UP: बच्चों में मोबाइल की लत को दूर करेंगे जिला अस्पतालों में खुले डि-एडिक्शन सेंटर
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UP: बच्चों में मोबाइल की लत को दूर करेंगे जिला अस्पतालों में खुले डि-एडिक्शन सेंटर

 कानपुर के मन कक्ष के काउंसलर डॉ. सुधांशु मिश्रा का कहना है कि बच्चे को मोबाईल फोन का लती बनाने के लिये उसके माता पिता खुद जिम्मेदार हैं.

मोबाइल डि-एडिक्शन सेंटर के प्रचार प्रसार के लिये स्वास्थ्य विभाग ने हेल्प लाईन नम्बर भी जारी किया है.

कानपुर: मोदी सरकार ने बच्चों में बढ़ती मोबाईल फोन की लत को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में शामिल कर लिया है. इसी के साथ उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ ने सूबे के सभी जिला अस्पतालों में मोबाइल डि-एडिक्शन सेंटर खोलने के लिये जिलाधिकारियों और मुख्य चिकित्साधिकारियों को पत्र भेजा है. कानपुर के जिला अस्पताल यूएचएम में स्थापित 'मन कक्ष' मोबाईल के लती बच्चों और युवाओं की काउंसलिंग शुरू कर दी गयी है.

कानपुर का 'मन कक्ष' जहां किसी भी प्रकार के नशे से मुक्ति दिलाने के लिये मनोवैज्ञानिक परामर्श और मनोचिकित्सा की जाती है. अब यहां एक नये नशे यानी एडिक्शन से छुटकारा दिलाने के लिये चैंबर खोला गया है. यह है मोबाईल एडिक्शन. मनोवैज्ञानिकों ने एक सर्वे में पाया था कि स्मार्ट फोन की लत के चलते बच्चों का बचपन गुम हो रहा है. वे चिड़चिड़े और गुस्सैल हो रहे हैं. पबजी और व्लू व्हेल जैसे घातक आन लाईन गेम्स तो बच्चों में लक्ष्य का पीछा न कर पाने पर आत्महत्या के लिये उकसाते रहे हैं. इसके अलावा लगातार स्क्रीन से चिपके रहने के कारण उनकी आंखें और मानसिक विकास का विपरीत असर भी पड़ रहा है. 

लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. अगर माता पिता अपने बच्चों को स्मार्ट फोन से हर समय चिपका देखें तो उन्हें मोबाईल डिएडिक्शन सेण्टर में ले जायें. यहां विशेषज्ञ उनके बच्चों की काउंसलिंग करेगें. कानपुर के मन कक्ष के काउंसलर डॉ. सुधांशु मिश्रा तो बेहद चौंकाने वाले तथ्य का खुलासा करते हैं. उनका कहना है कि मात्र एक साल के बच्चे को मोबाईल फोन का लती बनाया जा रहा है और इसके लिये उसके माता पिता खुद जिम्मेदार हैं. बच्चे अपनी मां की दिनचर्या में बाधा न पहुंचाएं और काम करने दें, इसलिये मां खुद अपने नौनिहाल को मोबाईल खेलने को दे देती हैं. बाद में बच्चे में इसके चलाने की बुद्धि विकसित हो जाती है तो वो इसके बिना जी नहीं पाता. 

उन्होंने कहा कि मोबाईल फोन के लिये बच्चा रोता चिल्लाता है. धीरे धीरे ये एक अजीब से नशे में बदल जाता है. इस तरह अगर मोबाईल फोन का एडिक्शन अगर छह साल से कम उम्र के बच्चे में है तो बच्चे के साथ साथ उसके माता पिता की काउंसलिंग की जाती है. हालांकि अभी कुछ दिन पहले ही 'मन कक्ष' में मोबाईल डि-एडिक्शन सेंटर खोला गया है इसलिये जानकारी के अभाव में इक्का-दुक्का माता पिता बच्चों को लेकर पहुंच रहे हैं. इसके प्रचार प्रसार के लिये स्वास्थ्य विभाग ने हेल्प लाईन नम्बर भी जारी किया है.

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