ग्रामीणों का कहना है कि गांव में स्कूल है, लेकिन आठवीं क्लास तक है. उसके बाद गांव के हर बच्चे को भीमताल जाना पड़ता है.
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हल्द्वानी: उत्तराखंड राज्य को गठन हुए 19 साल पूरे हो गए हैं और राज्य स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया जा रहा है. तैयारियां जोरों पर हैं, लेकिन 19 साल बाद भी प्रदेशवासियों के बीच यह सवाल बरकरार है कि जिन सपनों को लेकर उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था, क्या प्रदेश उन नीतियों पर आगे बढ़ रहा है. शायद हकीकत इससे बहुत परे है, क्योंकि राज्य के विकास के तमाम दावों के बावजूद भी आज कुछ ऐसी तस्वीरों से आपको रूबरू कराया जाएगा जहां आज भी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं.
दरअसल, भीमताल विकासखंड के सूर्या गांव के लोग आज भी सड़क, शिक्षा, पानी, बिजली जैसी मूलभूत समस्याओं के लिये लड़ रहे हैं. या यूं कहें की मूलभूत समस्याओं से निपटने के लिए सरकार के सामने गुहार लगा रहे हैं, लेकिन हालत जस की तस हैं. सूर्या गांव कालाढूंगी विधानसभा का क्षेत्र है और भीमताल-हल्द्वानी मुख्य सड़क से मार्ग 5 से 6 किलोमीटर की दूरी पर है. उम्मीद तो यह की जानी चाहिए थी कि इस गांव में सभी मूलभूत सुविधाएं हों. लेकिन ऐसा नहीं है, ग्रामीण कहते हैं कि 19 साल का उत्तराखंड हुआ, लेकिन मंत्री विधायक और अधिकारियों को बिना देखे 19 साल का सफर यूं ही गुजर गया.
ग्रामीणों का कहना है कि अब समस्या किसको कहें, अपनी आपबीती किसको सुनाएं. उन्होंने कहा कि कभी-कभार चुनाव के दौरान वोट मांगने जनप्रतिनिधि आ गए, तो अच्छी बात है. नहीं आए तो कोई बात ही नहीं. मुख्य सड़क से आप जैसे तैसे सूर्या गांव तो पहुंच जाएंगे लेकिन उसके बाद जो नजारा देखेंगे वह आप को अभिभूत कर देगा. सातताल की दूरी सूर्या गांव से मात्र 10 मिनट की है, जो पर्यटन के लिहाज से बहुत अच्छा है. सरकार अगर पर्यटन की नीतियों में लचीलापन करती, तो शायद यहां एक अच्छा टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन सकता था.
गांव वाले बताते हैं कि पिछले डेढ़ महीने से लेपर्ड का मूवमेंट पूरे गांव और उसके आसपास के इलाके में बना हुआ है. स्कूल जाने वाले बच्चे डर डर कर स्कूल जाते हैं. शाम होते ही लोग घरों में दुबक जाते हैं. कई बार वन विभाग से गुहार लगाई कि लेपर्ड के खौफ से निजात दिला दो, लेकिन वन विभाग में केवल पटाखे देने के अलावा एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया. स्वास्थ्य के नाम पर गांव के आसपास कोई अस्पताल नहीं है. बीमार पड़ने पर लोगों को भीमताल और हल्द्वानी ले जाना पड़ता है.
ग्रामीणों का कहना है कि गांव में स्कूल है, लेकिन आठवीं क्लास तक है. उसके बाद गांव के हर बच्चे को भीमताल जाना पड़ता है. वहीं, अंतिम बार विधायक या मंत्री से कब मिले थे के जवाब में ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें याद ही नहीं. शायद वोट मांगने के बाद उनके जनप्रतिनिधि ने कभी उनकी सुध लेने की कोशिश ही नहीं की.
सूर्या गांव के ग्रामीणों की समस्या पर डीएम नैनीताल सविन बंसल से संतोषजनक जवाब नहीं मिला. हालांकि, मंत्री अरविंद पांडे का कहना है कि एक ही दिन में पहाड़ की समस्याओं का समाधान होना नामुमकिन है. लिहाजा सरकार अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही है कि गांव में मूलभूत सुविधाएं जल्द से जल्द दी जाएं.
भले ही उत्तराखंड को अलग राज्य बने 19 साल पूरे हो गए हों, लेकिन हकीकत यही है कि विकास के नाम पर सरकारें आज तक केवल जनता को छलती आई हैं. राज्य के बड़े-बड़े शहरों में भले ही राज्य स्थापना की धूम हो, लेकिन कुछ गांव ऐसे भी हैं जहां आज भी ग्रामीण अंधेरे के साये में है. लेपर्ड के खौफ में है और बिना शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा के भी जी रहे हैं. क्या शहीदों के सपनों का यही उत्तराखंड है. शायद इसका जवाब आज राज्य के उन जनप्रतिनिधियों के पास भी नहीं है.