कोर्ट का Live-in Relationship पर अहम फैसला, शादीशुदा हो कर किसी और के साथ रहना अपराध
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कोर्ट का Live-in Relationship पर अहम फैसला, शादीशुदा हो कर किसी और के साथ रहना अपराध

गौरतलब है कि अरविंद और आशा ने याचिका दायर कर कहा था कि दोनों बालिग हैं और 'पति पत्‍नी की तरह रहते हैं' इसलिए किसी को उनके जीवन में दखल देने का हक नहीं होना चाहिए. याचिका में उन्होंने अपने परिवार वालों (खास कर आशा के ससुराल वालों) से सुरक्षा और संरक्षण की मांग की थी. 

इलाहाबाद हाई कोर्ट (फाइल फोटो)

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट का आदेश है कि अगर कोई शादीशुदा व्यक्ति अपने पार्टनर को तलाक दिए बिना किसी और के साथ रहता/रहती है तो उसे कोर्ट से संरक्षण का अधिकार नहीं होगा. बल्कि यह अपराध की श्रेणी में आएगा. कोर्ट ने साफ कहा है कि अवैध संबंध को संरक्षण का आदेश देना अपराध को संरक्षण देने जैसा है. 

यह फैसला जस्टिस एसपी केसरवानी और जस्टिस डॉ. वाई.के. श्रीवास्‍तव ने आशा देवी और अरविंद कुमार की याचिका को खारिज करते हुए सुनाया.

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याचिका में की परिवार से संरक्षण की मांग
गौरतलब है कि अरविंद और आशा ने याचिका दायर कर कहा था कि दोनों बालिग हैं और 'पति पत्‍नी की तरह रहते हैं' इसलिए किसी को उनके जीवन में दखल देने का हक नहीं होना चाहिए. याचिका में उन्होंने अपने परिवार वालों (खास कर आशा के ससुराल वालों) से सुरक्षा और संरक्षण की मांग की थी. 

पति होने के बावजूद किसी और के साथ रहना अपराध
इसके विरोध में सरकारी वकील ने बताया कि आशा देवी की शादी पहले महेश चंद्र से हुई थी. बाद में वह बिना तलाक दिए अरविंद कुमार के साथ रहने लगीं. यह अपराध है, इसलिए दोनों को किसी तरह का संरक्षण नहीं दिया जा सकता. कोर्ट ने दोनों पक्षों की बात सुन कर फैसला लिया कि शादीशुदा महिला दूसरे पुरुष के साथ पति-पत्नी की तरह रहती है, तो इसे लिव इन रिलेशनशिप नहीं माना जा सकता. 

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धारा 494/495 के तहत अपराध
कोर्ट ने बीते सोमवार सुनवाई के दौरान कहा कि कानून के तहत आशा देवी अभी भी महेश चंद्र की पत्‍नी है. क्योंकि आशा पहले से शादीशुदा है, इसलिए याचिकाकर्ताओं (खास कर अरविंद) धारा 494/495 के तहत अपराधी माना जाएगा. बता दें,  धारा 494 में पति या पत्‍नी के जीव‍ित रहते दोबारा शादी करना और 495 में जिसके साथ दोबारा विवाह हुआ है उससे पहले का विवाह छिपाना अपराध घोषित किए गए हैं. 

याचिका खारिज कर दिया ये आदेश
दोनों जज का कहना है कि आशा और अरविंद का यह रिलेशन न तो लिव-इन की श्रेणी में आता है और न ही इसे विवाह माना जा सकता है. इसलिए कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा है कि  'याचिकाकर्ताओं को कानूनन ऐसा कोई अधिकार नहीं मिला जिसके आधार पर वे अदालत में परमादेश रिट (मैंडेमस रिट) दायर कर सकें.' कोर्ट ने कहा कि आदेश विधिक अधिकारों को लागू करने या संरक्षण देने के लिए तो जारी किया जा सकता है, लेकिन किसी अपराधी को संरक्षण देने के लिए आदेश जारी नहीं हो सकता. कोर्ट ने कहा कि कानून के खिलाफ अदालत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकती.

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धर्म परिवर्तन कर लिव-इन भी अपराध
कोर्ट ने यह भी कहा कि शादीशुदा महिला के साथ धर्म परिवर्तन कर लिव इन रिलेशनशिप मे रहना भी अपराध है. इसके लिए अवैध संबंध बनाने वाला पुरुष अपराधी माना जाएगा. ऐसे संबंध वैधानिक नहीं माने जा सकते. ऐसे में भी कोर्ट से संरक्षण मांगना गलत है. साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा है कि जो लोग कानूनी तौर पर शादी नहीं कर सकते, उनका लिव-इन रिलेशनशिप में रहना गलत है.

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