नौ साल की उम्र में परिवार की हालात इतनी खराब हो गई कि ब्रेड बेचने को मजबूर हो गया लेकिन यह तकलीफें कभी उसकी सफलता के आड़े नहीं आईं. आज वही विकास उपाध्याय करोड़ों रूपये की टर्नओवर वाली कम्पनी के मालिक हैं.
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जालौन: मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है. इस कहावत को सही ठहराया है उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के जालौन जिले के एक युवक ने, जिसने हौसले की बदौलत वो मुकाम हासिल किया कि जो आज लोगों के लिए मिसाल बन गया. नौ साल की उम्र में परिवार की हालात इतनी खराब हो गई कि ब्रेड बेचने को मजबूर हो गया लेकिन यह तकलीफें कभी उसकी सफलता के आड़े नहीं आईं. आज वही विकास उपाध्याय करोड़ों रूपये की टर्नओवर वाली कम्पनी के मालिक हैं.
घर चलाने के लिए गांव में ब्रेड बेची
विकास अपने परिवार के साथ गांव में ही रहते थे. उनके पिता दुकान की दुकान थी. मां की गंभीर बीमारी की वजह से परिवार कर्ज के बोझ के तले दबता चला गया. नौबत यहां तक आ गई कि पिता दिल्ली जाकर सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी करने लगे. परिवार पर आए आर्थिक संकट में विकास ने पिता का हाथ बांटने का फैसला किया. वह ब्रेड बेचने से लेकर कई छोटे मोटे काम करने लगे. संघर्ष की स्थिति में विकास ने किसी तरह हाई स्कूल की परीक्षा पास की.
बेटे की पढ़ाई के लिए मां ने बेचे गहने
विकास की आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए उनकी मां ने अपने गहने और जरूरी सामना बेचकर उन्हें शहर पढ़ने भेजा लेकिन आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई और रहने के लिए खर्च निकालना मुश्किल था. विकास ने अपने एक दोस्त के पिता की सलाह पर रिचार्ज वाउचर बेचने का काम शुरू किया. इंटरमीडिएट की पढाई के साथ ही रिचार्ज वाउचर खर्ज चलाने लगे. लेकिन उनके परिवार को यह पसंद नहीं आया. परिवार चाहता था कि बेटे की अच्छी नौकरी लग जाए इसलिए उन्होंने विकास से काम छोड़कर पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा.
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बीटेक की फीस भरने और खर्च चलाने के लिए की सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी
परिवार की सलाह मानकर विकास ने बीटेक में एडमिशन ले लिया. पढाई के दौरान खर्च चलाने के लिए एक कंम्प्यूटर इंस्टिट्यूट में काम भी किया. खर्च को पूरा करने के लिए उन्होंने सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी तक की. बीटेक के बाद उन्हें लखनऊ में एक छोटी सी नौकरी मिल गई. लेकिन विकास खुद का कारोबार करना चाहते थे. अपने सपने को पूरा करने के लिए विकास ने नौकरी छोड़ दी.
4 हजार रुपए और एक बैग के साथ निकल पड़े सपना पूरा करने
नौकरी छोड़ने के बाद उनके पास एक बैग और चार हजार रुपए लेकर वह नोएडा आ गए. और यहां वेबसाइट डेवलपमेंट का काम तलाशने लगे. इस दौरान उनकी मुलाकात दोस्त के साथ जिस बिल्डिंग में रह रहे थे, उसके मालिक से हुई, जो रियल स्टेट की कंपनी चलाते थे. वह एक वेबसाइट बनाने वाले बंदे को ढूंढ रहे थे. विकास ने उनकी कम्पनी की वेबसाइट बनाने का काम किया. विकास के काम से मकान मालिक ने खुश होकर रहने के लिए बिल्डिंग के बेसमेंट में जगह दे दी. इसके बाद विकास ने धीरे-धीरे काम की तलाश शुरू की और इस काम में अपने एक दोस्त को भी जोड़ लिया.
विकास को एक बड़ा प्रोजेक्ट मिला. जिसको पाकर वह बेहद खुश थे. उन्होंने अपनी मेहनत को जारी रखा. धीरे-धीरे उनकी पकड़ आईटी मार्केट में बनने लगी. उनके काम को देखकर इंटरनेशनल क्लाइंट भी आने लगे. उनके पास काफी प्रोजेक्ट्स मिलने शुरू हो गए. बड़े काम को संभालने के लिए विकास ने एक टीम बनाने का निर्णय लिया. दिन में लोगों को ट्रेनिंग देकर चीजों को करने की बारीकियां बताते और रात में काम की तलाश करते. यह सफर ऐसे ही आगे जारी रहा.
2015 में बनाई कंपनी जिसमें होता है करोड़ों का टर्नओवर
विकास ने साल 2015 में अपनी एक कंपनी रजिस्टर्ड करवाई. और इसको बढ़ाने में जुट गए. विकास की वर्षों की मेहनत रंग लाई. उनकी कंपनी में लगभग 40 कर्मचारी काम करते हैं और इस कम्पनी का करोड़ों रूपये का टर्नओवर है. नोएडा में इसकी मेन ब्रांच है. कम्पनी अपनी एक ब्रांच कनाडा में भी खोल चुकी है और बहुत जल्द ही दुबई में भी ब्रांच खोलने की तैयारी है. विकास बड़े प्रोजेक्ट्स के आलावा छोटे स्टार्ट अप के साथ काम कर उनको पूरा सॉल्यूशन देने की कोशिश करते हैं. विकास का मानना है कि ''मेहनत का कोई शार्टकट नहीं है. अगर आप मेहनत के प्रति ईमानदार हैं तो कोई भी लक्ष्य पा सकते हैं.''
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