हाईकोर्ट ने दी जमानत, लेकिन 'कुमार' ने 8 महीने जेल से बाहर ही नहीं आने दिया
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हाईकोर्ट ने दी जमानत, लेकिन 'कुमार' ने 8 महीने जेल से बाहर ही नहीं आने दिया

इस एक शब्द की गलती से आरोपी को जमानत मिलने के बाद भी उसे रिहा नहीं किया जा सका. जेलर ने याची को इस तकनीकी खामी के कारण रिहा करने से मना कर दिया. 

इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज: एक कैदी को हाईकोर्ट ने भी जमानत का आदेश दे दिया था, लेकिन फिर भी उसे 8 महीने तक जेल में ही रहना पड़ा. इसकी वजह सुनकर आप दस्तावेजों में नाम लिखते वक्त दस बार उसे चेक करेंगे. अगर दस्तावेजों में कैदी का नाम सही और एक जैसा लिखा होता तो उसे तुरंत ही जेल से बाहर ले जाया जा सकता था लेकिन कैदी के नाम के साथ लगा एक शब्द गायब होने के चलते उसे जमानत मिलने के बाद भी महीनों जेल में गुजारने पड़े.

'कुमार' ने जेल से बाहर ही नहीं आने दिया
कैदी की जमानत के आदेश और रिहाई के आदेश में उसका नाम तो वही था लेकिन मिडिल नेम यानि कुमार गायब था. इस एक शब्द की गलती से आरोपी को जमानत मिलने के बाद भी उसे रिहा नहीं किया जा सका. जेलर ने याची को इस तकनीकी खामी के कारण रिहा करने से मना कर दिया. 

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जेलर को किया तलब 
जमानत पर छोड़ने के आदेश में कैदी का नाम विनोद बरूआर लिखा था और रिमांड आदेश में विनोद कुमार बरूआर था. इस पर याची ने आदेश संशोधित करने की अर्जी दाखिल की. तकनीकी खामी के चलते अभियुक्त को न छोड़ने को कोर्ट ने गंभीरता से लिया और जेलर  को तलब कर चेतावनी दी.

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हाई कोर्ट ने लगाई फटकार
दस्तावेज की इस गलती पर हाई कोर्ट ने जेलर को फटकार लगाते हुए चेतावनी भी दी है. आजमानत आदेश में नाम के बीच का शब्द कुमार न जुडे़ होने के कारण जेल अधीक्षक ने जमानत पर रिहा करने से इनकार कर दिया था. कोर्ट के आदेश पर हाजिर सिद्धार्थनगर के जेल अधीक्षक राकेश सिंह ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि अभियुक्त को 8 दिसंबर 2020 को जमानत पर रिहा कर दिया गया है. ये आदेश न्यायमूर्ति जे जे मुनीर ने विनोद बरूआर की अर्जी पर दिया है. सत्र न्यायालय ने जमानत अर्जी 4 सितंबर 2019 को निरस्त कर दी थी, जिसपर हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी और हाईकोर्ट से 9 अप्रैल 2020 को जमानत मंजूर कर ली गई.

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