Oldest Cinema House: यूपी ही नहीं, यहां बना था 160 साल पहले पूरे उत्तर भारत का पहला सिनेमा हॉल
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Oldest Cinema House: यूपी ही नहीं, यहां बना था 160 साल पहले पूरे उत्तर भारत का पहला सिनेमा हॉल

Oldest Cinema House in Uttar Pradesh: 21वीं सदी में लोग सिनेमा देखना बहुत पसंद करते हैं. इसके लिए कई बार थियेटर जाते हैं तो कई बार ओटीटी पर अपनी मनपसंद फिल्म देख लेते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पूरे उत्तर भारत में सबसे पहला थियेटर कहां खुला था. आइए आज आपको बताते हैं उत्तर भारत में पहले थियेटर के बारे में. 

Oldest Cinema House in Uttar Pradesh

Oldest Cinema House in UP: 21वीं सदी में लोग सिनेमा देखना बहुत पसंद करते हैं. इसके लिए कई बार थियेटर जाते हैं तो कई बार ओटीटी पर अपनी मनपसंद फिल्म देख लेते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पूरे उत्तर भारत में सबसे पहला थियेटर कहां खुला था. यह बात है साल 1860 की, जब उत्तर भारत में पहली बार एक थियेटर खुला था. इसके लिए अंग्रेजों को जगह मसूरी में मिली थी. जी हां पहाड़ों की रानी मसूरी में बना था उत्तर भारत में पहला थियेटर. 

थिएटर से सिनेमाहॉल तक
इसकी शुरूआत इलीसमेयर हाउस नाम से हुई थी. हालांकि साल 1860 से 1868 तक ही यहां पर नाटकों का मंचन होता था. लेकिन साल 1935 में में इलीसमेयर हाउस का नाम बदलकर मैजेस्टिक सिनेमा हॉल रख दिया गया था. नाम बदले जाने के साथ ही यहां पर बाइस्कोप दिखाना शुरू किया गया था. इस थियेटर की क्षमता 350 सीटों की थी. शुरूआत में यहां पर सिर्फ दो शो दिखाए जाते थे.

किसका था सपना
मसूरी में यूरोप के सिनेमा को स्थापित करने का सपना एक अंग्रेजी अफसर जॉन स्टीवर का था. लेकिन 20वीं सदी की शुरूआत में हुई महामारी प्लेग में उनकी मौत हो गई थी. जिसके बाद उनका यह सपना जस लिलिट नाम के एक अंग्रेज शख्स ने पूरा किया था. इस दौरान यहां पर 1913 के आसपास 'द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस' का निर्माण शुरू किया गया था. एक साल के बाद यानी कि साल 1914 में यह बनकर तैयार हुआ. यहां पर देखी गई पहली फिल्म 'द होली नाइट' थी. 

लगाने पड़े थे चार कांउटर
यहां की सबसे अचंभे की बात तो यह है कि मसूरी के माल रोड़ पर उस वक्त भारतीयों का प्रवेश बंद था. लेकिन द इलेक्ट्रिक पिक्चर पैलेस में जब भी कोई फिल्म लगती थी तो भारतीय और अंग्रेज सब एक साथ फिल्म देखा करते थे. इस थियेटर के लिए मील का पत्थर तो साल 1948 साबित हुआ. जब यहां लगी फिल्म 'चंद्रलेखा' के लिए इतनी भीड़ आ गई थी कि टिकट के लिए यहां पर चार काउंटर लगाए थे. लेकिन समय आगे बढ़ने के कारण 20वीं सदी में यह थियेटर बंद करना पड़ा. 

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