वह सलीम से छिप-छिपकर बाहर तो मिलती ही, रात में उसे घर भी बुलाती. घर वालों को पता न चले इसलिए उन्हें रात के खाने में नींद की गोलियां मिलाकर दे देती. जब नींद की गोलियों के नशे से परिवार वाले बेहोश हो जाते तो शबनम रात को आशिक सलीम को घर बुला लेती.
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नई दिल्ली/अमरोहा: अमरोहा में एक ही परिवार के 7 लोगों की बेरहमी से हत्या कितनी दुर्दांत थी इसे जज के फैसले से समझा जा सकता है. जज एसएए हुसैनी ने महज 29 सेकेंड में ही आरोपी शबनम और उसके आशिक सलीम को फांसी की सजा सुना दी थी. जज ने अपने फैसले में लिखा था कि यह जघंन्यतम अपराध है, इसलिए दोनों को तब तक फांसी के फंदे पर लटकाया जाए जब तक उनका दम न निकल जाए.
अलग बिरादरी का था सलीम
शबनम ने एमए किया था. इसी आधार पर वह शिक्षामित्र बनी थी. इसी दौरान गांव के ही 8वीं पास सलीम से इश्क कर बैठी. मोहब्बत में वो ऐसी डूबी कि उसे सलीम के अलावा कुछ नजर नहीं आता था. जब यह बात उसके पिता शौकत अली पता चली तो उन्होंने उसे समझाया कि यह गलत है. शबनम ने भी कहा कि उसकी सलीम से शादी करवा दी जाए, लेकिन सलीम पठान अलग बिरादरी का था. इसलिए घर वालों ने निकाह न कराने की बात कही थी. यहीं से शबनम का दिमाग ठनका और उसने अलग रास्ता अख्तियार करने की सोची.
घरवालों को दे दी नींद की गोलियां
वह सलीम से छिप-छिपकर बाहर तो मिलती ही, रात में उसे घर भी बुलाती. घर वालों को पता न चले इसलिए उन्हें रात के खाने में नींद की गोलियां मिलाकर दे देती. जब नींद की गोलियों के नशे से परिवार वाले बेहोश हो जाते तो शबनम रात को आशिक सलीम को घर बुला लेती. लेकिन कभी-कभी उसका यह पैंतरा फेल हो जाता.
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फिर आई 14 अप्रैल की काली रात
आशिक से दूरी उसे बर्दाश्त न होती. उसने एकदिन ऐसा कदम उठाने का मन बना लिया जिसे सोचकर लोगों की रूह कांप जाए. उसने सलीम के साथ मिलकर पूरे परिवार को ठिकाने लगाने का प्लान बना लिया. 14 अप्रैल, 2008 की रात को भी उसने परिजनों के खाने में नींद की गोलियां मिला दीं. इससे वे बेहोश हो गए. इसी बीच सलीम भी उसके पास आ गया.
उस दिन शबनम की फुफेरी बहन राबिया घर आई हुई थी. रात में मौका पर शबनम और सलीम ने मिलकर पहले पिता शौकत, मां हाशमी, भाई अनीस, राशिद, भाभी अंजुम, फुफेरी बहन राबिया का गला काट दिया. 10 माह के भतीजे अर्श का भी गला घोंटकर मौत की नींद सुला दी.
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सातों को मारकर रात भर बैठी लाशों के बीच
वारदात को अंजाम देने के बाद सलीम रात में ही फरार हो गया, लेकिन शबनम सातों लाशों के बीच बैठी रही. जैसे ही सुबह हुई तो वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी. उसने झूठी कहानी लोगों को सुनाई. उसने बताया कि कुछ बदमाशों ने उसके पूरे परिवार की हत्या कर दी. शबनम के शरीर पर एक घाव तक नहीं थे, यहीं से शक की उसकी ओर थी. वारदात के चौथे दिन पुलिस ने शबनम और सलीम को हिरासत में ले लिया. दोनों ने सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने वारदात को कबूल कर लिया. सलीम ने हत्या में इस्तेमाल कुल्हाड़ी पुलिस को दे दी.
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27 महीने सुनवाई, 649 सवाल, 160 पन्नों में फैसला, 29 सेकेंड में सजा
शबनम-सलीम के केस में करीब 100 तारीखों तक जिरह चली. इसमें 27 महीने लगे. फैसले के दिन जज ने 29 गवाहों के बयान सुने. 14 जुलाई 2010 को जज ने दोनों को दोषी करार दिया था. अगले दिन 15 जुलाई 2010 को जज एसएए हुसैनी ने सिर्फ 29 सेकेंड में दोनों को फांसी की सजा सुना दी. इस मामले में 29 लोगों से 649 सवाल पूछे गए. 160 पन्नों में फैसला लिखा गया. तीन जजों ने पूरे मामलों की सुनवाई की. दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था. राष्ट्रपति ने भी दोनों की दया याचिका खारिज कर दी. अब 13 साल बाद उन्हें फांसी होगी.
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