Pithoragarh: हल्द्वानी में माघ खिचड़ी का आयोजन, जानें क्यों खास है मुनस्यारी धनई मिलन कार्यक्रम
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Pithoragarh: हल्द्वानी में माघ खिचड़ी का आयोजन, जानें क्यों खास है मुनस्यारी धनई मिलन कार्यक्रम

उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में माघ के महीने में खिचड़ी और धनई का कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. यह कार्यक्रम बहुत ही खास है. जानें क्यों खास है यह सालों पुरानी परंपरा....  

Magh Khichdi And Dhanai Milan Program

Magh Khichdi And Dhanai Milan Program: उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में माघ के महीने में खिचड़ी और धनई का कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. यह कार्यक्रम बहुत ही खास है. जानें क्यों खास है यह सालों पुरानी परंपरा....

  1. Haldwani: माघ के महीने में खिचड़ी भोज की पुरानी परंपरा है. पिथौरागढ़ जिले के सीमांत इलाके मुनस्यारी का जोहार शोका समुदाय धनई मिलन कार्यक्रम का आयोजन करता आ रहा है. उनकी यह परंपरा पिछले कई सालों से चली आ रही है. इस कार्यक्रम में सीमांत इलाके के लोग अपने घर से सभी विवाहित बेटियों को अपने घर यानी उनके मायके आमंत्रित करते हैं. औऱ उन्हें खिचड़ी देते हैं. अब यह आयोजन व्यक्तिगत ना होकर सामूहिक होने लगा है. 
  2. हलद्वानी में प्रवास कर रहे जोहार शौका समुदाय के लोग अपनी संस्कृति को बचाये रखने के लिहाज़ से धनई यानी खिचड़ी भोज का आयोजन करते हैं. असल मे धनई का मतलब होता है विवाहित बेटी जो मायके आती है. इसी परंपरा को कायम रखते हुए आज हलद्वानी में जोहर शोका समुदाय के लोगो ने खिचड़ी भोज का आयोजन किया जिसमें सैकड़ो लोगो ने हिस्सा लिया. बेटियों को खाना खिलाया, उपहार दिए, औऱ जमकर अपनी स्थानीय सांस्कृतिक धुनों पर नाचे भी, उनके मुताबिक यह एक अच्छा मौका है जब अपनो से मिलने का बहाना होता है और एक संदेश आने वाली पीढ़ी को जाता है की अपनी संस्कृति को जाने और आगे बढ़ाने का काम करें. पहले से यह आयोजन हर घर मे होता था लेकिन जैसे- जैसे जागरूकता आई तो पूरा समुदाय एकजुट होकर अपनी इस परंपरा को आगे बढ़ाने लगा. 
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  5. धनई कार्यक्रम का आयोजन हलद्वानी में रह रहे प्रवासी पिछले करीब 15 सालों से कर रहे हैं. जिसमे हर बार करीब 400 से 500 लोग आते रहे हैं. हकीकत तो यह है की जोहार संस्कृति को बचाने और आपस मे मेल जोल बनाये रखने का बेमिसाल तरीका भी है. एक साथ खिचड़ी खाना, नाच गाने का जो मजा अपने बहू बेटियों के साथ है वो जिंदगी में औऱ कहां, लिहाज़ा सदियों से चली आ रही परम्परा को थोड़ा नए रूप में संजोते हुए आगे ले जाने की कोशिश है की आने वाली पीढ़ी अपनी संस्कृति को समझे. 
  6. त्यौहारों का आना-जाना तो लगा रहता है लेकिन उन त्योहारों को हम किस तरह यादगार बनाकर अपनी संस्कृति को किस तरह संजो कर रखा जा सकता है. धनई उसका एक उदाहरण है. जो ना सिर्फ खिचड़ी भोज है बल्कि आपसी मेलजोल औऱ खास कर उन बेटियों के लिए खास है जो अपने मायके केवल साल में 1 बार इस मौके पर आती हैं. 

 

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