बासमती चावल को यूरोपीय यूनियन से भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication-GI Tag) पंजीकृत करने की मंजूरी मिल गई है. इसके बाद अब पाकिस्तान बासमती के लिए यूरोपिय बाजार खुल गए हैं.
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नई दिल्लीः भारत के बासमती चावल को पसंद करने वालों की तादाद पूरी दुनिया में है. हालांकि अब पाकिस्तान भी भारत की टक्कर में उतर आया है. दरअसल पाकिस्तान के बासमती चावल को यूरोपीय यूनियन से भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication-GI Tag) पंजीकृत करने की मंजूरी मिल गई है. इसके बाद अब पाकिस्तान बासमती के लिए यूरोपिय बाजार खुल गए हैं. हालांकि, इसको लेकर भारत लंबे समय से विरोध कर रहा था. भारत का दावा था कि उत्तर भारत के कुछ ही इलाकों में विशेष सुगंध वाली बासमती उगाई जाती है. ऐसे में पाकिस्तान को नहीं मिलना चाहिए. इन सबके अलावा GI टैग कुछ ऐसा मामला है, जिसको लेकर सिर्फ भारत-पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि देश के कई राज्य भी आपस में भिड़ चुके हैं. आइए जानते हैं, आखिए क्या है ये बला ?
क्या है GI टैग?
GI एक ऐसा नाम या प्रतीक होता है, जिसे उत्पादों के लिए किसी क्षेत्र विशेष के किसी व्यक्ति, व्यक्ति समूह या संगठन को दिया जाता है. सीधे शब्दों में कहें, तो GI एक ऐसा संकेत है, जिसका इस्तेमाल विशेष भौगोलिक क्षेत्र में पैदा या बनाए जाने वाले उत्पादों के लिए किया जाता है.
क्या है फायदा ?
GI टैग मिलने से कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति या संगठन को GI टैग के इस्तेमाल से रोक सकता है. इन सबके अलावा इसका सबसे ज्यादा फायदा व्यापार में मिलता है. पहचान मिलने के बाद अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए दरवाजे खुल जाते हैं. प्रोडक्ट का एक्सपोर्ट बढ़ जाता है. साथ में फर्जी प्रोडक्ट को रोकने में मदद मिलती है.
दरअसल, वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन का Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights (TRIPS) नाम का एक एग्रीमेंट है. इस एग्रीमेंट को साइन करने वाले सभी देश एक दूसरे के जीआई टैग का सम्मान करते हैं. एग्रीमेंट के मुताबिक, अगर किसी देश को किसी विशेष उत्पाद के लिए टैग मिला है, तो दूसरे उस तरह के फेक प्रोडक्ट्स को रोकने की कोशिश करेंगे.
कैसे मिलता है?
अब सवाल है कि क्या GI टैग सबको मिलता है? तो इसका जवाब है, नहीं . कोई व्यक्ति अगर भारत में GI टैग के लिए अप्लाई करना चाहे, तो नहीं कर सकता है. इसके लिए सिर्फ एसोसिएशन या कोई कलेक्टिव बॉडी ही अप्लाई करती है. सरकारी स्तर पर ही इसके लिए अप्लाई किया जा सकता है.
चेन्नई में CGPDTM नाम की संस्था काम करती है. कोई भी समूह, यहीं आवदेन कर सकता है. यही संस्था दावे की सच्चाई की जांच करती है. अप्लाई करने के साथ ही यह भी बताना पड़ता है कि GI टैग क्यों दिया जाए. साथ में ऐतिहासिक प्रूफ देकर उत्पाद की विरासत को भी समझाना पड़ता है. साथ में प्रोडक्ट्स के यूनिकनेस को भी विस्तार से बताना पड़ता है. हालांकि, अगर इतनी मेहनत के बाद टैग मिल भी जाए, तो वह दस साल के लिए ही मान्य होता है.
जब आपस में भिड़ गए राज्य
GI टैग का फायदे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलता है. इसको लेकर भारत के कई राज्य आपस में भिड़ चुके हैं.
मध्य प्रदेश Vs छत्तीसगढ़: काले रंग का कड़कनाथ मुर्गा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुछ इलाकों में पाया जाता है. इसकी मांग भी काफी ज्यादा है. इसको लेकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ आपस में लंबे समय तक लड़ चुके हैं. हालांकि, अंत में कोर्ट ने मध्य प्रदेश के पक्ष में फैसला सुनाया और कड़कनाथ मध्य प्रदेश का हो गया.
ओडिशा Vs बंगाल: रसगुल्ले का नाम सुनते ही, पश्चिम बंगाल का नाम सामने आ जाता है. हालांकि, रसगुल्ले के लिए GI टैग ओडिशा को मिला है. इसको लेकर बंगाल और ओडिशा, दोनों ने दावा ठोका था. हालांकि, चेन्नई की संस्था ने साल 2018 में ओडिशा को रसगुल्ले के लिए टैग दिया था. जो साल 2028 तक मान्य रहेगा.
मध्य प्रदेश Vs पंजाब: बासमती चावल को लेकर भारत पाकिस्तान के अलावा मध्य प्रदेश भी कई राज्यों को चुनौती दे चुका है. खासकर पंजाब ने बासमती चावल को लेकर मध्य प्रदेश का विरोध किया था. मामला इतना बिगड़ा कि साल 2020 में मध्य प्रदेश इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चला गया. हालांकि, एमपी सरकार प्रदेश में उगने वाले सरबती गेंहू को GI टैग दिलाने की कोशिश कर रही है.
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