शहर के 'जहर' से बचने के लिए पहाड़ों की ओर जा रहे हैं, तो जरूर पढ़ें ये खबर!
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शहर के 'जहर' से बचने के लिए पहाड़ों की ओर जा रहे हैं, तो जरूर पढ़ें ये खबर!

विशेषज्ञों की माने तो रोज हो रहे कंस्ट्रक्शन, रोजाना बन रही नई सड़कों से उठती धूल की परतें से प्रदूषण बढ़ रहा है.

 हल्द्वानी में गौला नदी में हो रहा खनन और गांव के नजदीक बड़े पैमाने पर जलते चूल्हे से निकलने वाले धुएं से पर्यावरण बड़े पैमाने पर प्रभावित हो रहा है.

हल्द्वानी: अगर आप प्रदूषित हवा से राहत पाने के लिए पहाड़ों का रूख करने का मन बना रहे हैं, तो जरा सावधान हो जाइए. हाल ही में हुई एक रिसर्च में सामने आया है कि हल्द्वानी जैसे शहर में पीएम 2.5 का स्तर रोजाना 270 से 300 के बीच पहुंच जा रहा है. उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रदूषण की स्थिति ठीक नहीं है. एक सर्वे के दौरान जब गांव में चूल्हा जलाने वाले घरों में पीएम 2.5 का स्तर जांचा गया तो 900 के पार मिला. जबकि हल्द्वानी जैसे शहर में पीएम 2.5 का स्तर औसतन रोजाना 270 से 300 के बीच जा रहा है.

गौरतलब है कि जंगलों का कटान, घरों में जलने वाले चूल्हे, खुले में लगाई जाने वाली आग से PM 2.5 का स्तर लगातार बढ़ रहा है. जिसका परिणाम है कि उत्तराखंड की हरी भरी वादियां भी प्रदूषण से अछूती नहीं रह गई हैं. भारत में पीएम 2.5 का मानक 50 है. लेकिन हकीकत ये है कि हल्द्वानी से ऊपर पहाड़ी इलाकों में पीएम 2.5 का स्तर 50 भी से ज्यादा है. जिसके लिए ओपन फायर को जिम्मेदार माना जा रहा है. नैनीताल जिले में प्रदूषण का ये सर्वे हरे भरे जंगलों के बीच बसे कई गांवों में किया गया, इसके अलावा हल्द्वानी टचिंग ग्राउंड, गौलापार और अन्य साफ-सुथरी जगहों पर भी प्रदूषण की जांच की गई तो आंकड़े चौकाने वाले सामने आए.

विशेषज्ञों की माने तो रोज हो रहे कंस्ट्रक्शन, रोजाना बन रही नई सड़कों से उठती धूल की परतें से प्रदूषण बढ़ रहा है. यही नहीं हल्द्वानी में गौला नदी में हो रहा खनन और गांव के नजदीक बड़े पैमाने पर जलते चूल्हे से निकलने वाले धुएं से पर्यावरण बड़े पैमाने पर प्रभावित हो रहा है. हालांकि, PCB (पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड) की तरफ से रोजाना तो प्रदूषण का डाटा कलेक्ट नहीं होता. लेकिन जो रिपोर्ट सामने आई है, वो बेहद चिंताजनक है.

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