Uttarakhand News: उत्तराखंड में क्यों धधक रही भू आंदोलन की आग, भू कानून और मूल निवास को लेकर कांग्रेस-बीजेपी में घमासान
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Uttarakhand News: उत्तराखंड में क्यों धधक रही भू आंदोलन की आग, भू कानून और मूल निवास को लेकर कांग्रेस-बीजेपी में घमासान

Uttarakhand Bhu Kanoon: उत्तराखंड में सशक्त भू कानून लागू करने की मांग काफी समय से की जा रही है. इस मांग में और तेजी आ गई है. जिसका मुख्य कारण ये है कि राज्य के पूर्व सीएम हरीश रावत द्वारा भू कानून के संबंध में एक बड़ा दावा कर बैठे हैं.

Uttarakhand Land Law

देहरादून: उत्तराखंड में काफी समय से सशक्त भू कानून लागू करने की मांग की जा रही है और इस मांग में और तेजी आ गई है. जिसका मुख्य कारण ये है कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा भू कानून के संबंध में बड़ा दावा किया है. हरीश रावत ने इस बार कांग्रेस की सरकार बनते ही राज्य में सशक्त भू कानून लागू करने का दावा किया है. 

जरूरत से ज्यादा जमीन 
देवभूमि उत्तराखंड में सशक्त भू कानून लागू करने की मांग पहले से तेज हो गई है. दअरसल, राज्य के पूर्व सीएम हरीश रावत ने भू कानून के संबंध में एक बड़ा दावा किया है. रावत ने कहा है कि कांग्रेस की सरकार बनते ही राज्य में सशक्त भू कानून को लागू कर दिया जाए साथ ही भू-कानून बनाकर कांग्रेस लोगों से जरूरत से ज्यादा जमीन वापस भी ले लेगी. दूसरी ओर भू- कानून के संबंध में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन महारा ने भी सहमति दी और कहा कि जो कानून राज्य के हित में हो वो लागू होना चाहिए. जिस तरह बीजेपी ने कानून बदला है, इंडस्ट्री लैंड का लैंड यूज बदल सकता है. ये सब देखा परखा जाएगा साथ ही कांग्रेस सरकार के आते ही सख्त भू कानून को भी लागू कर दिया जाएगा.

सशक्त भू कानून का मुद्दा गर्म
दूसरी ओर हरीश रावत के इस दावे पर प्रदेश की सियासत गर्म हो गई है. बीजेपी ने भी हरिश दावत पर पलटवार किया है और कहा है कि कांग्रेस की सरकार बनने का केवल हरीश रावत ख्वाब देख रहे हैं. उन्होंने अपने कार्यकाल में सशक्त भू कानून लागू क्यों नहीं किया. ध्यान देने वाली बात है कि कुल मिलाकर हरीश रावत ने अपने बयान से सशक्त भू कानून का मुद्दा गर्म हो गया है. वहीं, राज्य में सश्क्त भू कानून के साथ ही मूलनिवास को लेकर राज्य में आंदोलन गतिमान है. सवाल ये है कि क्या धामी सरकार राज्य में सशक्त भू कानून और मूल निवास 1950 लागू करने के लिए गंभीर है या नहीं. ये आने वाला समय ही बताएगा. 

मूल निवास की समयसीमा बनाने की मांग उठाई जाती रही है
यहां मूल निवास भी बड़ा मुद्दा है. उत्तराखंड में भी पूरे देश के जैसे ही 1950 को ही मूल निवास की समयसीमा बनाने की मांग उठाई जाती रही है. देश का संविधान के लागू होने पर ही राष्ट्रपति अधिसूचना के माध्यम से इसे तय किया जा सकेगा कि साल 1950 तक जो जिस प्रदेश का रहने वाला है उसको वहीं का मूल निवासी माना जाएगा. हालांकि साल 1985 में तत्कालीन उत्तराखंड सरकार ने 1950 से सीधे 1985 इसकी समयसीमा कर दी. एक याचिका में नैनीताल हाईकोर्ट ने भी फैसला सुनाया था कि 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड गठन के समय से ही जो शख्स उत्तराखंड में रह रहा था उसको राज्य का मूल निवासी माना जाएगा. वहीं छत्तीसगढ़, झारखंड जैसे नए राज्य में भी मूल निवास की सीमा 1950 मानी गई.

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