उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में लोग लगातार काश्तकारी छोड़ कर पलायन कर रहे हैं. ऐसे में अल्मोड़ा के रणजीत सिंह देवभूमि के काश्तकारों के लिए उम्मीद की एक नई किरण हैं.
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देवेन्द्र बिष्ट/अल्मोड़ा: एक तरफ जहां पहाड़ों से पलायन आम हो रहा है, काश्तकार अपनी खेती छोड़-छोड़ कर शहरों की ओर रुख कर रहे हैं, ऐसे में अल्मोड़ा के रणजीत सिंह काश्कारों के लिए एक मिसाल बनकर सामने आए. उन्होंने पहाड़ पर खेती करने का फैसला किया. काम कठिन था, धीरे-धीरे लोगों का साथ मिला और उन्होंने कड़ी मेहनत के बाद पहाड़ तोड़कर सीढ़ीनुमा खेत तैयार कर लिया.
आपदा को अवसर में बदला
हवालबाग विकास खंड के धामस गांव के रहने वाले रणजीत दिल्ली की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते थे. कोरोना की वजह से जब उनकी नौकरी चली गई, तो मजबूर होकर उन्हें अपने गांव लौटना पड़ा. ऐसे में उन्होंने खेती को ही अपनी आजीविका बनाने का फैसला किया. पहाड़ पर जंगली जानवरों का आतंक और सिंचाई के लिए पानी की कमी जैसी कई समस्याएं थीं, लेकिन रणजीत ने हार नहीं मानी. उन्होंने पहले खेती का प्रशिक्षण लिया और फिर खेत के लिए जमीन तलाशनी शुरू कर दी.
पहाड़ काटकर शुरू की खेती
रणजीत के पास जितनी जमीन थी वो खेती के लिए पर्याप्त नहीं थी. उनके रिश्तेदार, जो खेती छोड़ चुके थे, रणजीत ने उनसे जमीन लीज पर ली. इसके बाद उन्होंने करीब 50 नाली( करीब 1 हेक्टेयर) बंजर जमीन काटकर सीढ़ीनुमा खेत तैयार किया. उनका कहना है कि फिलहाल वो अपने खेत में मटर, फूलगोभी, बंद गोभी और बाकी सब्जियां उगाएंगे. जिससे उन्हें कुछ समय में थोड़ी आमदनी भी होने लगेगी. उसके बाद अपने खेत में महंगे उत्पादों जैसे केसर, मशरूम और सेब की खेती भी करेंगे. उनसे प्रेरणा पाकर गांव के कई और किसानों ने एक बार फिर काश्तकारी की राह अपना ली है.
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