राम मंदिर की बदौलत 36 साल में 218 गुना बढ़ी BJP, 1984 में 2 सांसदों से 2019 में 303 की बनी पार्टी
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राम मंदिर की बदौलत 36 साल में 218 गुना बढ़ी BJP, 1984 में 2 सांसदों से 2019 में 303 की बनी पार्टी

1984 में जिन लोगों ने 2 सीटें दिलाई थीं, उनमें एके पटेल गुजरात की मेहसाणा से जीते थे और दूसरे थे सीजे रेड्डी जो आंध्र प्रदेश के हनमकोंडा से जीते थे. 

राम मंदिर की बदौलत 36 साल में 218 गुना बढ़ी BJP, 1984 में 2 सांसदों से 2019 में 303 की बनी पार्टी

नई दिल्ली : 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास करेंगे. इसी के साथ भव्य राम मंदिर निर्माण का काम शुरू हो जाएगा. मंदिर मुद्दा यूं तो भारत की आजादी से पहले से चला आ रहा है, लेकिन इसके निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने में भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा मील का पत्थर मानी जाती है.

  1. राम मंदिर की बदौलत, 36 साल में BJP 218 गुना तक बढ़ी
  2. 1984 में 2 सांसदों से 2019 में 303 की बनी पार्टी

इस रथयात्रा ने न सिर्फ भाजपा की किस्मत  बदली थी, बल्कि भारत में राजनीति के एक नए युग की शुरुआत भी की थी. इसी रथयात्रा की बदौलत भाजपा 1984 में 2 सांसदों की पार्टी से 2019 में 303 सांसदों तक पहुंच गई. पीएम नरेंद्र मोदी ने तब इस रथयात्रा में आडवाणी के सारथी की भूमिका निभाई थी. आइए, जानते हैं राम मंदिर रथयात्रा से जुड़ा पूरा इतिहास...

1984: 2 सीटों पर सिमटे तो रथयात्रा ने राह दिखाईः बात 1984 के लोकसभा चुनावों की है. इस चुनाव में भाजपा महज दो सीटों पर सिमट गई थी. ये दो सांसद थे एके पटेल और सीजे रेड्डी. पटेल गुजरात की मेहसाणा सीट से जीते थे और रेड्डी आंध्र प्रदेश की हनमकोंडा सीट से जीते थे. इसके बाद भाजपा के साथ ही आरएसएस ने तय किया था कि पार्टी अब अयोध्या राम मंदिर के मुद्दे पर आगे बढे़गी. इसी दौरान 1985 में शुरू हुए आरक्षण विरोधी आंदोलन ने गुजरात में सांप्रदायिक रंग ले लिया. 1985 और 1986 में अहमदाबाद में निकलने वाली जगन्नाथ रथयात्रा के बाद शहर में दो बड़े दंगे हुए. इन दंगों के बाद गुजरात में भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए पार्टी नेताओं और संघ ने हिंदुत्व के एजेंडे पर काम करना शुरू किया. वर्ष 1986 में जब लालकृष्ण आडवाणी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो उन्होंने हिंदुत्व के एजेंडे को जोरदार तरीके से आगे बढ़ाया. 

1989: में मंडल के खिलाफ कमंडलः तत्कालीन पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जब सरकारी नौकरियों में पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा करते हुए मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर दिया तो भाजपा ने जाति की काट के रूप में राम मंदिर मुद्दे को पूरी तरह अपनाने का फैसला किया. इस कदम के जरिए भाजपा हिन्दू वोट बैंक को एकजुट करना चाहती थी. भाजपा की यह रणनीति रंग लाई, जो पार्टी 1984 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई थी, उसके सांसदों की संख्या 1989 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 85 हो गई.

1990: रामशिलाओं की राजनीति- आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) और वीएचपी (विश्व हिन्दू परिषद) ने पूरे देश से रामशिलाओं को अयोध्या लाने की मुहिम शुरू की. भाजपा ने अब हिंदुत्व की राजनीति को पूरी तरह अपना लिया था. यहीं से राम मंदिर आंदोलन को धार मिली. भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन को जन आंदोलन बनाने के लिए गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा निकालने की ठानी.

1990: पदयात्रा 10 हजार किमी की रथयात्रा में बदली- लालकृष्ण आडवाणी ने पहले पद यात्रा का प्रस्ताव रखा था. तब भाजपा महासचिव प्रमोद महाजन ने पद यात्रा की जगह इसे रथ यात्रा में बदलने का सुझाव दिया था, जिस पर पार्टी ने फाइनल मुहर लगाई. तय हुआ कि लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक 10 हजार किलोमीटर की रथ यात्रा निकलेगी.

1990: सोमनाथ से ही क्यों हुई थी रथयात्रा की शुरुआत?
दरअसल, आडवाणी की राम रथ यात्रा की शुरुआत गुजरात के सोमनाथ से करने का एक सांकेतिक महत्व था. सोमनाथ ​भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में सबसे पहले आता है. विदेशी आक्रांताओं ने करीब 4 बार गुजरात के सोमनाथ मंदिर को अपवित्र किया, लूटा और क्षति पहुंचाई. आजादी के बाद सोमनाथ मंदिर की भव्यता को फिर से स्थापित किया गया. मुगल शासक बाबर ने भी अयोध्या में राम मंदिर को गिराकर बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया था. आडवाणी की रथ यात्रा सोमनाथ से शुरू कर भाजपा देश की जनता को यह संदेश देना चाहती थी कि वह अयोध्या में भी राम मंदिर को पुनर्स्थापित करेगी.

12 सितंबर 1990: इतिहास की राह पर चल पड़ा भगवा रथ; 12 सितंबर 1990- दिल्ली में भाजपा पार्टी ऑफिस में लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा निकालने की घोषणा की. यह रथ यात्रा 25 सितंबर 1990 से शुरू होकर 30 अक्टूबर को संपन्न होनी थी.

25 सितंबर, 1990: 25 सितंबर, 1990 को आडवाणी सोमनाथ पहुंचते, उससे पहले एक ट्रक को भगवा रंग के रथ में तब्दील किया जा चुका था. लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, प्रमोद महाजन और नरेंद्र मोदी ने सोमनाथ से यात्रा की शुरुआत कर दी. 25 से 28 सितंबर, 1990 तक रथ यात्रा के प्रबंधन का काम मोदी के पास था. राम रथयात्रा गुजरात में पूरी शांति के साथ गुजरी. गुजरात में राम रथयात्रा के हर पड़ाव, हर सभा को नरेंद्र मोदी मैनेज कर रहे थे. उन्होंने यह काम सफलता से कर दिखाया. यहीं से वह भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की नजरों में आए.

23 अक्टूबर 1990: समस्तीपुर में लालू ने थाम दिया था आडवाणी का रथ: गुजरात के सोमनाथ से शुरू हुई रथयात्रा 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचनी थी. लेकिन बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने  23 अक्टूबर को समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करा लिया. आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद केंद्र की सियासत में भूचाल आ गया. भाजपा ने केंद्र में सत्तासीन वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसमें लालू प्रसाद यादव भी साझीदार थे, और सरकार गिर गई.

मोदी का 30 साल का जुड़ाव: कभी सारथी, कभी सूत्रधार- मोदी 1958 में ही संघ से जुड़ चुके थे, तब वह सिर्फ 8 वर्ष के थे. नरेंद्र मोदी की भाजपा में एंट्री हुई 1987 में. उन्हें गुजरात भाजपा का संगठन मंत्री बनाया गया. इस पद पर रहने वाला व्यक्ति संघ और भाजपा के बीच पुल का काम करता है. नरेंद्र मोदी के संगठन मंत्री बनने के तुरंत बाद भाजपा ने पूरे गुजरात में ‘न्याय यात्रा’ नाम से राजनीतिक प्रचार अभियान की शुरुआत की. इसकी बागडोर केशुभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला के हाथों में थी, लेकिन मंच के पीछे से सारा काम नरेंद्र मोदी ही संभाल रहे थे. न्याय यात्रा की सफलता के बाद नरेंद्र मोदी को भाजपा की राष्ट्रीय चुनाव समिति का सदस्य बना दिया गया. 

3 साल में 4 रथ यात्राएं, मोदी का मैनेजमेंटः 1989 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गुजरात में 'लोक शक्ति रथयात्रा' निकाली गई. नरेंद्र मोदी एक बार फिर इस पूरी रथयात्रा का मैनेजमेंट संभाल रहे थे. 'लोक शक्ति रथयात्रा' का भाजपा को जबरदस्त फायदा मिला. गुजरात की कुल 26 लोकसभा सीटों में 12 पर भाजपा को जीत मिली, जबकि 1984 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा महज एक सीट का था. नरेंद्र मोदी को तब तक भाजपा की रथ यात्राओं को मैनेज करने की महारत हासिल हो चुकी थी. शायद यही वजह रही कि लालकृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा के सूत्रधार की जिम्मेदारी भी नरेंद्र मोदी को मिली. नरेंद्र मोदी ने ही आर्टिकल 370 खत्म करने के लिए मुरली मनोहर जोशी की 1991 में कन्याकुमारी से श्रीनगर तक की 'एकता यात्रा' में समन्वयक की भूमिका निभाई थी. इस तरह नरेंद्र मोदी का अयोध्या राम मंदिर आंदोलन से करीब 30 वर्षों का जुड़ाव है. वह 5 अगस्त को 29 वर्षों के बाद अयोध्या आएंगे.
 
18 जनवरी, 1991। मोदी ने कहा था ‘अयोध्या जरूर आऊंगा लेकिन मंदिर बनेगा तब..!’ यह तस्वीर 18 जनवरी, 1991 की है, जो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. अयोध्या में ली गई इस तस्वीर में मोदी पूर्व भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रहे मुरली मनोहर जोशी के साथ नजर आ रहे हैं. तब नरेंद्र मोदी कन्याकुमारी से शुरू हुई ‘एकता यात्रा’ को लेकर मुरली मनोहर जोशी के साथ रामलला के जन्मोत्सव में शामिल होने अयोध्या पहुंचे थे. जोशी इस यात्रा का नेतृत्व कर रहे थे. महेंद्र त्रिपाठी नाम के फोटोग्राफर ने जोशी और मोदी की यह तस्वीर खींची थी. फोटोग्राफर महेंद्र त्रिपाठी के मुताबिक उन्होंने तब मुरली मनोहर जोशी से पूछा था कि आपके साथ में खड़ा यह नौजवान कौन हैं? तब जोशी ने कहा था कि यह गुजरात के भाजपा के नेता हैं.

29 साल बाद खुद से किया वादा निभाएंगे मोदी: महेंद्र त्रिपाठी के मुताबिक उन्होंने नरेंद्र मोदी से पूछा था कि आप दोबारा अयोध्या कब आएंगे? मोदी ने जवाब दिया था, ''जिस दिन राम मंदिर का निर्माण शुरू होगा, उस दिन वापस अयोध्या आऊंगा.'' अब 5 अगस्त को नरेंद्र मोदी खुद अपने हाथों से राम मंदिर की नींव रखेंगे. उन्होंने 1991 में दोबारा अयोध्या आने के लिए जो प्रण ​एक भाजपा नेता के रूप में लिया था, उसे देश के प्रधानमंत्री के रूप में पूरा करेंगे.

2014 में राम मंदिर पर भारी ‘विकास’: वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने राम मंदिर के ऊपर विकास को प्राथमिकता दी. भाजपा ने अपने घोषणापत्र में राम मंदिर बनाने की बात शामिल की, लेकिन संविधान के दायरे में रहकर. प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के साथ चुनाव प्रचार अभियान की कमान भी नरेंद्र मोदी के हाथों में सौंप दी गई. नरेंद्र मोदी भाजपा की उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरे. उनके नेतृत्व में 10 वर्षों के बाद केंद्र की सत्ता में फिर भाजपा की 282 सीटों के साथ वापसी हुई. 30 वर्षों के बाद कोई पार्टी केंद्र की सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ काबिज हुई. 

2017 यूपी विधानसभा चुनाव और अयोध्या: इस बीच 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव आए. भाजपा ने यह चुनाव भी मोदी के चेहरे पर ही लड़ा, लेकिन राम मंदिर मुद्दे को चुनाव प्रचार में प्रमुखता से शामिल रखा. मोदी लहर का जादू एक बार फिर चला और भाजपा ने यूपी विधानसभा की 403 सीटों में 312 पर जीत दर्ज कर सूबे की सत्ता में धमाकेदार वापसी की. करीब दो दशक बाद भाजपा को यूपी की सत्ता मिली थी. योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया. सीएम बनने के बाद योगी ने अयोध्या को अपने एजेंडे में प्रमुखता पर रखा. फैजाबाद जिले का नाम बदलकर अयोध्या किया गया. अयोध्या में हर वर्ष दीपोत्सव का आयोजन शुरू हुआ. विकास कार्यों के ​जरिए पूरे अयोध्या के कायाकल्प की तैयारी शुरू हुई.

9 नवंबर, 2019; ऐतिहासिक दिन: मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अयोध्या विवाद की डे-टू-डे हियरिंग की सिफारिश की. सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की बात मानी. हालांकि, प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी के पहले कार्यकाल में अयोध्या विवाद पर निर्णय नहीं हो सका. भाजपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर लड़ा. एक बार फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की सत्ता में भाजपा की प्रचंड बहुमत के साथ वापसी हुई. 

भाजपा ने 303 सीटों पर कब्जा किया. साल 2019 में ही अयोध्या विवाद का भी निपटारा हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर, 2019 को विवादित भूमि पर राम मंदिर निर्माण के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया. केंद्र सरकार ने फरवरी 2020 में राम मंदिर ट्रस्ट का गठन किया. अब 5 अगस्त को राम मंदिर की आधार​शिला रखी जाएगी.

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