करीब ढाई घंटे की सुनवाई के दौरान आरोपियों की तरफ से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत से इस केस में मीडिया कवरेज पर रोक लगाने की मांग की. न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया.
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लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में सोमवार को हाथरस कांड की सुनवाई पूरी हो गई. कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है. अब मामले की अगली सुनवाई 25 नवंबर होगी. सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ में उत्तर प्रदेश के एडीजी लॉ एंड आर्डर प्रशांत कुमार, सचिव गृह विभाग तरुण गाबा, हाथरस के तत्कालीन एसपी विक्रांत वीर हाजिर हुए.
करीब ढाई घंटे की सुनवाई के दौरान आरोपियों की तरफ से पेश सुप्रीम कोर्ट के वकील सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत से इस केस में मीडिया कवरेज पर रोक लगाने की मांग की. न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया. हालांकि अदालत ने मीडिया से मर्यादा में रहकर मामले की कवरेज की बात कही.
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एसपी व डीएम के बयानों में अंतर मिला: पीड़ित पक्ष की वकील
सुनवाई के दौरान एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार, गृह विभाग के सचिव तरुण गाबा, डीएम प्रवीण कुमार, पीड़ित पक्ष की वकील सीमा कुशवाहा, हाथरस के पूर्व पुलिस कप्तान विक्रांत वीर के बयान दर्ज किए गए. पीड़ित पक्ष की वकील सीमा कुशवाहा ने कहा, ''पिछली सुनवाई में एडीजी लॉ एंड ऑर्डर (प्रशांत कुमार) ने कहा था कि दिल्ली से आते वक्त पीड़िता का शव व उसका परिवार एक ही गाड़ी में थे, लेकिन अब पूर्व एसपी विक्रांत वीर ने कहा कि पीड़िता का शव और परिवार अलग-अलग गाड़ी में थे. इस तरह दोनों अफसरों के बयानों में अंतर मिला है.
हाई कोर्ट ने पूछा- डीएम पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई
हाई कोर्ट ने योगी सरकार के वकील से पूछा कि अब तक हाथरस डीएम प्रवीण कुमार लक्षकार पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई है? सरकार की ओर से कहा गया है कि हम डीएम को हटा देंगे. लेकिन सीमा कुशवाहा ने कोर्ट से एसपी व डीएम को टर्मिनेट किए जाने की मांग रखी. इस मामले में SIT जांच की रिपोर्ट योगी सरकार की ओर से हाई कोर्ट में पेश करने की संभावना थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाथरस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने भी 27 सितंबर को आदेश दिया था कि हाथरस केस की सीबीआई जांच इलाहाबाद हाई कोर्ट की निगरानी में होगी.
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हाई कोर्ट ने पिछली सुनवाई में की थी तल्ख टिप्पणी
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने इससे पहले 12 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान हाथरस में परिवार की मर्जी के बिना रात में मृतका का अंतिम संस्कार किए जाने पर तीखी टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था कि बिना रीति-रिवाजों के युवती का दाह संस्कार करना पीड़ित, उसके स्वजन और रिश्तेदारों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है. इसके लिए जिम्मेदारी तय कर कार्रवाई करने की आवश्यकता है. हाई कोर्ट ने इस मामले में मीडिया, राजनीतिक दलों व सरकारी अफसरों की अतिसक्रियता पर भी नाराजगी प्रकट करते हुए उन्हें इस मामले में बेवजह बयानबाजी न करने की हिदायत भी दी थी.
क्या हुआ था हाथरस के बूलगढ़ी गांव में?
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के बूलगढ़ी गांव में 14 सितंबर को 19 वर्षीय दलित लड़की से चार लड़कों ने कथित रूप से सामूहिक दुष्कर्म के बाद मारपीट की थी. युवती को पहले जिला अस्पताल, फिर अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया. हालत खराब होने पर पर उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया, जहां 29 सितंबर को उसने दम तोड़ दिया. चारों आरोपी फिलहाल जेल में हैं. पुलिस ने पीड़िता के पोस्टमार्टम और फॉरेंसिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए गैंगरेप से इनकार किया है. इस केस में एसआईटी जांच पूरी हो चुकी है, लेकिन रिपोर्ट शासन के पास है और सार्वजनिक नहीं हुई है.
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