यूं तो नरेंद्र मोदी का राम मंदिर आंदोलन से 30 वर्षों का जड़ाव रहा, लेकिन इन 3 दशकों में वह सिर्फ दो बार अयोध्या आए.
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अयोध्या: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 अगस्त को पूरे 29 साल, 7 महीने, 13 दिन बाद अयोध्या पहुंचे. इससे पहले वह 18 जनवरी 1991 में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के साथ अयोध्या आए थे. मुरली मनोहर जोशी के साथ नरेंद्र मोदी की एक तस्वीर सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रही है. दोनों की यह तस्वीर अयोध्या में ली गई थी, जब वे राम जन्मोत्सव में शामिल होने पहुंचे थे.
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महेंद्र त्रिपाठी नाम के फोटो पत्रकार ने मुरली मनोहर जोशी और नरेंद्र मोदी की यह तस्वीर खींची थी. महेंद्र त्रिपाठी ने जी मीडिया से बातचीत में इस तस्वीर के पीछे की पूरी कहानी बताई. महेंद्र त्रिपाठी के मुताबिक तब उन्होंने मुरली मनोहर जोशी से पूछा था कि आपके साथ में खड़ा यह नौजवान कौन हैं? जोशी ने जवाब में कहा था कि यह गुजरात से आने वाले भाजपा नेता हैं. नरेंद्र मोदी उस समय भाजपा की राष्ट्रीय चुनाव समिति के सदस्य थे.
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फोटो पत्रकार महेंद्र त्रिपाठी ने नरेंद्र मोदी से पूछा था कि आप दोबारा अयोध्या कब आएंगे? तब मोदी ने जवाब दिया था, ''जिस दिन राम मंदिर का निर्माण शुरू होगा, उस दिन वापस अयोध्या आऊंगा.'' अब नरेंद्र मोदी ने खुद अपने हाथों से राम मंदिर की आधारशिला रखी है. उन्होंने 1991 में भाजपा नेता के रूप दोबारा अयोध्या आने के लिए जो प्रण एक लिया था, उसे देश के प्रधानमंत्री के रूप में पूरा किया है.
इतिहास की बातः
1857 गदर में गूंजा था राम मंदिर मुद्दाः पहली बार राम मंदिर मुद्दे का जिक्र हुआ, 1857 में भारत के पहले स्वाधीनता संघर्ष के दौरान.
1885 में पहली बार अदालत अयोध्या विवाद: अयोध्या का मंदिर-मस्जिद पहली बार 1885 में अदालत पहुंचा. महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में बाबरी मस्जिद परिसर में राम मंदिर बनवाने की इजाजत मांगी, हालांकि अदालत ने ये अपील ठुकरा दी.
1949 में बाबरी मस्जिद के अंदर स्थापित की गई राम की मूर्ति: हिंदुओं ने कथित तौर पर बाबरी मस्जिद के भीतर भगवान राम की मूर्ति स्थापित की. मुस्लिम समाज ने इसे लेकर आपत्ति जाहिर की. सरकार ने स्थल को विवादित घोषित कर ताला लगवाया.
1950 में भगवान राम की पूजा के लिए कोर्ट से इजाजत मांगी गई: गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में अपील दायर कर भगवान राम की पूजा कि इजाजत मांगी.
1959 में हिंदू पक्ष (निर्मोही अखाड़ा) ने विवादित भूमि पर मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया.
1961 में मुस्लिम पक्ष (सुन्नी वक्फ बोर्ड) ने विवादित भूमि पर मालिकाना हक का दावा ठोका और मुकदमा दायर किया.
1984 में विश्व हिंदू परिषद ने विवादित भूमि पर राम मंदिर बनाने के लिए एक समिति का गठन किया. गोरखनाथ धाम के महंथ अवैद्यनाथ ने राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनाई.
1986 फरवरी में फैजाबाद जिला मजिस्ट्रेट ने हिंदुओं के पूजा पाठ के लिए विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश दिया. मुस्लिम पक्ष ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाई.
1989 जून में वीएचपी नेता देवकीनंदन अग्रवाल ने रामलला की तरफ से मंदिर के दावे का मुकदमा किया. इसी वर्ष नवंबर में मस्जिद से थोड़ी दूर पर अस्थाई राम मंदिर स्थापित किया गया.
23 अक्टूबर 1990 आडवाणी की सोमनाथ से चली रथ यात्रा को बिहार के समस्तीपुर में रोका गया. आडवाणी की गिरफ्तारी हुई. भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस लिया. केंद्र सरकार गिर गई.
30 अक्टूबर 1990 कारसेवकों ने बाबारी मस्जिद पर चढ़कर भगवा झंडा फहराया. मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार ने पुलिस को गोली चलाने की इजाजत दी. पुलिस की गोली से कई कारसेवकों की जान गई.
1991 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव हुए. समाजवादी पार्टी की हार हुई और सूबे में भाजपा की सरकार बनी. कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने.
6 दिसंबर 1992 कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद पर चढ़ाई कर दी. मस्जिद ढहा दिया गया. देश भर में दंगे शुरू हुए. करीब 2000 लोगों की मौत हुई. के मारे गए.
16 दिसंबर 1992 बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच के लिए लिब्रहान आयोग बना. जज एमएस लिब्रहान के नेतृत्व में जांच शुरू की गई.
1994 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में आरोपियों पर केस की सुनवाई शुरू हुई.
1997 में बाबरी मस्जिद विध्वंस केस में 49 लोग दोषी करार दिए गए. दोषियों में भारतीय जनता पार्टी के कुछ प्रमुख नेताओं के नाम भी शामिल थे.
2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए शत्रुघ्न सिंह को अधिकारी नियुक्त किया. हिंदू और मुस्लिम पक्षों से बातचीत की जिम्मेदारी सौंपी गई.
27 फरवरी 2002, गोधरा कांड: को विश्व हिंदू परिषद ने 15 मार्च से राम मंदिर निर्माण कार्य शुरू करने की घोषणा कर दी. अयोध्या में सैकड़ों हिंदू कार्यकर्ता इकठ्ठा हुए. केंद्र सरकार ने मामला संभाला. अयोध्या से गुजरात लौट रहे हिंदू कार्यकर्ता जिस रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे उसे गोधरा स्टेशन पर 27 फरवरी 2002 को आग लगा दी गई. 58 लोग मारे गए. गुजरात में दंगे हुए.
13 मार्च 2002 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में अयोध्या में यथास्थिति बरकरार रखने के लिए कहा. किसी को भी सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन पर शिलापूजन की अनुमति नहीं दी गई.
2002 अप्रैल में इलाहाबाद हाई कोर्ट में तीन जजों की पीठ ने अयोध्या के विवादित भूमि पर मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू की.
2003 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने हाई कोर्ट के निर्देश पर अयोध्या में विवादित स्थल के नीचे खुदाई की. खुदाई में मंदिर से मिलते-जुलते अवशेष के प्रमाण मिले. 2003 मई में सीबीआई ने बाबरी विध्वंस केस में लालकृष्ण आडवाणी समेत 8 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए. 2003 अगस्त में उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए विशेष विधेयक लाने का विहिप का प्रस्ताव ठुकरा दिया.
2004 अप्रैल में आडवाणी ने अयोध्या में अस्थाई राम मंदिर में पूजा की और कहा कि विवादित स्थल पर भव्य राम मंदिर का निर्माण जरूर होगा.
20 अप्रैल 2006 तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने लिब्रहान आयोग से कहा कि बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना एक सुनियोजित षड्यंत्र था. इसमें भाजपा, आरएसएस, बजरंग दल और शिवसेना की मिली भगत थी.
2009 में 30 जून को लिब्रहान आयोग ने 17 वर्षों के बाद बाबरी विध्वंस मामले में अपनी जांच रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंप दी. 24 नवंबर को लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश हुआ.
26 जुलाई 2010 इलाहाबाद हाई कोर्ट में अयोध्या विवाद की सुनवाई पूरी हुई. 8 सितंबर 2010 को हाई कोर्ट ने 30 सितंबर को फैसला सुनाने की घोषणा की.
30 सितंबर 2010 इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने अयोध्या विवाद में अपना फैसला सुनाते हुए विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांट दिया. एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को मिला.
9 मई 2011 सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद में दिए गए इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई.
2017 अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित भाजपा और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया.
27 सितंबर 2018 सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या केस की सुनवाई बड़ी बेंच के पास भेजने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर ही होगा.
8 मार्च 2019 सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद का आपसी सहमति से हल निकालने के लिए श्रीश्री रविशंकर के नेतृत्व में मध्यस्थता पैनल का गठन किया. 8 सप्ताह के अंदर रिपोर्ट सौंपने को कहा.
1 अगस्त 2019 मध्यस्थता पैनल ने रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी दी. 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल अयोध्या विवाद का समाधान निकालने में विफल रहा. 6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या केस की रोजाना सुनवाई शुरू हुई.
16 अक्टूबर 2019 सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले में सुनवाई पूरी की और अपना फैसला सुरक्षित रखा.
9 नवंबर 2019; फैसले का दिन: तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय पीठ ने विवादित भूमि पर राम मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला सुनाया. साथ ही मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या में ही किसी महत्वपूर्ण स्थान पर 5 एकड़ जमीन मुस्लिम पक्ष को आवंटित करने का आदेश दिया.
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