में सोनिया गांधी ने उन्हें अपना राजनीतिक सलाहकार बना लिया और तब से वो सोनिया गांधी के हर फैसले के पीछे खड़े रहे. यहां तक मौजूदा समय में सोनिया गांधी कांग्रेस की कार्यवाहक अध्यक्ष हैं, तो इसके पीछे भी अहमद पटेल का हाथ माना जाता है.
अहमद पटेल का निजी जीवन
अहमद पटेल का जन्म 21 अगस्त 1949 को भरुच में हुआ था. भरुच जिला तब बॉम्बे प्रेसीडेन्सी का हिस्सा हुआ करता था. पटेल ने राजनीतिक जीवन की शुरूआत में ही इमरजेंसी के दौर में मेमुना से साल 1976 में शादी की थी. उनके दो बच्चे हैं और दोनों का ही राजनीति से कोई लेना देना नहीं. अहमद पटेल खुद को भी मीडिया की चमक दमक से दूर रखने का प्रयास करते रहे.
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