दारुल उलूम देवबंद से ही सुन्नी देवबंदी इस्लामी आंदोलन शुरू हुआ था. यह भारत के सबसे महत्वपूर्ण इस्लामी मदरसों में से एक है. इसकी स्थापना 1866 में मुहम्मद कासिम नानौतवी, फजलुर रहमान उस्मानी, सैय्यद मुहम्मद आबिद और अन्य लोगों द्वारा की गई थी.
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Saharanpur News: अपनी दीनी शिक्षा के लिए विख्यात दारुल उलूम देवबंद में महिलाएं अब एंट्री पा सकेंगी. इसी साल मई में महिलाओं के दारुल उलूम जाने पर रोक लगा दी गई थी. यह रोक इसलिए लगाई गई थी कि महिलाएं अंदर जाकर वीडियो और रील बनती थी. जिससे दारुल उलूम की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंच रही थी. इसके बाद दारुल उलूम की प्रबंध समिति ने महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी थी. दारुल उलूम के प्रवक्ता अशरफ उस्मानी ने बताया कि संस्था में महिलाओं का प्रवेश अब नवंबर माह से शुरू हो जाएगा लेकिन इसके लिए जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं.
मजलिस ए सुरा मे यह मामला यह विचार के लिए भेज दिया गया है. जहां सूरा ने महिलाओं को दारुल उलूम में प्रवेश की अनुमति दी है लेकिन दारूल उलूम में महिलाओं को प्रवेश करने के लिए उनके नियम कायदों का पालन करना होगा. महिलाओं को पर्दे का पालन करना होगा और प्रवेश कार्ड के माध्यम से ही भ्रमण कर सकेंगी और इस दौरान वीडियोग्राफी और रील पर पूरी तरह प्रतिबंध रहेगा.
मामले पर इत्तेहाद उलेमा ए हिंद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुफ़्ती असद कासमी ने कहा कि जो दारुल उलूम देवबंद का फैसला आया है. औरतों की एंट्री को लेकर प्रवेश पास जारी किया जाएगा यह बहुत अच्छी बात है. यह होना भी चाहिए कोई भी संस्था हो, कोई भी इदारा हो या कोई भी यूनिवर्सिटी हो उसके अपने कानून होते हैं. देवबंद दारुल उलूम के भी कुछ कानून हैं इसको लेकर देवबंद दारुल उलूम ने एक एंट्री पास जारी किया है.
उन्होंने कहा कि महिलाओं को लेकर आमतौर पर देखा गया है कुछ औरतें ऐसी पाई गई जो उसके अंदर जाकर खुराफात करती थी और रील बनाती थी, जाहिर से बात है अब एंट्री होगी तो पता लगेगा कौन है कहां से है. यह कानून जिसमें प्रवेश पास जारी किया जाएगा यदि कोई घूमने के लिए और देखने के लिए दारुल उलूम आता है जिसमें इत्मीनान के साथ यह काम किया जाएगा. दारुल उलूम का यह फैसला काबिले तारीफ है और स्वागत योग्य है.