UP Lok sabha Chunav 2024: आगामी लोकसभा चुनाव में बसपा प्रमुख मायावती एकला चलो की राह पर हैं. बसपा ने अब तक चार सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे हैं और चारों मुस्लिम कैंडिडेट पर दांव खेला है. मायावती का अल्पसंख्यक पॉलिटिक्स का दांव सपा की टेंशन बढ़ा सकता है.
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UP Lok sabha Chunav 2024: उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों को लेकर रस्काकशी शुरू हो गई है. सियासी दल धर्म और जातीय समीकरण साधकर चुनाव रण में हुंकार भरने को तैयार हैं. सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के फॉर्मूले पर चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद बसपा का फोकस मुस्लिम वोटरों पर नजर आ रहा है. बसपा ने अब तक चार लोकसभा सीटों पर ही उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है और ये सभी मुस्लिम समाज से आते हैं.
इन सीटों पर घोषित किए उम्मीदवार
बसपा ने अब तक चार लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान किया है, जिसमें अमरोहा से मुजाहिद हुसैन, मुरादाबाद से इरफान सैफी, पीलीभीत से पूर्व मंत्री अनीस अहमद खां फूल बाबू और कन्नौज सीट से अकील अहमद पट्टा को उम्मीदवार बनाया है. चारों सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारने को बसपा प्रमुख के खास प्लान के तौर पर देखा जा रहा है, बसपा का ये दांव समाजवादी पार्टी खेमे की टेंशन बढ़ा सकता है.
कन्नौज में होगी त्रिकोणीय लड़ाई
कन्नौज सीट पर बसपा के मुस्लिम कैंडिडेट उतारने से सपा खेमें में हलचल तेज है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के संकेत दे चुके हैं. कन्नौज लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. अगर सपा और बसपा में मुस्लिम वोट बंटते हैं तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा. यानी इस सीट पर त्रिकोणीय लड़ाई देखने को मिल सकती है.
अमरोहा में बिगड़ेंगे समीकरण
वहीं अमरोहा लोकसभा सीट पर बसपा ने मुजाहिद हुसैन को टिकट दिया है. वहीं बीजेपी ने भी उम्मीदवार का ऐलान कर दिया है, यहां से 2014 में जीतने और 2019 में हारने वाले कंवर सिंह तंवर को टिकट दिया है. गौरतलब है कि बीते आम चुनाव में बसपा से गठबंधन के चलते सपा ने अमरोहा में उम्मीदवार नहीं उतारा था, जिसके चलते बसपा प्रत्याशी दानिश अली ने जीत दर्ज की. लेकिन 2014 में जब सपा और बसपा अलग लड़े थे तो कंवर सिंह ने जीत दर्ज की थी.
मुरादाबाद में सपा की बढ़ेंगी मुश्किलें
2019 में गठबंधन के तहत इस सीट पर समाजवादी पार्टी से डॉ. एसटी हसन सांसद बने थे. उन्होंने बीजेपी के कुंवर सर्वेश सिंह को पटखनी दी थी लेकिन जब 2014 में सपा और बसपा दोनों अलग लड़े तो इस सीट पर कमल खिला था. बीजेपी प्रत्याशी कुंवर सर्वेश सिंह को 485,224 वोट मिले. वहीं सपा प्रत्याशी एसटी हसन को 3,97,720 वोट और बसपा से लड़े हाजी मोहम्मद याक़ूब को 1,60,945 वोट मिले. यानी बीजेपी प्रत्याशी को दोनों के अलग चुनाव लड़ने का फायदा हुआ.
पीलीभीत
पीलीभीत लोकसभा सीट पर बीते तीन चुनाव से बीजेपी का कब्जा बरकरार है. 2014 में यहां से बीजेपी से वरुण गांधी मैदान में थे. जबकि उनका मुकाबला सपा के हेमराज वर्मा से हुआ. सपा प्रत्याशी को करीब 2 लाख वोटों से हार का सामना करना पड़ा. 2014 में बसपा ने यहां से अनीस अहमद खान (फूल बाबू) ने टिकट दिया था, वह 1,96,294 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे. सपा प्रत्याशी बुद्धसेन वर्मा को 2,39,882 वोट मिले थे.
आजमगढ़ सीट पर हारी थी सपा
आजमगढ़ लोकसभा सीट पर 2022 में हुए उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली के उतरने से सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को शिकस्त झेलनी पड़ी थी. जिसके चलते बीजेपी के दिनेश लाल निरहुआ सांसद बने थे. बसपा उम्मीदवार गुड्डू जमाली को 2,66,210 वोट मिले, जबकि सपा के धर्मेंद्र यादव 3,04,089 वोट हासिल कर करीब 7 हजार वोटों से चुनाव हार गए. आजमगढ़ में किसी भी प्रत्याशी के लिए जीत का आधार एम-वाई यानी मुस्लिम-यादव समीकरण का काम करना बताया जाता है. इसके अलावा रामपुर लोकसभा सीट पर भी कमल खिला था.
मुस्लिम वोटर किसे करते हैं पसंद
2014 लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटरों की पहली पसंद सपा थी. 58 फीसदी मुस्लिम वोटरों ने समाजवादी पार्टी को वोट दिया था. वहीं बसपा को 18 फीसदी, कांग्रेस को 11 फीसदी और बीजेपी को 10 फीसदी वोट मिले. 2019 लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन को 73 फीसदी मुस्लिमों ने वोट दिया था. जबकि कांग्रेस 14 फीसदी मुस्लिम वोट मिले.
बसपा का एकला चलो का ऐलान
इंडिया गठबंधन की ओर से बसपा को गठबंधन में शामिल करने के लिए खूब जोर लगाया लेकिन मायावती ने साफ कर दिया है कि आगामी चुनाव में वह अपने बलबूते यूपी की सभी 80 सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी. बसपा के इस फैसले से समाजवादी पार्टी को झटका लग सकता है. 2019 लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा गठबंधन में चुनाव लड़े थे. बसपा 38 सीटों पर लड़ी जबकि सपा ने 37 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. 2014 में एक भी सीट नहीं जीतने वाली बसपा को इसका फायदा हुआ और वह 10 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब हुई.
मुस्लिम वोटरों पर हर दल की नजरें
आगामी चुनाव में मुस्लिम वोटरों को हर दल अपने खेमे में लाने की कोशिश में जुटा हुआ है. पीडीए का नारा देने वाली सपा भी मुस्लिम वोटरों पर को साधने में जुटी है. वहीं भाजपा अल्पसंख्यक महिला और पसमांदा वोट बैंक पर अपनी नजर गड़ाए हुए है. कांग्रेस की भी इसी वर्ग पर नजर हैं. वहीं अब बहुजन समाज पार्टी ने भी मुस्लिम कैडिटेट उतारकर अल्पसंख्यकों को साधने की चाल चल दी है. अब अगर बसपा मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपनी पैठ मजबूत करने में सफल रहती है तो पीडीए फॉर्मूले से एनडीए को हराने का दावा कर रही सपा की राह मुश्किल हो सकती है.
कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में मुस्लिम वोटर
यूपी में आबादी के हिसाब से मुस्लिम वोटर करीब 4 करोड़ हैं, जो कुल आबादा का करीब 20 फीसदी है. यूपी की 80 में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर 30 फीसदी से ज्यादा हैं. इसमें रामपुर, अमरोहा, बिजनौर शामिल हैं.
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