सीरीज जीतकर पिता की कब्र पर पहुंचे मोहम्मद सिराज, आंखों से बहने लगे आंसू
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सीरीज जीतकर पिता की कब्र पर पहुंचे मोहम्मद सिराज, आंखों से बहने लगे आंसू

अपनी पहली ही टेस्ट सीरीज में 13 विकेट हासिल किए. जिसमें मेलबर्न में 5, सिडनी में 2 और ब्रिस्बेन में हुए आखिरी टेस्ट में 6 विकेट झटके. 

पिता की कब्र पर सिराज.

हैदराबाद: ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज जीतने वाले भारतीय टीम के सदस्य और तेज गेंदबाज मोहम्मद सिराज (Mohammed Siraj) गुरुवार को हैदराबाद लौटे. एयरपोर्ट से उतरकर सीधा अपने पिता की कब्र पर पहुंचे. जहां उन्होंने सूरे फातिहा (कुरआन) पढ़ी. इस दौरान वह काफी भावुक हो गए.

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सीरीज में लिए 13 विकेट
बता दें कि सिराज जब ऑस्ट्रेलिया टूर पर टीम के साथ थे, तो उनके पिता का देहांत हो गया था. उस समय बीसीसीआई ने उन्हें घर जाने की परमिशन दी थी लेकिन उन्होंने टीम के साथ रहकर देश के लिए खेलना बेहतर समझा. अपनी पहली ही टेस्ट सीरीज में 13 विकेट हासिल किए. जिसमें मेलबर्न में 5, सिडनी में 2 और ब्रिस्बेन में हुए आखिरी टेस्ट में 6 विकेट झटके. ब्रिस्बेन में तो वे स्ट्राइक बॉलर के तौर पर उतरे, क्योंकि मोहम्मद शमी और बुमराह चोट की वजह से बाहर थे.

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नस्लीय टिप्पणियों का भी किया सामना
सीरीज के दौरान दर्शकों से नस्लीय टिप्पणियों का भी सामना करना पड़ा. इस दौरान उन्हें मंकी, डॉग और ग्रब (कीड़ा) तक कहा गया. लेकिन वो अपने काम पर डटे रहे. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मेलबर्न में हुए दूसरे टेस्ट से सिराज ने अपना डेब्यू किया. सीरीज के 4 में से 3 टेस्ट खेले. साथ ही इस टेस्ट मैच के दौरे में 13 विकेट लेकर भारत के सबसे सफल बॉलर बनकर उभरे. 

राष्ट्रगान के दौरान छलके आंसू
पिता के देहांत के बाद सिराज पूरी तरह से टूट चुके थे. उन्हें कई मौकों पर भावुक होते हुए देखा गया. एक बार तो वो राष्ट्रगान के दौरान रोने लगे थे. तब उन्हें उनके साथ खड़े जसप्रीत बुमराह ने संभाला और कुछ ही लम्हों में सिराज के होठों पर मुस्कान ला दी थी. उनकी इस भावना को न सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी लोग भी सलाम कर रहे हैं. 

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मां ने मुझे हिम्मत दी: सिराज
सिराज ने एक जगह बात करते हुए कहा,"मेरे अब्बू चाहते थे कि मेरा बेटा देश की तरफ से खेले और पूरी दुनिया उसे खेलते हुए देखे. काश वह आज का दिन देखने के लिए जिंदा होते." उन्होंने आगे कहा,"यह उनकी दुआओं का ही नतीजा है कि मैं आज यहां हूं. मेरे पास लफ्ज नहीं हैं और अपनी भावनाओं को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता हूं." यह बहुत मुश्किल स्थिति थी. अब्बू के इंतेकाल के बाद मां से बात करने पर मुझे ताकत मिली और मैंने अपना ध्यान अब्बू का ख्वाब पूरा करने पर लगा दिया."

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