21वीं सदी का वह पहला अपराधी जिसको फांसी हुई थी, वह था धनंजय चटर्जी. धनंजय 14 अगस्त 2004 को फांसी के फंदे पर लटकाया गया था. जानें, 1990 में उसने क्या किया था...
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लखनऊ: भारतीय संविधान के अनुसार, जघन्य अपराध की सजा भी बड़ी होती है. देश में सबसे बड़ी सजा फांसी है. किसी भी इंसान को मौत की सजा सुनाना आसान नहीं है. लेकिन उनके अपराध इतने बड़े हैं कि कोई और सजा उनके लिए कम पड़ जाती है. ऐसा ही कुछ हो रहा है अमरोहा के शबनम केस में. राष्ट्रपति द्वारा उसकी दया याचिका खारिज किए जाने के बाद शबनम की फांसी का मुद्दा फिर चर्चा में आ गया है. अगर ऐसा होता है, तो शबनम आजाद भारत की पहली महिला होगी, जो फांसी के फंदे पर लटकेगी.
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शबनम का डेथ वॉरंट जारी होने में लग सकता है समय
शबनम की फांसी की बस तारीख तय होने का इंतजार है. हालांकि, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के पास याचिका दायर किए जाने के बाद डेथ वॉरंट तब तक जारी नहीं किया जा सकता, जब तक राज्यपाल इसपर अपना फैसला न सुना दें. इस फांसी में वक्त कितना लगेगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. लेकिन हम आपको बताते हैं उन कुछ लोगों के बारे में, जहां अपराध कितना भी जघन्य हो, अपराधी को सजा नहीं दी जा सकती. आइए जानते हैं कौन हैं वह लोग...
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इन लोगों को नहीं दी जा सकती फांसी
सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत नारंग ने जानकारी दी कि 3 तरह के लोगों को किसी भी सूरत में फांसी नहीं दी जा सकती. यह है उनकी लिस्ट
1. उस इंसान को फांसी के फंदे पर नहीं लटकाया जा सकता, जो किसी लाइलाज बीमारी से पीड़ित हो, या जिसका इलाज ताउम्र चलना है. साथ ही, अगर बीमारी दुर्लभ है तो, अपराधी को फांसी नहीं हो सकती.
2. दूसरा, संविधान कभी भी गर्भवती महिला को फांसी के फंदे पर लटकाने की इजाजत नहीं देगा. किसी भी अपराधी महिला की सजा उसके बच्चे को नहीं दी जा सकती.
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3. तीसरा, मानसिक रूप से बीमार लोगों को भी फांसी नहीं दी जा सकती. अगर उनकी मेडिकल रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हो गई है कि अपराधी की दिमागी हालत ठीक नहीं है, तो
उसे मौत की सजा नहीं सुनाई जा सकती.
4. इसके अलावा, नाबालिग अपराधी को भी फांसी की सजा नहीं होगी. उसे जेल की जगह सुधार गृह में रखा जाता है और ज्यादा से ज्याद आजीवन कारावास की सजा हो सकती है. उसके बालिग होने के बाद भी उस अपराध की सजा नहीं दी जा सकती, जो उसने नाबालिग होने के दौरान किया था.
संविधान के नियमों के अनुसार, फांसी की सजा रोकने का एक और तरीका यह है कि देश के राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी जाए. अगर मामले पर विचार कर राष्ट्रपति याचिका स्वीकार कर लेते है, तो अपराधी को फांसी नहीं होगी.
यह होता है फांसी देने का समय
सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद अपराधी को फांसी नहीं दी जा सकती. हर महीने में सूर्य के बदलते समय के अनुसार समय निर्धारित किया जाता है.
महीने | फांसी का समय |
नवंबर से फरवरी | सुबह 8.00 बजे |
मई से अगस्त | सुबह 6.00 बजे |
मार्च, अप्रैल, सितंबर, अक्टूबर | सुबह 7.00 बजे |
21वीं सदी में इनको हुई फांसी
1. बता दें, देश में आखिरी बार फांसी 20 मार्च 2020 को दी गई थी. 2012 में हुए निर्भया कांड के 4 दोषी- अक्षय, विनय, पवन और मुकेश को 8 साल बाद फांसी दी गई थी. उनको सुबह 5.30 बजे फांसी दी गई.
2. इससे पहले साल 2015 में याकूब मेमन को फांसी हुई थी. याद हो, याकूब मेमन 1993 में हुए मंबई ब्लास्ट के मुख्य दोषियों में से एक था.
3. अफजल गुरु को 2013 में फांसी हुई थी. मालूम हो, वह 2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकवादी हमले का दोषी है.
4. 2008 में हुए मुंबई ब्लास्ट, जिसे 26/11 ब्लास्ट के नाम से जाना जाता है, उसके दोषी अजमल कसाब को 4 साल बाद 2012 में फांसी दी गई थी.
5. 21वीं सदी का वह पहला अपराधी जिसको फांसी हुई थी, वह था धनंजय चटर्जी. धनंजय 14 अगस्त 2004 को फांसी के फंदे पर लटकाया गया था. बता दें, वह 1990 में 15 साल की बच्ची हेतल पारेख के रेप और मर्डर का दोषी था.
इससे पहले भी सुनाई जा चुकी है महिला को फांसी की सजा
जानकारी के मुताबिक, 1980 के दशक में पारिवारिक हत्या के मामले में लोअर कोर्ट ने एक महिला और उसके रिश्तेदार को फांसी की सजा सुनाई थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास में बदल दिया था.
यहां देखें शबनम ने ऐसा क्या किया, जो उसे मिली फांसी की सजा
Video: इश्क में अंधी शबनम ने अपने मां-बाप, भाई-भतीजे को ही कुल्हाड़ी से काट दिया
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