'नवाबों के शहर' में बड़े-बड़े सितारे हुए धराशायी, 28 साल से BJP का एकछत्र राज
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'नवाबों के शहर' में बड़े-बड़े सितारे हुए धराशायी, 28 साल से BJP का एकछत्र राज

लखनऊ में न तो बॉलीवुड के सितारों का जादू चलता है और न ही किसी बड़े नाम पर भरोसा करने का चलन है. पिछले कुछ चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो लखनऊ के मतदाताओं की चुनावी नब्ज भांप सकते हैं. 

.(फाइल फोटो)

लखनऊ: अदब, तहजीब और नफासत का शहर लखनऊ उस राज्य की राजधानी है जो देश की चुनावी राजनीति में बड़ी भूमिका निभाता रहा है. यहां न तो बॉलीवुड के सितारों का जादू चलता है और न ही किसी बड़े नाम पर भरोसा करने का चलन है. पिछले कुछ चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो लखनऊ के मतदाताओं की चुनावी नब्ज भांप सकते हैं. नवाबों के इस खूबसूरत शहर पर पिछले 28 साल से भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है और उसमें भी लंबे समय तक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 1991, 1996,1998,1999 और 2004 के लोकसभा चुनावों में इस सीट से वाजपेयी विजयी रहे थे.

2009 में यहां से लाल जी टंडन जीते 
2009 में यहां से लाल जी टंडन जीते और 2014 में राजनाथ सिंह इस सीट से भारी मतों से जीतें. इस बार एक बार फिर राजनाथ सिंह यहां से भाजपा के उम्मीदवार हैं. अभी तक किसी अन्य पार्टी ने यहां से अपना उम्मीदवार नहीं घोषित किया है. यहां से पूर्व भाजपा नेता शत्रुघन सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को गठबंधन उम्मीदवार के रूप में टिकट देने की बात हवाओं में है, लेकिन इसकी पुष्टि अभी नहीं की गई है.

वैसे यह भी सच है कि लखनऊ के लोग किसी सेलेब्रिटी (नामचीन) उम्मीदवार पर दॉव लगाना पसंद नहीं करते हैं. इस कतार में फिल्मकार मुजफ्फर अली, मिस इंडिया नफीसा अली, मशहूर वकील राम जेठमलानी, राजनीतिक दिग्गज डॉ. कर्ण सिंह जैसे नाम लिए जा सकते हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने बॉलिवुड अभिनेता जावेद जाफरी :मशहूर कामेडियन जगदीप के बेटे: को मैदान में उतारा था.

मिस इंडिया रहीं नफीसा अली 2009 में सपा के टिकट पर चुनाव में उतरीं 
उनके समर्थन में कई फिल्मी हस्तियों ने प्रचार भी किया, लेकिन लखनऊ ने उन्हें तवज्जो नहीं दी. जावेद की जमानत जब्त हो गई और उन्हें पांचवें स्थान पर संतोष करना पड़ा. मिस इंडिया रहीं नफीसा अली अपने सेलेब्रिटी के रुतबे के साथ 2009 में सपा के टिकट पर चुनाव में उतरीं तो उनकी सभाओं में खूब भीड़ उमड़ी, लेकिन वोट देते समय लोगों ने अटल जी की खड़ाऊ लेकर उतरे भाजपा के लालजी टंडन पर भरोसा जताया.

एक कदम और पीछे चलें और वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो देश के जाने माने वकील राम जेठमलानी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी जैसी मजबूत चट्टान से टकराने लखनऊ की चुनावी राजनीति में उतरे थे, लेकिन उनको बाजपेयी के मुकाबले तकरीबन पौने तीन लाख वोट कम मिले.

कांग्रेसी नेता डॉ. कर्ण सिंह ने 1999 में लखनऊ की राजनीतिक जमीन पर अपनी चुनावी फसल उगाने की कोशिश की
राजनीति के क्षेत्र में कदम रखने के लिए राम जेठमलानी कभी लखनऊ नहीं लौटे. 1999 में भी कहानी कुछ जुदा नहीं थी.  कश्मीर के राजशाही घराने से ताल्लुक रखने वाले और दिग्गज कांग्रेसी नेता डॉ. कर्ण सिंह ने 1999 में लखनऊ की राजनीतिक जमीन पर अपनी चुनावी फसल उगाने की कोशिश की, लेकिन लखनऊ के वोटरों ने उनके मुकाबले अटल बिहारी वाजपेयी को ही अपनी पहली पसंद बताया. 

मुजफ्फर अली 1998 में समाजवादी पार्टी के झंडे तले लखनऊ से चुनाव लड़ने उतरे 
उमराव जान जैसी मशहूर फिल्म बनाने वाले और कोटवारा स्टेट के शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाले मुजफ्फर अली 1998 में समाजवादी पार्टी के झंडे तले लखनऊ से चुनाव लड़ने उतरे तो लखनऊ की जनता ने उन्हें दो लाख से ज्यादा वोट तो दिए, लेकिन जीत का सेहरा एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी के सिर बंधा. 

1996 के चुनाव में लखनऊ की जनता ने राज बब्बर के चुनावी इरादों पर पानी फेर दिया था  
1996 के चुनाव में लखनऊ की जनता ने राज बब्बर के चुनावी इरादों पर पानी फेर दिया था.  वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे तो उनकी एक झलक पाने के लिए भीड़ टूट पड़ती थी, लेकिन परिणाम में फिर कोई बदलाव नहीं आया.  राज बब्बर अटल बिहारी वाजपेयी से तकरीबन सवा लाख वोट से हार गए.

यहां यह तथ्य भी गौर करने वाला है कि 1957 और 1962 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी लगातार दो बार कांग्रेस के उम्मीदवारों पुलिन बिहारी बनर्जी और बी के धवन से हारे. 

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