आजाद भारत की पहली फांसी दी गई थी 15 नवंबर 1949 को. तारीख सुन कर ही आपको याद आ जाएगा कि हम किसकी बात कर रहे हैं...
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नई दिल्ली: करीब 12 साल पहले उत्तर प्रदेश के अमरोहा में एक ही रात में पूरा परिवार बेरहमी से खत्म कर दिया गया था. किसी दुश्मन ने नहीं, बल्कि उसी परिवार की बेटी शबनम ने सलीम के प्यार में अंधी होकर अपने 7 परिजनों को कुल्हाड़ी से काट दिया था. इस अपराध की सुनवाई 2 साल में पूरी कर साल 2010 में दोनों को सिर्फ एक सजा सुनाई गई थी- फांसी. आज 12 साल बाद यह मुद्दा फिर उठा है. राष्ट्रपति की तरफ से दया याचिका खारिज होने के बाद शबनम और सलीम अपने अंतिम दिन गिन रहे हैं. यह आप जानते हैं कि शबनम आजाद भारत की पहली महिला हो सकती है, जिसे फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा, लेकिन क्या आप जानते हैं 1947 के बाद देश का वह पहला व्यक्ति जिसे सुनाई गई थी फांसी की सजा? यह कहानी हमारे देश की आजादी से ही जुड़ी हुई है.
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8 नवंबर 1949 को जज ने पहली बार तोड़ी थी कलम
दरअसल, देश में पहली बार मौत की सजा पाने वाले अपराधी एक नहीं दो थे. सजा सुनाने की तारीख थी 8 नवंबर 1949 और अपराध था राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या. अब शायद आप समझ गए होंगे अपराधी कौन थे? जी हां, नाथुराम गोडसे और नारायण आपटे. 8 नवंबर को मौत की सजा सुनाने के बाद जज ने पहली बार कलम तोड़ी थी. इसके हफ्ते के अंदर ही फांसी के लिए रस्सी तैयार कर ली गई थी और जल्लाद को बुला कर लीवर की टेस्टिंग भी करा ली गई थी. उनके वजन के अनुसार डमी पर फांसी देने का टेस्ट कर लिया गया था.
फिर 15 नवंबर 1949 की सुबह दोनों अपराधियों को कहा गया कि नहा लो और जिन देवताओं में विश्वास रखते हो, उन्हें याद कर लो. 15 नवंबर 1949 ही वह तारीख है जब आजाद भारत में पहली बार किसी को फांसी के फंदे पर लटकाया गया था.
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मौत को सामने से देख डर गया था नाथूराम गोडसे
गोडसे की याचिका की सुनवाई करने वाले जस्टिस जीडी खोसला ने अपनी किताब में बताया था कि 'जब फांसी के लिए ले जाया जा रहा था, तब गोडसे आगे चल रहा था. उसके कदम कमजोर पड़ रहे थे. उसका व्यवहार बता रहा था कि वह डरा हुआ है. साफ दिख रहा था कि वह इस डर से लड़ने की कोशिश कर रहा है. वह लोगों के सामने कमजोर नहीं दिखना चाहता था, इसलिए बार-बार 'अखण्ड भारत' के नारे लगा रहा था. लेकिन उसकी आवाज में लड़खड़ाहट थी.'
घरवालों को नहीं दिया गया था शव
बताया जाता है कि नाथुराम गोडसे का शव उसके परिवारवालों को नहीं सौंपा गया था. अंबाला जेल के अंदर से ही एक गाड़ी में शव रख उसे घाघरा नदी के पास ले जाया गया था और सरकार ने चुपचाप उसका अंतिम संस्कार कर दिया था.
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कुल 9 लोगों पर लगा था आरोप
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का जिक्र जब भी होता है, दिमाग में एक ही नाम आता है- नाथूराम गोडसे, क्योंकि गोली गोडसे के हाथ से ही चली थी. लेकिन बापू की हत्या का आरोप कुल 9 लोगों पर लगा था. इनमें से सिर्फ एक आरोपी था, जिसे अदालत ने बरी कर दिया था. वह थे विनायक दामोदर सावरकर. बाकी आठों पर कोई न कोई आरोप सिद्ध हुए थे. इनमें से 6 लोगों को आजीवन कारावास की सजा दी गई और 2 को मौत की सजा- गोडसे और नारायण आपटे. यह फांसी आजाद भारत के इतिहास की पहली फांसी थी.
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हत्या करने से पहले गांधी जी को किया था नमन
कहा जाता है कि नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी पर पिस्तौल तानने से पहले उन्हें नमन किया था, फिर पिस्तौल निकाल कर उनपर 3 गोलियां फायर की थीं. मौके पर मौजूद लोगों ने उसे पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया था. बापू ने वहीं अपनी अंतिम सांसें लीं. उनकी मृत्यु के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो के माध्यम से देश को संबोधित किया था और कहा था कि 'राष्ट्रपिता अब नहीं रहे'. यह सुनते ही देश में मातम छा गया था.
महात्मा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे से मिला था गोडसे
नाथूराम गोडसे से मिलने के बाद महात्मा गांधी के बेटे देवदास गांधी ने उसे पत्र लिखकर कहा था कि 'आपने सिर्फ मेरे पिता के शरीर का अंत किया है. लेकिन पूरे विश्व के लाखों लोगों में उनके विचार हमेशा जिंदा रहेंगे.'
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