दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आजादी का जश्न 15 अगस्त को हर वर्ष मनाया जाता है. 200 साल तक ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी के बाद 15 अगस्त की ही वो तारीख थी, जब हमें 1947 को आजादी मिली. न जाने कितने आजादी के मतवालोंकी दीवानगी और लंबे संघर्ष से ये आजादी हमारे देश को नसीब हुई.
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दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आजादी का जश्न 15 अगस्त को हर वर्ष मनाया जाता है. 200 साल तक ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी के बाद 15 अगस्त की ही वो तारीख थी, जब हमें 1947 को आजादी मिली. न जाने कितने आजादी के मतवालोंकी दीवानगी और लंबे संघर्ष से ये आजादी हमारे देश को नसीब हुई. जरा सोचिए वो मंजर क्या रहा होगा, भारतवर्ष के आजाद होने की घोषणा हुई होगी. वो क्या क्षण रहा होगा जब पहली बार तिरंगा झंडा लाल किले की प्राचीर पर लहराया होगा. लेकिन ठहरिये, अफसोस ये है कि तिरंगा झंडा 15 अगस्त 1947 के दिन लाल किले की प्राचीर पर फहरा ही नहीं था.
पहले प्रधानमंत्री ने 16 अगस्त को फहराया था झंडा
15 अगस्त को आजादी की तारीख मानकर भारत के प्रधानमंत्री हर वर्ष सुबह लाल किले से झंडा फहराते हैं और राष्ट्र को संबोधित करते हैं, लेकिन 15 अगस्त, 1947 को ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था. लोकसभा सचिवालय के एक शोध पत्र के मुताबिक देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आजादी के अगले दिन यानी 16 अगस्त, 1947 को लाल किले से झंडा फहराया था.
तिरंगा फहराने के बाद नहीं गाया गया राष्ट्रगान
15 अगस्त, 1947 को हमें आजादी मिल गई. 16 अगस्त को लाल किले पर तिरंगा झंडा फहराया गया, लेकिन इस वक्त हमारा कोई राष्ट्रगान नहीं था, जो गाया जाता. हालांकि वर्तमान राष्ट्रगान 'जन गण मन' रवींद्रनाथ टैगोर ने साल 1911 में ही लिख दिया था, लेकिन तब तक इसे राष्ट्रगान का दर्जा नहीं मिला था. 1950 में जाकर ये राष्ट्रगान बना और इसे तिरंगा फहराने के बाद सम्मान में गाया जाने लगा.
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आजादी के जश्न में नहीं शामिल हुए गांधी जी
वे कर्मयोद्धा, जिन्हें आजादी की लड़ाई का नायक माना गया. जिनके अहिंसा के हथियार को स्वतंत्रता संग्राम का अद्वितीय हथियार कहा गया, वे उस वक्त जश्न में शामिल नहीं हुए, जब आजादी मिली थी. महात्मा गांधी आज़ादी के दिन दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर बंगाल के नोआखली में थे, जहां वे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए अनशन पर थे.
गांधी जी ने नहीं सुना था नेहरू का ऐतिहासिक भाषण
गांधी जी को दिल्ली आने के लिए पत्र भी लिखा गया था, लेकिन वे दिल्ली नहीं आए. जवाहर लाल नेहरू ने ऐतिहासिक भाषण 'ट्रिस्ट विद डेस्टनी' को उन्होंने 14 अगस्त की रात को वायसराय लॉज से देना शुरू किया. इस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना, लेकिन गांधी उस दिन नौ बजे सोने चले गए थे और उन्होंने भाषण सुना ही नहीं.
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