अनुप्रिया पटेल- रमेश बिंद की जंग में ब्राह्मण वोटर करेंगे खेला, मिर्जापुर में क्षत्रिय वोटर भी नाराज
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अनुप्रिया पटेल- रमेश बिंद की जंग में ब्राह्मण वोटर करेंगे खेला, मिर्जापुर में क्षत्रिय वोटर भी नाराज

Mirzapur Lok Sabha seat:  मिर्जापुर लोकसभा सीट की लड़ाई इस बार रोचक जरूर हो गई है. उसकी वजह BJP से बगावत कर सपा में आए भदोही सांसद रमेश चंद बिंद और रघुराज प्रताप सिंह (Raghuraj Pratap Singh) उर्फ राजा भैया की भगवा रंग से नाराजगी है. बसपा ने भी ब्राहम्ण कार्ड खेला है.

 Mirzapur Lok Sabha Seat

Mirzapur Lok Sabha Seat: इस बार उत्तर प्रदेश की मिर्जापुर लोकसभा सीट जातीय चक्रव्यूह में फंसती हुई नजर आ रही है. मिर्जापुर लोकसभा सीट पर इस बार एनडीए (NDA) के अलावा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने जातीय समीकरण को देखते हुए अपने कैंडीडेट को उतारा है. मिर्जापुर में पटेल, बिंद और ब्राह्मण जाति का प्रभुत्व लोकसभा सीट पर है. इस बार तीनों प्रमुख जातियों के उम्मीदवार चुनावी मैदान में है. बीजेपी से टिकट कटने के बाद भदोही के मौजूदा सांसद रमेश बिंद को इस सीट से उतार सपा ने अनुप्रिया के विजयरथ को रोकने की भरपूर कोशिश की है तो वहीं, बसपा ने अगड़ी जाति को साधने के लिए ब्राह्मण चेहरे मनीष तिवारी को उतारा है.

अनुप्रिया पटेल की हैट्रिक में रोड़ा
मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल तीसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं. वह दो बार इस सीट से सांसद बन चुकी हैं और इस बार हैट्रिक लगाने की तैयारी है. अनुप्रिया की हैट्रिक में रोड़ा डालने के लिए बसपा ने ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए मनीष तिवारी को मैदान में उतारा है.बसपा ने मनीष त्रिपाठी को प्रत्याशी इसलिए बनाया है, ताकि दलित के साथ ब्राह्मण वोटबैंक जुड़ सके.

 पटेल,ब्राह्मण और बिंद मतदाता पलट सकते हैं बाजी
मिर्जापुर जिले में सबसे ज्यादा पटेल मतदाता है. पटेल के बाद ब्राह्मण और बिंद मतदाता आते हैं. चुनावी मैदान में तीनों जातियों से आने वाले उम्मीदवार है. इसलिए मिर्जापुर की लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है. भदोही से 2009 में अलग होने के बाद यह कुर्मी बहुल हो गई. 

राजा भैया के खिलाफ दिया गया बयान पड़ सकता है भारी
पिछले दिनों अनुप्रिया का कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के खिलाफ दिए गए बयान के बाद उनके समर्थकों की नाराजगी भी अनुप्रिया के सामने चुनौती पेश कर सकती है. इस सीट पर क्षत्रियों की भी संख्या अच्छी है और ये चुनाव में फर्क डाल सकती है. राजा भैया ने इंडी गठबंधन के सपा प्रत्याशी और भदोही से भाजपा सांसद रमेश चंद बिंद को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है. रमेश बिंद अपना टिकट कटने से नाराज हो गए थे. इसके बाद उन्होंने पाला बदलते हुए सपा ज्वाइन कर ली और मिर्जापुर से टिकट पाया.

अनुप्रिया के सामने राह नहीं आसान
मिर्जापुर लोकसभा सीट पर बीजेपी की सहयोगी अपना दल सोनेलाल का वर्चस्व है. अपना दल (सोनेलाल) सुप्रीमो केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल इस बार मिर्जापुर से हैट्रिक लगाने की तैयारी में हैं. अनुप्रिया के सामने  कुंडा विधायक राजा भैया रोड़ा बनकर खड़े हैं. वह और उनके समर्थक बीजेपी से नाराजगी के चलते एनडीए प्रत्याशी के खिलाफ माहौल बना रहे हैं. माना जा रहा है कि इस बार अनुप्रिया की जीत उतनी आसान नहीं, जितनी पहले के चुनावों में थी.

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मिर्जापुर की लड़ाई दिलचस्प
2014 और 2019 के चुनाव में मोदी-योगी के नाम पर  जनता ने जातीय दीवार को दरका कर  अनुप्रिया को जिताया. इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन ने बिंद जाति का कैंडीडेट उतारकर लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. चुनावी जंग अनुप्रिया और रमेश बिंद के बीच सिमटती दिखाई दे रही हैं. बसपा के मनीष तिवारी के अगड़े वोट बैंक में सेंध लगाने की वजह से अनुप्रिया को थोड़ी चुनौती जरूर मिल रही है. दोनों पक्ष के उम्मीदवार अपनी-अपनी जातियों, अन्य पिछड़ा और दलित जातियों के सहारे एक-दूसरे को मात देने की कोशिश में जुटे हैं.

2.32 लाख के अंतर से जीती थीं अनुप्रिया
2019 के लोकसभा चुनाव में अनुप्रिया पटेल ने 53.34 फीसदी वोट पाए थे. अनुप्रिया को 5,91,564 वोट मिले थे. सपा के रामचरित्र निषाद को 3,59,556 वोट मिले थे.

मिर्जापुर का जातीय समीकरण
मिर्जापुर जिले में सबसे ज्यादा 2 लाख 50 हजार पटेल मतदाता है. दूसरे स्थान पर दलित वोटर हैं, जिनकी संख्या 1 लाख 95 हजार है.ब्राह्मण मतदाता  1लाख 60 हजार और विंद वोटर की संख्या करीब 1 लाख 40 हजार है. मुस्लिम मतदाता  की संख्या एक लाख 29 हजार है. वैश्य मतदाता की संख्या 1 लाख 30 हजार  है.

 सभी विधानसभा सीटों पर है NDA का कब्जा
लोकसभा क्षेत्र की सभी पांचों विधानसभा सीटों पर एनडीए का कब्जा है.  2022 के विधानसभा चुनाव में मिर्जापुर सदर, चुनार और मड़िहान में भगवा परचम फहराया था. मझवां से निषाद पार्टी और छानबे (सुरक्षित) सीट अपना दल (एस) के खाते में है। इसलिए चुनावी समीकरण को अपने पक्ष में करने के लिए अपना दल (एस) को कम और सपा को अधिक मेहनत करनी पड़ रही है.

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